नए आपराधिक कानून: संसदीय समिति ने व्यभिचार को फिर से अपराध बनाने समेत क्या-क्या सिफारिशें कीं?
गृह मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति ने केंद्र सरकार को एक रिपोर्ट सौंपकर व्यभिचार को फिर से भारतीय न्याय संहिता के दायरे में लाने की सिफारिश की है। संसदीय समिति ने कहा कि भारतीय समाज में विवाह की संस्था को पवित्र माना जाता है और इसकी पवित्रता की रक्षा के लिए व्यभिचार को अपराध की श्रेणी में बनाए रखने की आवश्यकता है। आइए जानते हैं कि संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में और क्या-क्या सिफारिशें की हैं।
समिति ने व्यभिचार और धारा 377 पर क्या कहा?
संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि संशोधित कानून में व्यभिचार को 'लिंग-तटस्थ' अपराध माना जाना चाहिए और इसमें दोनों पक्षों यानि पुरुष और महिला को समान रूप से उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए। समिति ने कहा कि 'गैर-सहमति' यौन कृत्यों के लिए IPC की धारा 377 के कुछ हिस्से वापस लाने पर विचार किया जाना चाहिए, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था। उसने कहा कि इन्हें नए आपराधिक कानूनों में शामिल किया जाना चाहिए।
समिति ने और क्या सिफारिशें की हैं?
संसदीय समिति का दावा है कि कोर्ट ने पाया कि हटाए गए हिस्से संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का उल्लंघन करते हैं, लेकिन वे वयस्कों के साथ गैर-सहमति वाले यौन कृत्यों पर लागू होते हैं। समिति का कहना है कि नए कानूनों में पुरुष, महिला, ट्रांसजेंडर के खिलाफ गैर-सहमति वाले यौन अपराध और पाशविकता के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है। इसके अलावा कानूनों में 'सामुदायिक सेवा' शब्द को ठीक से परिभाषित किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से किया था बाहर
2018 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली संवैधानिक पीठ ने IPC की धारा 497 को असंवैधानिक करार दिया था, जो व्यभिचार को अपराध बनाती थी। कोर्ट ने कहा था कि ये औपनिवेशिक काल का कानून पितृसत्तात्मक सोच का नतीजा है, जो एक महिला की स्वायत्तता और गरिमा का उल्लंघन करता है और समानता के अधिकारों को प्रभावित करता है। 2018 में ही सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को भी समाप्त कर दिया था।
अगस्त में गृह मंत्री ने पेश किये थे आपराधिक कानूनों पर नए विधेयक
11 अगस्त, 2023 को गृह मंत्री अमित शाह ने संसद के मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य विधेयक पेश किए गए थे। ये तीनों नए विधेयक क्रमशः भारतीय दंड संहिता (IPC), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे। केंद्र ने पुराने कानूनों में कुल 313 बदलाव करके नए कानून प्रस्तावित किए हैं, जिन्हें विचार के लिए संसदीय समिति के पास भेजा गया था।