#NewsBytesExplainer: मतदान से पहले और बाद में कहां रहती हैं EVM और कितनी सुरक्षा होती है?
7 नवंबर को मिजोरम की सभी 40 और छत्तीसगढ़ की 20 सीटों पर विधानसभा चुनाव का मतदान हुआ। अब छत्तीसगढ़ में दूसरे चरण के मतदान के अलावा मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना में भी विधानसभा चुनाव का मतदान होगा। इन सभी राज्यों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) के जरिए मतदान संपन्न कराया जा रहा है। आइए आज EVM से जुड़े उन जरूरी सवालों के जवाब जानते हैं, जो अक्सर लोगों के मन में उठते हैं।
चुनाव से पहले EVM कहां रखी जाती हैं?
किसी भी जिले में सभी EVM को जिला निर्वाचन अधिकारी (DEO) की निगरानी में एक गोदाम में रखा जाता है। CCTV के अलावा गोदाम में डबल लॉक सिस्टम होता है और इसकी सुरक्षा में पुलिस बल हमेशा तैनात रहते हैं। चुनाव आयोग के आदेश के बिना EVM बाहर नहीं जा सकती। राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में चुनाव के समय इंजीनियर EVM की जांच करते हैं, जिसके बाद ही इसे मतदान के लिए भेजा जाता है।
EVM का आवंटन कैसे किया जाता है?
चुनाव की तारीख की घोषणा के बाद अलग-अलग मतदान केंद्रों पर EVM का आवंटन पार्टी प्रतिनिधियों की मौजूदगी में किया जाता है। राजनीतिक पार्टियों को आवंटित EVM मशीनों की क्रम संख्या की जानकारी सौंपी जाती है। पीठासीन अधिकारी या मतदान अधिकारी की निगरानी में कड़ी सुरक्षा में ही इन मशीनों को मतदान केंद्र तक ले जाया जाता है। इसके बाद मतदान शुरू होने से पहले EVM की संख्या का मिलान राजनीतिक पार्टियों के एजेंटों की मौजूदगी में किया जाता है।
EVM में कैसे दर्ज होता है मतदान?
EVM में 2 इकाइयां होती हैं- कंट्रोल यूनिट और बैलेटिंग यूनिट। ये 5 मीटर की केबल से जुड़ी होती हैं। कंट्रोल यूनिट मतदान अधिकारी के पास रखी जाती है और बैलेट यूनिट मतदाताओं के लिए होती है। मतदान अधिकारी कंट्रोल यूनिट पर मतपत्र बटन दबाकर एक मतपत्र जारी करते हैं। इसके बाद मतदाता बैलेट यूनिट में अपने पसंदीदा उम्मीदवार के सामने की बटन दबाकर मतदान करता है। इसके बाद अगले मतदाता के लिए फिर से यही प्रक्रिया दोहराई जाती है।
मतदान के बाद EVM का क्या होता है?
मतदान खत्म होने के तुरंत बाद पोलिंग बूथ से EVM को स्ट्रॉन्ग रूम नहीं भेजा जाता है। पीठासीन अधिकारी पहले EVM में दर्ज मतदान का टेस्ट करता है और फिर सभी उम्मीदवारों के पोलिंग एजेंट को इसकी एक-एक सत्यापित प्रति दी जाती है। इसके बाद EVM को सील कर दिया जाता है। इस सील पर पोलिंग एजेंट अपने हस्ताक्षर करते हैं। चुनाव में शामिल उम्मीदवार या उनके प्रतिनिधि मतदान केंद्र से स्ट्रॉन्ग रूम तक EVM के साथ जाते हैं।
स्ट्रॉन्ग रूम के अंदर और बाहर क्या सुरक्षा व्यवस्था होती है?
स्ट्रॉन्ग रूम वो कमरा होता है, जहां मतदान के बाद EVM मशीनों को रखा जाता है। चुनाव आयोग इसकी 3 स्तरीय सुरक्षा करता है। स्ट्रॉन्ग रूम के 2 अंदरूनी स्तरों की सुरक्षा केंद्रीय बलों के हाथ में होती है, वहीं सबसे बाहरी स्तर की सुरक्षा राज्य पुलिस की होती है। EVM के आसपास कोई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण नहीं रखा जाता है और न ही कोई रोशनी होती है। विजेता घोषित होने के बाद भी इन्हें लेकर कागजी कार्रवाई होती है।
स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा के लिए और क्या किया जाता है?
स्ट्रॉन्ग रूम में केवल एक ही प्रवेश द्वार होता है। यदि कोई दूसरा प्रवेश द्वार है तो उसे बंद कर दिया जाता है। प्रवेश द्वार पर CCTV कैमरा लगा होता है, जो हर गतिविधि को रिकॉर्ड करता है। स्ट्रॉन्ग रूम में प्रवेश की अनुमति पाने वाले व्यक्ति को सुरक्षा बलों द्वारा दी गई लॉग बुक पर आने-जाने का समय और नाम दर्ज करना होता है। स्ट्रॉन्ग रूम को आपातकाल स्थिति में ही खोलने की अनुमति होती है।
EVM स्ट्रॉन्ग रूम से मतगणना केंद्र तक कैसे जाती है?
EVM को स्ट्रॉन्ग रूम से मतगणना केंद्र तक भारी सुरक्षा में ले जाया जाता है। यह प्रक्रिया भी कैमरे में रिकॉर्ड होती है। मतगणना प्रक्रिया शुरू होने से पहले उम्मीदवारों के प्रतिनिधियों को EVM की सील और नियंत्रण इकाइयों की विशिष्ट ID दिखाई जाती है। मतगणना समाप्त होने के बाद मशीनों और वोटों से संबंधित कोई भी समस्या होने की स्थिति के लिए EVM को लगभग 45 दिनों के लिए फिर से स्ट्रांग रूम में रखा जाता है।