#NewsBytesExplainer: अमेरिका में हुआ लड़ाकू विमान के इंजन से संंबंधित समझौता भारत के लिए क्यों अहम?
क्या है खबर?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान लड़ाकू विमान के इंजन को लेकर एक अहम समझौता हुआ है।
स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस मार्क-2 के GE-F414 इंजन को लेकर अमेरिका की जनरल इलेक्ट्रिक (GE) और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने हाथ मिलाया है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस समझौते में इंजन की टेक्नोलॉजी ट्रांसफर से लेकर उनका भारत में ही निर्माण किए जाने के प्रावधान शामिल हैं।
आइए इस समझौते की अहमियत के बारे में जानते हैं।
इंडन
कैसा है GE-F414 इंजन?
आकार की बात करें तो यह इंजन 154 इंच लंबा है। इसका अधिकतम व्यास 35 इंच है।
इसका थ्रस्ट टू वेट रेश्यों 9.4:1 है, यानी ये विमान के वजन की तुलना में 9.4 गुना ज्यादा ताकत से विमान को उड़ा सकता है।
अमेरिकी नौसेना अपने लड़ाकू विमानों में इस इंजन का इस्तेमाल 30 सालों से कर रही है। GE की वेबसाइट के मुताबिक, कंपनी अब तक 1,600 से ज्यादा इंजन बना चुकी है।
खासियत
GE-F414 इंजन में क्या है खास?
GE-F414 उन्नत तकनीक से बना टर्बोफैन इंजन है। यह 22,000 पाउंड का थ्रस्ट पैदा करने में सक्षम है, यानी ये इतनी क्षमता का धक्का पैदा कर विमान को उड़ाने में सक्षम है।
इंजन की बड़ी खासियत है कि ये फुल अथॉरिटी डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल (FADEC) तकनीक से लैस है। इसका मतलब इसे पूरी तरह डिजिटल तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है।
यह विमान को 2469.6 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ा सकता है।
जरूरत
भारत को क्यों है इस इंजन की जरूरत?
दरअसल, HAL स्वदेशी लडाकू विमान तेजस के उन्नत वर्जन मार्क-2 पर काम कर रहा है। इसमें GE-F414 इंजन लगाने की योजना है। ये इंजन अमेरिका की जनरल मोटर्स ही बनाती है।
समझौता होने के बाद अब भारत में इसका निर्माण शुरू होगा। इसके साथ ही एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) और स्वदेशी ट्विन इंजन डेक बेस्ड फाइटर यानी TEDBF में भी इस इंजन का इस्तेमाल होगा।
इससे भारत की सैन्य क्षमता में बढ़ोतरी होगी।
अहमियत
भारत के लिए क्यों अहम है समझौता?
भारत ने वायुसेना और नौसेना के लिए 350 से अधिक लड़ाकू विमान बनाने का लक्ष्य रखा है। अब समझौते पर मुहर लगने के बाद भारत को इस लक्ष्य को हासिल करने में आसानी होगी।
इस समझौते का रणनीतिक महत्व भी है। विशेषज्ञ इसे हिंद महासागर में चीन की बढ़ती चहलकदमी के जवाब के तौर पर भी देख रहे हैं। सीमा विवाद और बाकी कारणों से भारत और चीन के रिश्ते अच्छे दौर से नहीं गुजर रहे हैं।
विमान
किन विमानों में हो रहा है इस इंजन का इस्तेमाल?
इन इंजनों का इस्तेमाल अमेरिका, स्वीडन और दक्षिण कोरिया अपने लड़ाकू विमानों में कर रहे हैं। अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी NASA भी खास उद्देश्यों के लिए इन इंजनों से लैस विमानों का इस्तेमाल कर चुकी है।
अमेरिका के बोइंग EA-18G और F/A-18E/F सुपर हॉर्नेट में भी ये इंजन लगे हैं। इसके अलावा स्वीडन के साब JAS 39 ग्रिपन में भी इनका इस्तेमाल हो रहा है।
दक्षिण कोरिया ने भी KAI KF-21 और विमानों के लिए GE से समझौता किया है।
ताकत
समझौते से कितनी बढ़ी भारत की ताकत?
वर्तमान में दुनिया के सिर्फ 4 ही देश, अमेरिका, रूस, चीन और फ्रांस, लड़ाकू विमानों के इंजन बनाने की क्षमता रखते हैं। अब इस समझौते के बाद भारत भी उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है, जिनके पास इस तरह की क्षमता है।
हालाकि, भारत पहले ही स्वदेशी टेक्नोलॉजी के साथ क्रायोजेनिक इंजन का निर्माण कर चुका है, लेकिन इनका इस्तेमाल लड़ाकू विमानों में नहीं किया जा सकता है।