कृषि कानूनों के बनने से वापसी के ऐलान तक, कौनसे रहे किसान आंदोलन के अहम पड़ाव?
कृषि सुधारों के नाम पर केंद्र की ओर से पिछले साल लागू किए गए तीन कृषि काननों को सरकार ने शुक्रवार को वापस ले लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को देश के नाम संबोधन में कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया। इसके साथ ही पिछले करीब एक साल से कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन की समाप्ति का रास्ता खुल गया है। यहां जानते हैं कि इस दौरान किसान आंदोलन के अहम पड़ाव कौनसे रहे।
सितंबर 2020 में राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ कृषि विधेयकों ने लिया कानून का रूप
केंद्र सरकार ने 17 सितंबर, 2020 को कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता विधेयक और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक को लोकसभा में पास कराया था। इसके बाद सरकार ने 20 सितंबर को जोरदार हंगामे के बीच इन्हें राज्यसभा में भी पारित करा लिया था। 27 सितंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी के बाद इन विधेयकों ने कानून का रूप ले लिया था।
किसानों ने शुरू किया विरोध और अक्टूबर में सरकार से हुई पहली वार्ता
कृषि कानूनों के लागू होने के बाद पंजाब, हरियाणा के किसानों ने इसका विरोध तेज कर दिया। पंजाब में तीन दिन के लिए रेल रोको आंदोलन किया गया। इस दौरान किसानों ने सरकार का जमकर विरोध किया और यह अक्टूबर तक जारी रहा। किसानों के विरोध को देखते हुए सरकार ने किसानों ने बातचीत का निर्णय किया। इसके लिए 14 अक्टूबर को कृषि सचिव किसानों से वार्ता के लिए पहुंचे, लेकिन किसानों ने बैठक का बहिष्कार कर दिया।
24 नवंबर को दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचे किसान
3 नवंबर को पंजाब और हरियाणा में किसान संघों ने 'दिल्ली चलो' का आह्वान किया और 24 नंवबर को पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान दिल्ली की सीमाओं पर पहुंच गए। इस दौरान पुलिस ने उन्हें सिंघु बॉर्डर पर रोक लिया और उन पर आंसू गैस के गोले दागते हुए वाटर कैनन का इस्तेमाल किया। उसके बाद किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर डेरा जमा लिया। इसी तरह गाजीपुर, टिकरी और शाहजहांपुर बॉर्डर भी किसान जमा हो गए।
गृह मंत्री ने किसानों को पहली बार दिया वार्ता का प्रस्ताव
किसानों के दिल्ली की सीमाओं पर जमा होने के बाद 28 नवंबर, 2020 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने किसानों को पहली बार वार्ता का प्रस्ताव दिया, लेकिन किसानों बातचीत से इनकार करते हुए जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन की बात कही।
दिसंबर 2020 में शुरु हुआ वार्ताओं का दौर
दिसंबर 2020 में किसान और सरकार के बीच वार्ताओं का दौर हुआ। 1, 3, 5 और 8 दिसंबर की वार्ताओं में कोई नतीजा नहीं निकला। 8 दिसंबर को किसानों ने भारत बंद का आह्वान किया। इसके बाद 30 दिसंबर, 4, 8, 15, 20 और 21 जनवरी को फिर वार्ता हुई थी। इस बीच सरकार ने किसानों को कानूनों को डेढ़ साल के लिए निलंबित करने और कानूनों पर विचार करने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन किसान सहमत नहीं हुए।
सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर लगाई रोक
किसानों ने 11 दिसंबर को कृषि कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। 16 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह कृषि कानूनों पर उपजे गतिरोध को देखते हुए एक पैनल बना सकती है, जिसमें किसान और सरकार दोनों के प्रतिनिधि रहेंगे। इसके बाद समिति का गठन किया गया। कुछ दिन बाद कोर्ट ने 12 जनवरी, 2021 को इन कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी। ऐसे में ये तीनों कानून महज 221 दिन ही प्रभावी रहे।
26 जनवरी को हिंसक हुआ किसान आंदोलन
किसानों ने 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर रैली निकालने का ऐलान किया। इसमें किसानों का एक धड़ा तय रास्ते से हटकर ITO होते हुए लाल किले पहुंच गया। उस दौरान उनकी ITO और लाल किले समेत अन्य जगहों पर पुलिस के साथ जबरदस्त भिडंत हुई और उन्होंने कई बसों और वाहनों को निशाना बनाया। हिंसा में दो लोगों की मौत और दर्जनों लोग घायल हुए थे। कुछ किसानों ने लाल किले पर सिख धर्म का झंडा भी फहराया था।
पुलिस ने 130 से अधिक प्रदर्शनकारियों को किया था गिरफ्तार
मामले को गंभीरता से लेते हुए दिल्ली पुलिस ने 44 से अधिक FIR दर्ज कर करीब 130 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया था। इसमें कई किसान नेता भी शामिल थे। हालांकि, उनमें से अनेक किसान बाद में सबूतों के अभाव में अदालत से रिहा हो गए।
आंदोलन के बीच सामने आया था टूलकिट मामला
किसान आंदोलन पर कई अंतरराष्ट्रीय हस्तियों की भी प्रतिक्रिया आई थीं। इनका सरकार ने विरोध किया था। 3 फरवरी को जलवायु परिवर्तन कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने किसान आंदोलन के समर्थन में ट्वीट कर उससे संबंधित टूलकिट साझा कर दी। दिल्ली पुलिस ने इस टूलकिट को "भारत को बदनाम" करने की साजिश बताते हुए 4 फरवरी को FIR दर्ज कर ली। इसके बाद पुलिस ने पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को गिरफ्तार किया था, लेकिन बाद में उन्हें जमानत मिल गई।
मई में किसानों ने काला दिवस मनाकर प्रधानमंत्री मोदी को लिखा पत्र
5 मार्च को पंजाब विधानसभा ने कृषि कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया। 6 मार्च को दिल्ली बॉर्डर पर किसानों के आंदोलन के 100 दिन पूरे हो गए। 15 अप्रैल को हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने प्रधानमंत्री मोदी को किसानों से बातचीत बहाल करने के लिए चिट्ठी लिखी। 22 मई को किसानों ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर आंदोलन तेज करने की चेतावनी दी और 27 मई को किसानों ने देशभर में काला दिवस मनाया।
किसानों ने संसद के पास आयोजित किया मानसून सत्र
26 जून को कृषि कानूनों के विरोध के सात महीने पूरे होने पर किसानों ने दिल्ली तक मार्च किया। जुलाई में संसद का मानसून सत्र शुरू होने के साथ किसानों ने भी संसद के पास मानसून सत्र शुरू कर दिया। इस दौरान किसानों ने कृषि कानूनों का विरोध किया। 7 अगस्त को विपक्ष के 14 नेताओं ने किसान नेताओं से मुलाकात की। 28 अगस्त को करनाल में किसानों के ऊपर लाठी चार्ज किया गया, जिसमें कई किसान घायल हुए।
सुप्रीम कोर्ट ने रास्ता रोकने के लिए किसानों को लगाई फटकार
21 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट बंद सड़कों को खुलवाने को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए किसानों को फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि किसानों को विरोध-प्रदर्शन का अधिकार है, लेकिन वह लंबे समय तक सड़कों को अवरुद्ध नहीं कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने किया कानूनों को वापस लेने का ऐलान
प्रधानमंत्री मोदी ने शुक्रवार को यानी गुरु नानक देव की 552वीं जयंती पर देश के नाम संबोधन करते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया। उन्होंने कहा, "हमारी सरकार छोटे किसानों के कल्याण के लिए सत्यनिष्ठा से कानून लेकर आई थी, लेकिन यह बात हम कुछ किसानों को समझा नहीं पाए।" उन्होंने कहा, "29 नवंबर से शुरू होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।"