गर्भासन: जानिए इस योगासन के अभ्यास का तरीका, इसके लाभ और अन्य महत्वपूर्ण बातें
गर्भासन दो शब्दों (गर्भ और आसन) के मेल से बना है। इसमें गर्भ का मतलब भ्रूण से है और आसन का मतलब मुद्रा है। इस आसन में शरीर की आकृति एक भ्रूण के समान हो जाती है इसलिए इसे गर्भासन कहा जाता है। अगर आप रोजाना सिर्फ 30-60 सेकेंड तक इसका अभ्यास करते हैं तो इससे आपको कई तरह के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभ मिल सकते हैं। आइए आज आपको इस योगासन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें बताते हैं।
गर्भासन के अभ्यास का तरीका
सबसे पहले योगा मैट पर पद्मासन की मुद्रा में बैठें। इसके बाद कुक्कुटासन की तरह अपने हाथों को जांघों और पिंडलियों के बीच में फंसाकर कोहनियों तक बाहर निकालें। अब दोनों कोहनियों को मोड़ते हुए हाथों से दोनों कान पकड़ने की कोशिश करें। इस दौरान शरीर का पूरा भार कूल्हों पर होना चाहिए। सामान्य रूप से सांस लेते रहें और अपनी क्षमतानुसार इस स्थिति में रहने के बाद सामान्य हो जाएं।
अभ्यास के दौरान जरूर बरतें ये सावधानियां
कूल्हों पर कोई घाव या फिर अन्य कोई तकलीफ होने पर इस आसन का अभ्यास न करें। घुटनों और पीठ में दर्द होने पर भी इस आसन को करने से बचें। इस आसन का अभ्यास गर्भवती महिलाओं को भी नहीं करना चाहिए। अगर आपको हाई ब्लड प्रेशर की समस्या है तो भी इस आसन का अभ्यास न करें। इस आसन के अभ्यास के दौरान अपनी शारीरिक क्षमता से अधिक जोर न लगाएं क्योंकि इससे चोट लग सकती है।
गर्भासन के नियमित अभ्यास से मिलने वाले फायदे
गर्भासन रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूती प्रदान करने में मददगार है। पीरियड्स के दौरान महिलाओं के लिए इस योगासन का अभ्यास करना लाभदायक हो सकता है। यह आसन शरीर के ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर करने में भी सहायक है। इस आसन से शरीर का लचीलापन और संतुलन शक्ति भी बढ़ती है। इस आसन से कलाइयों, भुजाओं, पैर, कंधों, पीठ और रीढ़ की हड्डी को मजबूती मिलती है। इस आसन से कूल्हे और घुटनों से संबंधित समस्याएं दूर हो जाती हैं।
अभ्यास से जुड़ी महत्वपूर्ण टिप्स
इस आसन के अभ्यास से पहले दो-तीन हफ्ते तक कुक्कुटासन और तुलासन का अभ्यास करें और जब आपका शरीर पूरी तरह संतुलित और तैयार हो, तभी गर्भासन का अभ्यास करें। अगर अभ्यास करते समय हाथ कानों तक न पहुंच पाएं तो दोनों हाथों से नमस्कार मुद्रा बनाएं। इस आसन का अभ्यास हमेशा खाली पेट करना चाहिए और इसके अभ्यास के दौरान ज्यादा कसे कपड़े नहीं पहनने चाहिए। अभ्यास के दौरान असुविधा या दर्द महसूस हो तो तुरंत आसन छोड़ दें।