NATO ने यूक्रेन के ऊपर 'नो-फ्लाई जोन' घोषित करने से क्यों किया इनकार?

रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध लगातार भयावह होता जा रहा है। रूसी सेना यूक्रेन के दूसरे बड़े परमाणु संयंत्र की तरफ बढ़ रही है। इससे पहले शुरक्रवार को रूस ने जेपोरजिया परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर हमला कर उसे कब्जे में ले लिया था। इसके बाद यूक्रेन ने NATO (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) से उसके क्षेत्र को 'नो-फ्लाई जोन' घोषित करने की मांग की थी, लेकिन NATO ने इनकार कर दिया है। आइए जानते हैं NATO ऐसा क्यों किया।
बता दें कि रूस के जेपोरजिया परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर हमला करने और उसमें आग लगने के बाद खतरे को देखते हुए यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमीर जेलेंस्की ने NATO से कहा था कि यूक्रेन में परमाणु संयंत्र पर हमला पूरे महाद्वीप की सुरक्षा को खतरा है। उन्होंने कहा था कि यूक्रेन को तत्काल 'नो-फ्लाई जोन' घोषित करने की जरूरत है। ऐसे में NATO को अपना रास्ता बदलते हुए लोगों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने चाहिए।
नो-फ्लाई जोन का मतलब एयरस्पेस का वो इलाका होता है, जहां विमानों के उड़ान भरने पर पाबंदी रहती है। आमतौर पर सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील इलाकों को बचाने के लिए इसका ऐलान किया जाता है। इसके अलावा कई अन्य महत्वपूर्ण मौकों या आयोजनों के वक्त किसी निश्चित इलाके को नो-फ्लाई जोन घोषित कर दिया जाता है। सैन्य अभियानों के संदर्भ में इसे हमले और निगरानी रोकने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
अगर यूक्रेन के ऊपर नो-फ्लाई जोन घोषित कर दिया जाता है तो यह रूस की सेना के लिए मुश्किलें पैदा करेगा और उसे विमानों के जरिये हमला करने से पहले कई बार सोचना पड़ेगा। दरअसल, ऐसा होने पर रूसी विमान उस एयरस्पेस में नहीं घुस सकेंगे। अगर वो घुस जाते हैं तो यूक्रेन की मदद कर रहे देशों के लड़ाकू विमान उनका मुकाबला करने के लिए आगे आएंगे और जरूरी होने पर उन्हें मार गिराया जा सकता है।
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की बार-बार मांग के बाद भी NATO ने शनिवार को उसके ऊपर के क्षेत्र को नो-फ्लाई जोन घोषित करने से इनकार कर दिया। इसके पीछे NATO का तर्क है कि यदि वह ऐसा कदम उठाता है तो वह व्यापक युद्ध का मार्ग खोल सकता है। यह सुनिश्चित करना NATO जिम्मेदारी है कि यह जंग यूक्रेन से आगे न बढ़े और न फैले, क्योंकि यह और भी विनाशकारी और अधिक खतरनाक हालातों को पैदा कर देगी।
ब्रसेल्स में सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की एक आपात बैठक के दौरान NATO के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने कहा कि NATO एक रक्षात्मक गठबंधन है और उसके सदस्य देश इस टकराव का हिस्सा नहीं हैं। यदि वह यूक्रेन के ऊपर नो फ्लाई जोन घोषित करता है तो इससे बड़े स्तर का युद्ध छिड़ जाएगा। उन्होंने कहा कि नो फ्लाई जोन को लागू करने का एकमात्र तरीका NATO लड़ाकू विमानों को यूक्रेनी हवाई क्षेत्र में भेजना है।
नो-फ्लाई जोन घोषित करने से NATO पायलटों को रूसी विमानों को मार गिराने के लिए मजबूर किया जाएगा। इसके अलावा ईंधन भरने वाले टैंकरों और इलेक्ट्रॉनिक निगरानी विमानों की तैनाती के साथ रूस की विमानरोधी मिसाइलों को भी ध्वस्त करना होगा।
यदि NATO यूक्रेन को नो फ्लाई जोन घोषित करता है तो उसकी पालना के लिए उसे रूस से भिड़ना होगा। इस स्थिति में NATO के सभी 30 सदस्य देशों को युद्ध की आग में कूदना होगा। इसके अलावा कोरोना महामारी के कारण आर्थिक संकट से जूझ रहे देशों को और अधिक वित्तीय परेशानियां झेलनी पड़ेगी। इससे वहां के नागरिक सरकार के खिलाफ हो सकते हैं। ऐसे में NATO युद्ध को बढ़ाने की जगह उसे एक जगह सीमित रखना चाहता है।
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने इस फैसले को लेकर NATO की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि नो-फ्लाई जोन घोषित न कर NATO ने रूस को यूक्रेन के शहरों और गांवों पर बम गिराने की हरी झंडी दे दी है। आज से जो लोग मरेंगे, वो NATO की कमजोरी और एकता न होने के कारण मरेंगे। उन्होंने कहा कि NATO ने अपने हिसाब से मनमानी धारणा बना ली कि ऐसा करने से रूस NATO के खिलाफ आक्रामक हो जाएगा।
युद्ध के 10वें दिन रूसी सेना राजधानी कीव के पूर्वी हिस्से तक पहुंच गई है और शहर में घुसने का प्रयास कर रही है।हालांकि, यूक्रेन के प्रतिरोध के चलते उसे चुनौतियों का सामना करना पड़ा रहा है। रूस यूक्रेन की हवाई ताकत को कमजोर नहीं कर पाया, जिसके चलते वह जमीन पर लड़ रही अपनी सेना को जरूरी मदद नहीं पहुंचा पा रहा है। इसी तरह रूस ने नागरिकों की निकासी के लिए अस्थायी सीजफायर का ऐलान किया है।