
ईरान के राष्ट्रपति ने डोनाल्ड ट्रंप से कहा- जो चाहे करो, देश बातचीत नहीं करेगा
क्या है खबर?
ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की धमकियों को लेकर कहा कि देश अमेरिका से बातचीत नहीं करेगा।
ईरानी सरकारी मीडिया ने राष्ट्रपति पेजेशकियन के हवाले से कहा, "यह हमारे लिए अस्वीकार्य है कि वे (अमेरिका) आदेश दें और धमकियां दें। मैं आपसे बातचीत भी नहीं करूंगा। आप जो चाहें करें।"
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने भी पेजेशकियन का समर्थन करते हुए कहा कि तेहरान को बातचीत के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।
बातचीत
ट्रंप ने परमाणु समझौते का किया है आग्रह
ईरानी नेताओं का बयान ट्रंप के उस बयान के बाद आया, जिसमें उन्होंने ईरान को परमाणु समझौते पर बातचीत के लिए आग्रह करते हुए पत्र लिखा है।
ट्रंप ने मीडिया चैनल से इंटरव्यू में कहा था, "मैंने उन्हें (ईरान) एक पत्र लिखा है, जिसमें कहा गया है कि मुझे उम्मीद है कि आप बातचीत करेंगे। अगर हमें सैन्य रूप से आगे बढ़ना पड़ा तो यह उनके लिए बहुत बुरी बात होगी।"
ट्रंप ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर लगाम चाहते हैं।
समझौता
ट्रंप परमाणु समझौते के लिए क्यों बना रहे दबाव?
वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्यों ने ईरान के साथ संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) पर हस्ताक्षर किए, जिसे ईरान परमाणु समझौता कहा जाता है।
अमेरिका में तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा प्रशासन के दौरान हुए इस समझौते से ईरान को फायदा हुआ और प्रतिबंधों से राहत मिली।
हालांकि, ईरान ने भी अपने परमाणु कार्यक्रम के दायरे को कम कर दिया और यूरेनियम को 3.67 प्रतिशत से अधिक समृद्ध नहीं करने पर सहमति जताई।
दबाव
ट्रंप ने आकर समझौता तोड़ा, अब फिर जोड़ना चाहते हैं
इसके बाद ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने और उन्होंने 2018 में यह समझौता तोड़ दिया और इससे बाहर हो गए। उन्होंने इसे सबसे खराब और एकतरफा लेन-देन बताया।
अमेरिका के समझौते से हटने से ईरान कमजोर होने की जगह मजबूत हो गया। अपनी शर्तों को पूरा करने के कारण वह चीन और रूस के करीब आया और यूक्रेन युद्ध में उनके साथ खड़ा है।
JCPOA समझौता तकनीकी तौर पर 2025 में खत्म होगा, लेकिन ट्रंप इसे दोबारा चाहते हैं।
गलती
ट्रंप को हो रहा है गलती का एहसास?
अमेरिका के समझौते से पीछे हटने के बाद ईरान ने अपनी परमाणु गतिविधि को बढ़ाया है, जिसे ट्रंप एक बड़ा खतरा मान रहे हैं।
इसलिए अमेरिका इस समझौते को दोबारा शुरू करना चाहते हैं, जबकि ईरान मामले में एक बार धोखा खाने के बाद अब आगे नहीं बढ़ रहा है।
ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची भी इस्लामिक सहयोग संगठन की बैठक से अलग कह चुके हैं कि वे अधिकतम दबाव की नीति के चलते अमेरिका से बातचीत नहीं करेंगे।