COP26: बिजली उत्पादन के लिए कोयले का इस्तेमाल रोकने पर सहमत हुए 40 से अधिक देश
क्या है खबर?
स्कॉटलैंड के ग्लासगो में चल रहे जलवायु सम्मेलन COP26 में 40 से अधिक देश कोयले का इस्तेमाल बंद करने पर सहमत हुए हैं।
कनाडा, पोलैंड, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया, यूक्रेन और वियतनाम आदि देशों ने कहा है कि वो ऊर्जा उत्पादन के लिए कोयले का उपयोग बंद करेंगे। इनमें से कुछ 2030 और कुछ 2040 के दशक से कोयला का इस्तेमाल बंद करेंगे।
धरती का तापमान बढ़ने से रोकने के लिए विशेषज्ञ ऐसे कदमों को जरूरी बता रहे हैं।
COP26
कई बड़े देश समझौते से रहे दूर
COP26 का मेजबान यूनाइटेड किंगडम (UK) कोयले के इस्तेमाल को बंद करवाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
दूसरी तरफ भारत, ऑस्ट्रेलिया, चीन और अमेरिका ने कोयले का इस्तेमाल बंद करने पर कोई फैसला नहीं लिया है। साथ ही विशेषज्ञ कह रहे हैं कि जो देश कोयला का उपयोग बंद करने का फैसला कर चुके हैं, उनकी समयसीमा बहुत आगे की है।
गौरतलब है कि कोयले का इस्तेमाल ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का एक बड़ा कारण है।
जानकारी
विकसित देशों के साथ-साथ विकासशील देशों ने भी किए हस्ताक्षर
UK के व्यापार मंत्री क्वासी क्वार्टेंग ने कहा कि दुनिया के हर कोने से ग्लासगो में इकट्ठा हुए देशों ने ऐलान किया है कि कोयला भविष्य के बिजली उत्पादन में कोई स्थान नहीं रखता। ये महत्वकांक्षी प्रतिबद्धताएं दिखाती हैं कि कोयले का अंत नजदीक है।
कई विकसित देशों के साथ-साथ विकासशील देशों ने भी इस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके अलावा 100 से अधिक वित्तीय संस्थाएं कोयले के विकास के लिए मदद देना बंद करने पर सहमत हुईं हैं।
जलवायु परिवर्तन
कोयले का इस्तेमाल रोकना जरूरी
जानकारों का कहना है कि अगर धरती के तापमान में बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना है तो विकसित देशों को 2030 से पहले कोयले का इस्तेमाल रोकना होगा।
कोयले का इस्तेमाल बंद करने के अलावा COP26 में बुधवार को ही अमेरिका, इंग्लैंड और डेनमार्क समेत 20 से अधिक सरकारें और वित्तीय संस्थान विदेशों में फॉसिल फ्यूल से चलने वाले संयंत्रों और दूसरे प्रोजेक्ट्स को मदद देना बंद करने पर सहमत हुए थे।
प्रतिक्रियाएं
समझौते पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं
कई कार्यकर्ताओं ने कोयले और फॉसिल फ्यूल के लिए फंड न देने की योजनाओं का स्वागत किया है तो कई इससे सहमत नहीं दिखे।
द गार्डियन के अनुसार, E3G थिंकटैंक के सोशल डायरेक्टर क्रिस लिटलकोट ने कहा है कि कोयले पर ये प्रतिबद्धताएं एक बड़ा कदम है। आज से दो साल पहले इसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था। यह सुधार का एक अच्छा संकेत है।
वहीं दूसरों का कहना है कि 2030 अभी दूर है।
आलोचना
आलोचक क्या कह रहे हैं?
'फ्रेंड्स ऑफ अर्थ' के निदेशक जेमी पीटर्स कहते हैं कि कोयले को अभी भी कई सालों तक पहले की तरह इस्तेमाल करने की छूट दे दी गई है।
वहीं क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क यूरोप से जुड़े एलिफ गुंदुज्येली ने कहा कि यह ऐलान गेमचेंजर नहीं है। 2030 तक फेजआउट का ऐलान होना चाहिए थे और वो इस समझौते में हनीं है। कोयला पहले से (रीन्यूएबल एनर्जी से) महंगा है और अब इसमें कोई और पैसा नहीं डालना चाहता।