जासूसी गुब्बारे क्या होते हैं, इनका इस्तेमाल कब से और क्यों किया जा रहा है?
अमेरिका में चीन का जासूसी गुब्बारा देखे जाने के बाद दुनियाभर में इसकी चर्चा है। शुक्रवार को अमेरिका के सैन्य अधिकारियों ने बताया कि चीन का एक जासूसी गुब्बारा संवेदनशील स्थानों के ऊपर से उड़ान भर रहा है। इसके कुछ ही घंटों बाद लैटिन अमेरिका के ऊपर एक और चीनी जासूसी गुब्बारा देखा गया। आइये जानते हैं कि जासूसी गुब्बारा क्या होता है, इनका इस्तेमाल क्यों और कब से किया जा रहा है।
पहले घटना जानिये
अमेरिकी अधिकारियों ने बताया कि गुरुवार को मोंटाना में एक जासूसी गुब्बारा उड़ता देखा गया। यह जिस रास्ते पर उड़ रहा था, उसके नीचे अमेरिका के कई संवेदनशील स्थान पड़ते हैं। इसे देखते हुए अमेरिका ने लड़ाकू विमान तैनात कर दिए थे और इसकी जानकारी राष्ट्रपति जो बाइडन को भी दी गई। इसके बाद अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने बताया कि लैटिन अमेरिका पर भी एक और जासूसी गुब्बारा उड़ता देखा गया है।
चीन ने इसे लेकर क्या कहा?
चीन ने इस गुब्बारा को 'सिविलिएन एयरशिप' बताते हुए कहा कि इसका इस्तेमाल मौसम संबंधी जानकारियां जुटाने के लिए होता है और यह अपने तय रास्ते से भटक गया। चीनी विदेश मंत्रालय ने इसे लेकर खेद जताया है और बातचीत के जरिये इस स्थिति का समाधान निकालने की बात कही है। पहले भी कई बार ऐसे चीनी जासूसी गुब्बारे देखे जा चुके हैं, लेकिन अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि इस बार यह गुब्बारा कई दिनों से एयरस्पेस में मौजूद है।
अमेरिका ने इस गुब्बारे को मार क्यों नहीं गिराया?
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अधिकारियों ने बताया कि अगर इस गुब्बारे को मार गिराया जाता तो इसका मलबा नीचे गिरने से ज्यादा नुकसान होता। इस गुब्बारे का आकार तीन बसों के बराबर बताया जा रहा है। जानकारों का अनुमान है कि इस गुब्बारे के जरिये अमेरिका के सेलफोन ट्रैफिक और राडार की जानकारी जुटाने की कोशिश की जा रही है। हालांकि, अधिकारियों ने बताया कि उन्होंने जासूसी रोकने के लिए पर्याप्त कदम उठा लिए हैं।
क्या होते हैं जासूसी गुब्बारे?
जासूसी गुब्बारे बेहद ऊंचाई पर उड़ने वाले मौसम का अनुमान लगाने वाले गुब्बारे जैसे ही होते हैं, लेकिन इनमें उपकरणों का फर्क होता है। इनमें कैमरा और राडार जैसे उपकरण लगे होते हैं। इन्हें सामान्य राडार से पकड़ पाना मुश्किल होता है और ये आमतौर पर 80,000-1,20,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ान भरते हैं। इतनी ऊंचाई पर कोई विमान नहीं जाता। अमेरिका ने भी अपने दुश्मनों पर नजर रखने के लिए ऐसे गुब्बारों की मदद ली है।
जासूसी के लिए गुब्बारों का इस्तेमाल क्यों?
आज के युग में कई देश सैटेलाइट के जरिये जासूसी करते हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि गुब्बारों के सहारे जासूसी क्यों की जा रही है? इसके जवाब में ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल सिक्योरिटी एंड इंटेलीजेंस स्टडीज के प्रोफेसर जॉन ब्लैक्सलैंड ने बताया कि अब सैटेलाइट को निशाना बनाने के लिए काइनेटिक और लेजर हथियार आ गए हैं, इसलिए गुब्बारों में दिलचस्पी बढ़ रही है। इनके जरिये जासूसी करना भी आसान है।
क्या है गुब्बारों का फायदा?
ब्लैक्सलैंड ने कहा कि गुब्बारों से सैटेलाइट जितनी सटीक जानकारियां नहीं जुटाई जा सकतीं, लेकिन इनका इस्तेमाल आसान है। सैटेलाइट लॉन्च करने के लिए स्पेस लॉन्चर की जरूरत पड़ती है, जिसका खर्च करोड़ों रुपये होता है। कुछ जानकारों का कहना है कि गुब्बारे का पता लगा पाना मुश्किल होता है। इनसे कार्बन उत्सर्जन नहीं होता। इसके अलावा इन्हें इनमें लगे उपकरणों के सहारे सैटेलाइट की तुलना में बेहतर तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है।
ज्यादा इलाके पर नजर रख सकते हैं गुब्बारे
जासूसी करने वाले गुब्बारे सैटेलाइट के मुकाबले इस लिहाज में भी बेहतर है कि वो कम ऊंचाई से ज्यादा इलाके पर नजर रख सकते हैं। ये कम गति से आगे बढ़ते हैं, इसलिए ज्यादा जानकारी जुटा पाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सैटेलाइट का रास्ता पहले से पता किया जा सकता है। ऐसे में वो दुश्मन को चौंका नहीं सकते, लेकिन गुब्बारे का रास्ता पता करना आसान काम नहीं है।
सबसे पहले इनका कब इस्तेमाल हुआ?
द गार्डियन के अनुसार, फ्रांस को सबसे पहले जासूसी के लिए गुब्बारों का इस्तेमाल करने का श्रेय जाता है। सबसे पहले इसका इस्तेमाल 1794 में ऑस्ट्रियन और डच सेना के खिलाफ युद्ध में इसका इस्तेमाल किया गया था। इसके बाद 1860 के दशक में अमेरिकी गृह युद्ध के दौरान यूनियनों ने जानकारी जुटाने के लिए इनका सहारा लिया था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी इनका इस्तेमाल बढ़ा था।
चीन ऐसा क्यों कर रहा है?
बलैक्सलैंड का अनुमान है कि चीन ने दो कारणों से ऐसा किया है। पहला कारण यह हो सकता है कि वह अमेरिका को शर्मिंदा करना चाहता था और इसी बहाने अगर उसे कुछ जानकारी मिली है तो वह भी ठीक है। उन्होंने दूसरा कारण बताया कि चीन अमेरिका को चेताना चाहता है कि वह भी तकनीक के मामले में किसी से पीछे नहीं है। इससे जाहिर तौर पर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ेगा।