#NewsBytesExplainer: देश में कैसे होंगे एक साथ चुनाव, समिति ने क्या-क्या सिफारिशें कीं?
'एक देश, एक चुनाव' को लेकर बनी समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है। इस समिति की अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कर रहे थे। समिति ने अपनी लगभग 18,000 पन्नों की रिपोर्ट में एक साथ चुनाव कराने की व्यवहारिकता, तरीके और तकनीकी पहलूओं पर बात की है। जानकारी के मुताबिक, साल 2029 में देश में एक साथ चुनाव हो सकते हैं। आइए जानते हैं कि समिति ने क्या-क्या सिफारिशें की हैं।
सबसे पहले जानिए क्या है 'एक देश, एक चुनाव'
'एक देश, एक चुनाव' से आशय विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने से है। वर्तमान में विधानसभा और लोकसभा चुनाव अलग-अलग होते हैं। जैसे पिछले साल के अंत में 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए और अब लोकसभा चुनाव होंगे। इससे पहले 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में भी लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे। हालांकि, बाद में कई राज्यों की विधानसभा भंग होने के बाद चुनाव अलग-अलग होने लगे।
समिति ने रिपोर्ट में क्या कहा?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, समिति ने सिफारिश की है कि लोकसभा, विधानसभा, पंचायत और नगर पालिका चुनाव एक साथ कराए जाएं। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने और दूसरे चरण में 100 दिन के भीतर स्थानीय निकायों के चुनाव कराने की सिफारिश की गई है। इसके लिए संविधान का अनुच्छेद 324(A) लागू करने की सिफारिश की गई है। इसके अलावा विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव तक घटाने या बढ़ाने की बात कही गई है।
सरकार बीच में गिरने पर क्या होगा?
अगर केंद्र सरकार कार्यकाल पूरा किए बिना गिर जाती है तो मध्यावधि चुनाव 5 साल के लिए नहीं, बल्कि बचे हुए कार्यकाल के लिए होगा। इससे अगले विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराए जाने में आसानी होगी। इसी तरह अगर राज्य सरकार गिरती है तो लोकसभा के बचे हुए कार्यकाल की अवधि के लिए उस राज्य में विधानसभा चुनाव कराएं जाएं। जैसे सरकार अगर 3 साल में गिर गई तो अगला विधानसभा चुनाव 2 साल के लिए होगा।
एक ही मतदाता सूची रखने की भी सिफारिश
समिति ने कहा है कि सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची और पहचान पत्र रखे जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 325 में संशोधन किया जा सकता है। चुनाव आयोग राज्य चुनाव आयोग के परामर्श से मतदाता सूची और पहचान पत्र बनाएगा। अगर विधानसभा में कोई सरकार बनाने में सक्षम नहीं हुआ तो लोकसभा का कार्यकाल पूरा होने तक चुनाव आयोग की सिफारिश पर राष्ट्रपति शासन लगाया जाएगा।
समिति ने और क्या सिफारिशें की हैं?
समिति ने कहा कि इस लोकसभा चुनाव के बाद जब संसद की बैठक होगी तो इस कदम को अधिसूचित करने के लिए एक 'नियत तिथि' निर्धारित की जानी चाहिए। इस तिथि के बाद विधानसभा चुनावों के जरिए राज्यों में गठित सरकारें केवल 2029 में एक साथ चुनाव तक की अवधि के लिए होंगी। समिति ने कहा कि अनुच्छेद 83 (संसद सदनों की अवधि) और अनुच्छेद 172 (राज्य विधानमंडलों की अवधि) में संशोधन के लिए संविधान संशोधन विधेयक पेश करना होगा।
47 में से 32 पार्टियों ने किया समर्थन
देश की 47 राजनीतिक पार्टियों में से 32 ने इस विचार का समर्थन, जबकि 15 ने विरोध किया है। समर्थन करने वाली पार्टियों में से केवल 2 ही राष्ट्रीय स्तर की हैं, एक खुद भाजपा और दूसरी नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP)। इसके अलावा वर्तमान में राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त 6 में से 4 पार्टियों, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP), बहुजन समाज पार्टी (BSP) और कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी, ने एक साथ चुनाव कराने का विरोध किया है।
समिति में कौन-कौन शामिल हैं?
पिछले साल सितंबर में केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में समिति का गठन किया था। इसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी के गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी शामिल हैं। समिति में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी को भी जगह मिली थी, लेकिन उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया था।