केंद्र सरकार ने तीनों विवादित कृषि कानूनों को वापस क्यों लिया है?
कृषि सुधारों के नाम पर केंद्र की ओर से पिछले साल लागू किए गए तीन कृषि काननों को सरकार ने शुक्रवार को वापस ले लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को देश के नाम संबोधन में कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया। किसान संगठन इसे अपनी जीत बता रहे हैं तो विपक्षी नेता इस फैसले को मोदी सरकार की बड़ी हार करार दे रहे हैं। इसी बीच सवाल उठता है कि आखिर मोदी सरकार ने ऐसा क्यों किया?
सरकार ने सितंबर 2020 में लागू किए थे कानून
बता दें कि मोदी सरकार ने जून 2020 में कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता विधेयक और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक संसद में पेश किया था। लोकसभा में इन विधेयकों के पारित होने के बाद सरकार ने सितंबर में राज्यसभा में भी इन्हें पारित करा दिया था। उसके बाद से ये कानून लागू हो गए थे।
शुरू से ही कानूनों का विरोध कर रहे थे किसान
पंजाब और हरियाणा समेत कई राज्यों के किसान इन कानूनों को शुरू से ही विरोध कर रहे थे। उनका कहना है कि इनके जरिए सरकार मंडियों और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से छुटकारा पाना चाहती है। इसके बाद किसानों ने 25 नवंबर, 2020 से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाल दिया था। किसान और सरकार के बीच इस मुद्दे पर 12 दौर की वार्ता भी हुई, लेकिन सरकार किसानों को कानूनों के हक में राजी करने में नाकाम रही।
महज 221 दिन ही प्रभावी रहे कानून
किसानों ने इन कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इस पर लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी, 2021 को इन कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी। ऐसे में ये तीनों कानून महज 221 दिन ही प्रभावी रहे।
कानूनों को वापस लेने के लिए क्या रहेगी आगे की प्रक्रिया?
प्रधानमंत्री मोदी ने भले ही कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया है, लेकिन आधिकारिक रूप से इनकी वापसी संसद के आने वाले सत्र में ही पूरी हो सकेगी। संसद को किसी भी कानून को बनाने, संशोधित करने और निरस्त करने का अधिकार है। सरकार को संसद के आगामी सत्र में तीन कानूनों को निरस्त करने का प्रस्ताव लाना होगा। इन प्रस्तावों को उन्हीं मंत्रालयों द्वारा पेश किया जाएगा, जिन्होंने उन्हें लागू करने के लिए पेश किया था।
सरकार के कानूनों को वापस लेने के पीछे क्या हैं कारण?
सरकार ने कानूनों की वापसी के लिए कोई आधिकारिक कारण तो नहीं बताया गया है, लेकिन यह फैसला 29 नवंबर से शुरू होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र से पहले लिया है। पिछले सत्र में विपक्ष के कृषि कानूनों को लेकर किए गए जोरदार हंगामे के कारण दोनों सदनों के कामकाज को प्रभावित रहा था। इसी तरह उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और गोवा में होने वाले विधानसभा चुनावों को भी इसका अहम कारण माना जा रहा है।
निकाय और विधानसभा उपचुनावों में निराशजनक रहा था भाजपा का प्रदर्शन
पंजाब के निकाय और 13 राज्यों की 29 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में भाजपा का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा था। कई जगहों पर भाजपा को अपनी जीती हुई सीटें भी खोनी पड़ी थी। ऐसे में सरकार ने कानून वापस लेने का निर्णय किया है।
कानूनों को वापस लेने से मोदी सरकार की छवि पर क्या पड़ेगा असर?
कृषि कानूनों को वापसी के बाद अब लोगों में मोदी की सरकार की छवि पर असर पड़ने की संभावना है। समर्थकों में मोदी सरकार की छवि दृढ़ इच्छा शक्ति और सख्त कदम उठाने वाली रही है, लेकिन कृषि कानूनों की वापसी का फैसला इस छवि को हिलाने का काम कर सकता है। सरकार ने कई बार कृषि कानूनों को एतिहासिक करार देते हुए इसका समर्थन किया था, लेकिन अब इस निर्णय के बाद उसे आगे निर्णयों में सावधानी बरतनी होगी।
छह साल पहले भी मोदी सरकार को हटना पड़ा था पीछे
बता दें कि मोदी सरकार को छह साल पहले भी अपने फैसले से पीछे हटना पड़ा था। सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में 24 फरवरी, 2015 को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुन:स्थापन (संशोधन) अधिनियम, 2015 पेश किया था। इसका विपक्ष ने पुरजोर विरोध किया था। सरकार ने इस विधेयक को लोकसभा में तो पास करा लिया था, लेकिन राज्यसभा में बहुमत संख्या कम होने के कारण सरकार इसे पास नहीं करा पाई थी।
अगस्त 2015 में सरकार ने वापस ले लिया था अध्यादेश
शीतकालीन सत्र में विधेयक के पारित नहीं होने के बाद सरकार ने 3 अप्रैल को बजट सत्र में इसे फिर से पेश किया था। उस दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित अन्य नेताओं ने इसका पुरजोर विरोध किया था। राहुल गांधी ने भाजपा सरकार को उद्योगपतियों और सूट-बूट वाली सरकार करार दिया था। विपक्ष को विरोध को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने 31 अगस्त, 2015 को 'मन की बात' कार्यक्रम में अध्यादेश को वापस लेने का ऐलान कर दिया था।