#NewsBytesExplainer: कर्नाटक में भाजपा की हार और कांग्रेस की जीत की वजहें और नतीजों के मायने?
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज की है। उसने 224 सीटों में से 136 सीटों पर कब्जा किया। दूसरी तरफ 2018 में 104 सीटें जीतने वाली भाजपा इस बार 65 सीट ही जीत पाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह समेत कई दिग्गज नेताओं की ताबड़तोड़ रैलियों के बावजूद भाजपा यह चुनाव हारी। आइए भाजपा की हार, कांग्रेस की जीत और दोनों पार्टियों के लिए नतीजे के मायने समझते हैं।
भाजपा में बड़े चेहरे की कमी और लिंगायतों में नुकसान
इस बार के चुनाव में भाजपा के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं था। कर्नाटक में भाजपा को चमकाने वाले लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा चुनाव नहीं लड़े। चुनावी अभियान के दौरान भी वे मैदान से अधिकांश दूर ही रहे। भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी को टिकट नहीं दिया तो दोनों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। ये दोनों ही नेता लिंगायत समुदाय का बड़ा चेहरा माने जाते हैं। इससे पार्टी को लिंगायतों में नुकसान हुआ।
भाजपा सरकार का भ्रष्टाचार
कर्नाटक चुनाव में भाजपा पर भ्रष्टाचार का मुद्दा हावी रहा। कांग्रेस इसे लेकर शुरुआत से ही भाजपा पर हमलावर रही। 40 फीसदी कमीशन के आरोप को कांग्रेस ने बड़ा मुद्दा बनाया। 2022 में एक ठेकेदार ने ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री केएस ईश्वरप्पा पर 40 प्रतिशत कमीशन मांगने का आरोप लगाकर आत्महत्या कर ली थी। ये विवाद इतना बढ़ा कि ईश्वरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा था। कांग्रेस ने इसे लेकर PayCM अभियान भी शुरू किया था, जो सफल रहा।
भाजपा के काम न आया आरक्षण का दांव
कर्नाटक चुनाव से ठीक पहले भाजपा ने 4 प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण खत्म कर लिंगायत और वोक्कालिग्गा समुदाय में बांट दिया। भाजपा ने इन दोनों समुदाय को साधने और ध्रुवीकरण के उद्देश्य से ये फैसला लिया था, लेकिन कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में आरक्षण की सीमा 50 से बढ़ाकर 75 प्रतिशत करने का ऐलान कर दिया। कांग्रेस की जीत में आरक्षण की सीमा बढ़ाने के फैसले को बड़ी वजह माना जा रहा है।
भारत जोड़ो यात्रा का असर
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का सबसे ज्यादा समय कर्नाटक में ही बीता था। इससे राज्य में कांग्रेस की गुटबाजी खत्म हुई और पार्टी को एकता मिली। सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार इस यात्रा के बहाने एक साथ आए। नतीजा ये रहा कि जिन सीटों से ये यात्रा निकली थी, उनमें से 70 प्रतिशत से अधिक पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की। कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा के असर को आगामी विधानसभा चुनावों में भी जरूर भुनाएगी।
ध्रुवीकरण का दांव नहीं आया भाजपा के काम
कर्नाटक में भाजपा ने हिजाब, हलाल, अजान और टीपू सुल्तान जैसे कई मुद्दों को उठाया। पार्टी के केंद्र और राज्य स्तर के कई बड़े नेता इन मुद्दों पर बयानबाजी करते रहे। कांग्रेस ने बजरंग दल जैसे संगठनों को बैन करने की घोषणा की तो भाजपा ने इसे बजरंग बली से जोड़ दिया। ध्रुवीकरण के लिए भाजपा ने इन मुद्दों को भुनाने की खूब कोशिश की, लेकिन चुनावी नतीजों में इसका असर नजर नहीं आया।
भाजपा की आंतरिक कलह
माना जाता है कि कर्नाटक भाजपा में 5 गुट हैं। इनमें येदियुरप्पा, बसवराज बोम्मई, भाजपा के संगठन महासचिव बीएल संतोष, प्रदेश अध्यक्ष नलिन कुमार कटील और राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि के गुट शामिल हैं। इन गुटों की आंतरिक कलह का नुकसान पार्टी को उठाना पड़ा। टिकट बंटवारे में भी ये गुटबाजी साफ नजर आई। करीब 10 सीटों पर खूब मनाने के बावजूद भाजपा के बागी विधायकों ने चुनाव लड़ा और पार्टी को नुकसान पहुंचाया।
स्थानीय मुद्दे बनाम राष्ट्रीय मुद्दे
कांग्रेस ने चुनावी अभियान को स्थानीय मुद्दों तक सीमित रखा। इसमें भ्रष्टाचार और नंदिनी बनाम अमूल दूध का मुद्दा शामिल रहा। कांग्रेस ने नलिनी मुद्दे को राज्य की अस्मिता और स्थानीय बनाम बाहरी की हवा देकर खूब प्रचारित किया। हिंदी बनाम कन्नड़ की लड़ाई में जहां भाजपा ने चुप्पी साधे रखी, वहीं कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने इसे जोर-शोर से उठाया। कांग्रेस को इस रणनीति का फायदा मिला, वहीं भाजपा ने राष्ट्रीय मुद्दों पर ज्यादा बात की।
क्या अन्य राज्यों पर पड़ेगा असर?
इसी साल राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने हैं। 2018 में हुए पिछले विधानसभा चुनावों में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की हार हुई थी और कांग्रेस जीती थी। ऐसे में कहा जा सकता है कि इन राज्यों में कांग्रेस के पास मौका है। कांग्रेस के लिए कर्नाटक की ये जीत संजीवनी की तरह काम कर सकती है, वहीं भाजपा के लिए विधानसभा चुनावों से पहले ये बड़ा झटका माना जा रहा है।
क्या विपक्षी एकता का सूत्रधार बनेगी कांग्रेस?
2024 आम चुनाव के लिहाज से कांग्रेस के लिए ये जीत अहम है। इसे कांग्रेस के विपक्षी एकता का सूत्रधार बनने की दिशा में बड़ी कामयाबी माना जा रहा है। ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जैसे नेता कई बार कह चुके हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकती है। कर्नाटक में कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से था, ऐसे में पार्टी को उनकी इस बात को खारिज करने का आधार मिल गया है।
भाजपा पर क्या असर होगा?
2019 आम चुनाव में भाजपा को कर्नाटक की 29 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी। अब कर्नाटक में सरकार बदलने के बाद 2024 चुनावों में इनकी संख्या कम हो सकती है। भाजपा के 'मिशन दक्षिण भारत' के लिए भी ये बड़ा झटका है। फिलहाल दक्षिण भारत की 129 लोकसभा सीटों में से भाजपा के पास सिर्फ 29 सीटें हैं। इसके अलावा इस जीत के बाद विपक्षी एकता की कवायद को नई उर्जा मिल सकती है, जिससे भाजपा की मुश्किलें बढ़ेंगी।