चंपई सोरेन के शामिल होने से भाजपा को झारखंड में कितना फायदा होगा?
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन भाजपा में शामिल हो गए हैं। 30 अगस्त को रांची में भाजपा के कई दिग्गज नेताओं की मौजूदगी में उन्होंने बिना शर्त पार्टी का दामन थाम लिया है। इससे पहले उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) से इस्तीफा दे दिया था। राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले चंपई का पार्टी छोड़ना हेमंत सोरेन के बड़ा झटका माना जा रहा है। आइए जानते हैं इससे भाजपा को कितना फायदा हो सकता है।
चंपई को JMM से मोहभंग क्यों हुआ?
इसी साल फरवरी में जमीन घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर लिया था। इसके बाद हेमंत ने चंपई को मुख्यमंत्री बनाया था। हालांकि, जून में जेल से बाहर आने के बाद चंपई को इस्तीफा देना पड़ा और हेमंत फिर मुख्यमंत्री बन गए। माना जाता है कि चंपई विधानसभा चुनाव तक मुख्यमंत्री बने रहना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कथित तौर पर इससे वे नाराज बताए जाते हैं।
चंपई ने JMM छोड़ने की क्या वजह बताई?
एक बयान में चंपई ने JMM की मौजूदा कार्यशैली और नीतियों पर गहरी निराशा व्यक्त करते हुए कहा था कि पार्टी अपने मूल सिद्धांतों और आदर्शों से भटक गई है। उन्होंने JMM नेतृत्व पर उनका अपमान करने का भी आरोप लगाया। भाजपा में शामिल होने के बाद उन्होंने कहा था कि बांग्लादेशी घुसपैठ से आदिवासी समाज की जमीन और बहन बेटियों को बचाने के लिए वे भाजपा में आए हैं।
चंपई के आने से भाजपा को क्या फायदा?
चंपई झारखंड की सबसे बड़ी आदिवासी जाति संथाल से हैं। झारखंड में 26 प्रतिशत आदिवासी आबादी हैं, जिनमें से 32 प्रतिशत इसी समाज है। कोल्हान इलाके में चंपई को 'कोल्हान टाइगर' कहा जाता है। कोल्हान की 14 विधानसभा सीटों पर चंपई का अच्छा प्रभाव भी माना जाता है। ऐसे में चंपई के साथ आने से कम से कम इन 14 सीटों पर भाजपा को कुछ फायदा होने की उम्मीद है।
क्या कह रहे हैं जानकार?
वरिष्ठ पत्रकार प्रणव प्रत्यूष ने इंडिया टुडे से कहा, "चंपई के साथ भाजपा को उम्मीद है कि वह झारखंड के आदिवासी मतदाताओं के बीच अपनी अपील मजबूत करेगी, जहां 81 सीटों में से 28 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। आदिवासी कोल्हान संभाग से आने वाले चंपई दक्षिण झारखंड में भाजपा की संभावनाओं को बढ़ा सकते हैं, जो पश्चिम बंगाल और ओडिशा की सीमा से लगा हुआ क्षेत्र है और जहां काफी संख्या में आदिवासी आबादी है।"
भाजपा के लिए चुनौतियां भी कम नहीं
चंपई के आने से भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती संतुलन साधने की है। चंपई, बाबूलाल मरांडी, मधु कोड़ा और अर्जुन मुंडा को मिलाकर झारखंड के 4 पूर्व मुख्यमंत्री भाजपा में शामिल हो चुके हैं। ऐसे में अगर किसी एक को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया तो गुटबाजी बढ़ सकती है। वैसे भी माना जाता है कि चंपई के आने से बाबूलाल मरांडी नाखुश हैं। मरांडी ने भाजपा आलाकमान से भी मुलाकात की थी।
चंपई खुद कितने प्रभावशाली हैं?
जानकारों का मानना है कि झारखंड विधानसभा चुनाव में बहुत कम वक्त रह गया है, ऐसे में चंपई के पास चुनावी तैयारी के लिए बिलकुल भी वक्त नहीं है। पहले अटकलें थीं कि चंपई के साथ भाजपा में 5-6 विधायक भी शामिल हो सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कहा गया कि हेमंत सोरेन ने सभी से खुद बात कर नाराजगी दूर कर दी। इससे सवाल उठ रहे हैं कि क्या चंपई कुछ प्रभाव छोड़ भी पाएंगे या नहीं।