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    #NewsBytesExplainer: ईरान-अमेरिका के बीच दोबारा क्यों हो रही है परमाणु वार्ता, भारत के लिए कितनी अहम?
    ओमान में अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु वार्ता शुरू हुई है

    #NewsBytesExplainer: ईरान-अमेरिका के बीच दोबारा क्यों हो रही है परमाणु वार्ता, भारत के लिए कितनी अहम?

    लेखन आबिद खान
    Apr 12, 2025
    07:06 pm

    क्या है खबर?

    अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु समझौते को लेकर वार्ता फिर शुरू हो गई है। ओमान की राजधानी मस्कट में ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची और मध्य-पूर्व के लिए अमेरिकी दूत स्टीव विटकॉफ वार्ता पर चर्चा के लिए जुटे हैं।

    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने धमकी दी है कि अगर ईरान के साथ बातचीत सफल नहीं हुई तो उस पर बमबारी की जाएगी।

    आइए परमाणु वार्ता से जुड़ी हर बात जानते हैं।

    वजह

    क्यों हो रही है दोनों देशों के बीच वार्ता?

    ईरान ने 2015 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के 5 स्थायी सदस्यों के साथ परमाणु संधि की थी। इसे संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) या ईरान परमाणु समझौता कहा जाता है।

    इसके तहत ईरान ने आर्थिक प्रतिबंधों को हटाने के बदले में अपने परमाणु कार्यक्रम को कम करने और अधिक अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण की अनुमति दी थी।

    हालांकि, 2018 में ट्रंप इस समझौते से हट गए थे, जिसके बाद ये समझौता गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है।

    अमेरिका

    अमेरिका क्यों करना चाहता है समझौता?

    अमेरिका ने कहा है कि वो किसी भी कीमत पर ईरान के पास परमाणु हथियार नहीं चाहता है।

    ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज ने कहा था, "ट्रंप ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह से नष्ट करना चाहते हैं। यह ईरान का यूरेनियम संवर्धन है, यह शस्त्रीकरण है और यह एक रणनीतिक मिसाइल कार्यक्रम है।"

    राष्ट्रपति ट्रंप ने पिछले समझौते से बाहर निकलने की वजह बताते हुए कहा था कि ये समझौता एकतरफा था।

    ईरान

    समझौते को लेकर ईरान का क्या रुख है?

    ईरान का कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल नागरिक उद्देश्यों के लिए है और वो परमाणु हथियार विकसित नहीं कर रहा है।

    पहले तो ईरान ने अमेरिका से बात करने से मना कर दिया था, लेकिन बाद में 'अप्रत्यक्ष वार्ता' पर सहमति जताई।

    वार्ता से पहले अराघची ने कहा, "हमारा इरादा निष्पक्ष और सम्मानजनक समझौते पर पहुंचना है। अगर दूसरा पक्ष भी समान स्थिति पर आता है तो उम्मीद है कि प्रारंभिक समझ के लिए एक मौका होगा।"

    उम्मीदें

    वार्ता कितनी अहम है?

    2015 में अमेरिका द्वारा समझौते से बाहर आने के बाद दोनों देशों के बीच ये पहली आधिकारिक बातचीत है।

    न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, ये वार्ता निर्धारित करेगी कि दोनों देश पूर्ण वार्ता की ओर बढ़ सकते हैं या नहीं।

    अखबार ने लिखा कि इस बैठक के लक्ष्य मामूली हैं- वार्ता के लिए एक रूपरेखा और एक समयसीमा पर सहमत होना।

    जानकारों का कहना है कि ये वार्ता दोनों पक्षों को आगे बढ़ने और सद्भावना का संकेत देने का तरीका होगी।

    हथियार

    क्या ईरान के पास परमाणु हथियार हैं?

    ईरान ने हमेशा से ऐसी खबरों का खंडन किया है। हालांकि, अमेरिका समेत कई देशों और परमाणु कार्यक्रम पर नजर रखने वाली संस्था अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) इससे सहमत नहीं हैं।

    2002 में ईरान के गुप्त परमाणु ठिकानों का पता चला था।

    हाल ही में IAEA ने कहा था कि ईरान ने अपने परमाणु बम बनाने लायक यूरेनियम का भंडार 50 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है और ईरान के पास 60 प्रतिशत संवर्धित यूरेनियम का भंडार है।

    भारत

    वार्ता के भारत के लिए क्या मायने हैं?

    BBC से बात करते हुए मिडिल ईस्ट इनसाइट्स प्लेटफॉर्म की फाउंडर डॉक्टर शुभदा चौधरी ने कहा, "भारत के लिए ये इसलिए अहम है, क्योंकि अमेरिका-ईरान दोनों के साथ भारत के कूटनीतिक संबंध हैं। भारत की जो नीति है, वो ऐसी है कि झगड़ने वाले दोनों पक्षों से बातचीत का विकल्प बना रहे।"

    वहीं, मध्य-पूर्व मामलों के जानकार फज्जुर रहमान ने कहा, "बेहतर होगा कि वार्ता के सकारात्मक नतीजे निकलें, वरना भारत को कूटनीतिक कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है।"

    परिचय

    ईरान की ओर से वार्ता का नेतृत्व कर रहे अराघची कौन हैं?

    1962 में जन्में अराघची ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) में रह चुके हैं।

    उन्होंने 1989 में ईरानी विदेश मंत्रालय में कदम रखा और फिनलैंड और जापान में राजदूत रहे।

    अराघची के ईरान के सर्वोच्च नेता आयातुल्लाह अली खमैनेई, IRGC और सभी राजनीतिक पार्टियाों से अच्छे संबंध माने जाते हैं।

    उन्होंने 2015 में हुई परमाणु समझौते की वार्ता का भी नेतृत्व किया था।

    वे अपनी शांत और संयमित उपस्थिति और तकनीकी कौशल के लिए जाने जाते हैं।

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