
प्रधानमंत्री मोदी की पोलैंड यात्रा: कैसे रहे हैं दोनों देशों के बीच संबंध?
क्या है खबर?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को 2 दिवसीय दौरे पर पोलैंड पहुंच गए हैं। यह पिछले 45 सालों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पोलैंड की पहली यात्रा है।
प्रधानमंत्री मोदी पोलैंड के दौरे के बाद वहीं से सीधे युद्धग्रस्त देश यूक्रेन के लिए रवाना हो जाएंगे। बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के बीच प्रधानमंत्री मोदी की दोनों यात्राएं महत्वपूर्ण हैं।
ऐसे में आइए जानते हैं भारत के पोलैंड से कैसे संबंध रहे हैं और इस यात्रा के क्या मायने हैं।
संबंध
कैसे रहे हैं भारत-पोलैंड के संबंध?
भारत और पोलैंड के साल 1954 से मैत्रीपूर्ण राजनयिक संबंध रहे हैं। दोनों देशों का उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद और नस्लवाद के खिलाफ समान रुख है।
दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक संबंध भी रहे हैं। साल 1940 के दशक में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नवानगर (गुजरात का वर्तमान जामनगर) के महाराजा दिग्विजय ने बालाचडी में 1,000 से अधिक और भोसले छत्रपति ने महाराष्ट्र के कोल्हापुर के वलिवाडे में हजारों पोलिश शरणार्थियों को शिविर स्थापित किया था।
अमेरिका
अमेरिका से करीबी संबंध के लिए भारत से बनी दूरी
द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, साम्यवाद के पतन और शीत युद्ध के बाद की दुनिया में पोलैंड संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित करने के लिए आगे बढ़ा, क्योंकि नई दिल्ली के साथ उसके संबंध पीछे रह गए थे।
हालांकि, इसके बाद भी भारत और पोलैंड ने द्विपक्षीय संबंध बनाए रखे, लेकिन 1979 में पहले जैसी रणनीतिक गहराई नहीं मिल पाई। ऐसे में अधिकतर भारतीय प्रधानमंत्रियों ने वहां का दौरा ही नहीं किया।
व्यापार
भारत का सबसे बड़ा व्यापार और निवेश भागीदार रहा है पोलैंड
संबंधों में गिरावट के बावजूद पोलैंड मध्य और पूर्वी यूरोप में भारत का सबसे बड़ा व्यापार और निवेश भागीदार है।
दोनों देशों के बीच कुल द्विपक्षीय व्यापार 192 प्रतिशत बढ़ गया, जो 2013 में 1.95 अरब डॉलर (लगभग 16,800 करोड़ रुपये) से बढ़कर 2023 में 5.72 अरब डॉलर (48,000 करोड़ रुपये) हो गया।
पोलैंड एक छोटे भारतीय समुदाय का भी घर है। वहां करीब 15,000 भारतीय विभिन्न संस्थानों में काम करते हैं।
यात्रा
आखिरी बार मोरारजी देसाई ने की थी पोलैंड की यात्रा
1979 में मोरारजी देसाई के बाद मोदी पोलैंड का दौरा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं।
देसाई से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू 1955 में पोलैंड दौरा किया था। उसके बाद 1967 में इंदिरा गांधी भी वहां गई थी।
विदेश मंत्रालय के अनुसार, मोदी यात्रा के दौरान पोलैंड के राष्ट्रपति आंद्रेज डूडा से मुलाकात करेंगे और प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क के साथ द्विपक्षीय वार्ता करेंगे। इसमें कई बिंदुओं पर फोकस होने की संभावना है।
मायने
प्रधानमंत्री मोदी की पोलैंड यात्रा के क्या मायने हैं?
यूक्रेन के साथ रूस के युद्ध के मद्देनजर प्रधानमंत्री मोदी पोलैंड और यूक्रेन की यात्रा कर रहे हैं। भारत ने रूस के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध होने के कारण इस मामले में तटस्थ रुख बनाए रखा है।
प्रधानमंत्री ने 2022 में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से कहा था कि यह युद्ध का युग नहीं है।
भारत ने पुतिन की आलोचना करने से परहेज किया है और युद्ध खत्म करने के लिए बार-बार कूटनीति और बातचीत की आवश्यकता पर जोर दिया है।
तालमेल
यूक्रेन के कट्टर समर्थक पोलैंड से तालमेल बिठाए रखना है उद्देश्य
प्रधानमंत्री मोदी ने जुलाई में रूस की यात्रा कर राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात की थी। उस दौरान यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमीर जेलेंस्की ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसे एक बड़ी निराशा और शांति प्रयासों के लिए एक विनाशकारी झटका करार दिया था।
इधर, पोलैंड भी यूक्रेन का समर्थक है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी वहां का दौरा कर दोनों देशों के बीच तालमेल को बनाए रखना चाहते हैं। इसके अलावा भारत का उद्देश्य व्यापार को और मजबूत करना भी है।
अवसर
अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने के अवसर भी देख रहा भारत
उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के अनुमान के अनुसार, पोलैंड सैन्य आधुनिकीकरण के प्रयास कर रहा है और इस वर्ष रक्षा पर अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 4.12 प्रतिशत खर्च करेगा।
जैसे-जैसे पोलैंड अपने रक्षा क्षेत्र का निर्माण कर रहा है, वैसे-वैसे भारत भी सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने का अवसर देख रहा है।
यूरोप में पोलैंड की रणनीतिक स्थिति और NATO के पूर्वी हिस्से में महत्वपूर्ण भूमिका भारत के लिए मायने रखती है।