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    #NewsBytesExplainer: अमेरिकी विश्वविद्यालयों में फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शन, क्या हैं छात्रों की मांगें?
    अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों में फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शन हो रहे हैं (तस्वीर- एक्स/@sara_diggins)

    #NewsBytesExplainer: अमेरिकी विश्वविद्यालयों में फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शन, क्या हैं छात्रों की मांगें?

    लेखन आबिद खान
    Apr 28, 2024
    02:16 pm

    क्या है खबर?

    इजरायल और हमास के बीच चल रहे युद्ध की आंच अब अमेरिका तक पहुंच गई है।

    यहां के हार्वर्ड, कोलंबिया, येल और यूसी बर्कले समेत कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में इजरायल के विरोध और फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन हो रहे हैं। हजारों छात्र इन विश्वविद्यालयों के परिसर में धरने पर बैठे हैं, जिनमें से सैकड़ों को हिरासत में लिया गया है।

    आइए जानते हैं इन छात्रों की मांगें क्या हैं।

    प्रदर्शन

    सबसे पहले जानिए कितने व्यापक हैं प्रदर्शन

    अमेरिका के लगभग 25 विश्वविद्यालयों में प्रदर्शन हो रहे हैं। इनमें कोलंबिया विश्वविद्यालय, येल विश्वविद्यालय, टेक्सास विश्वविद्यालय, अटलांटा में एमोरी विश्वविद्यालय, बोस्टन में एमर्सन कॉलेज, वॉशिंगटन में जॉर्ज वॉशिंगटन विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय और दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय जैसे प्रमुख संस्थान शामिल हैं।

    सबसे व्यापक प्रदर्शन कोलंबिया और हार्वर्ड विश्वविद्यालय में हो रहे हैं। पुलिस ने अब तक करीब 550 छात्रों को हिरासत में लिया है। इस दौरान कई जगह छिटपुट हिंसा भी हुई है।

    मांग

    क्या है छात्रों की मांग?

    छात्रों की बड़ी मांग है कि ये विश्वविद्यालय उन कंपनियों में विनिवेश करे, जो या तो सीधे तौर पर इजरायल से जुड़ी हुई हैं या गाजा पट्टी में युद्ध से लाभ कमा रही हैं।

    छात्रों ने अपने विश्वविद्यालयों से उन कंपनियों से अपना निवेश वापस लेने का आह्वान किया है, जो युद्ध में इस्तेमाल होने वाले सैन्य उपकरणों की आपूर्ति करती हैं या इजरायल के युद्ध प्रयासों का समर्थन करने वाली दूसरी व्यावसायिक गतिविधियों में शामिल हैं।

    विश्वविद्यालय

    अलग-अलग विश्वविद्यालयों में अलग हैं मांगें

    अलग-अलग विश्वविद्यालयों में छात्रों की मांगें भी अलग-अलग हैं।

    न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के छात्र चाहते हैं कि विश्वविद्यालय का तेल अवीव कैंपस बंद किया जाए, क्योंकि यहां फिलिस्तीन के छात्रों को प्रवेश नहीं दिया जाता है।

    इसी तरह येल विश्वविद्यालय में प्रदर्शनकारियों का कहना है कि विश्वविद्यालय इजरायल के लिए हथियारों का निर्माण करने वाली कंपनियों से अलग हो जाए। इसके अलावा छात्र चाहते हैं कि विश्वविद्यालय गाजा में युद्धविराम की मांग का समर्थन करें।

    विनिवेश

    विनिवेश की मांग क्यों कर रहे हैं छात्र?

    दरअसल, कई विश्वविद्यालय दान में या दूसरे स्त्रोंतों से मिली रकम का इस्तेमाल स्टॉक मार्केट, रियल एस्टेट और निजी इक्विटी जैसे कई क्षेत्रों में करते हैं।

    इसका उद्देश्य इस रकम से ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाना होता है, जिसका इस्तेमाल छात्रवृत्ति, शिक्षकों के वेतन और रिसर्च जैसे कामों में किया जाता है। चूंकि, कई विश्वविद्यालयों ने इजरायल से जुड़ी कंपनियों में निवेश कर रखा है, इसलिए छात्र इस निवेश को युद्ध में अप्रत्यक्ष मदद के तौर पर देख रहे हैं।

    निवेश

    विश्वविद्यालयों ने कितना निवेश कर रखा है?

    रिपोर्ट्स के मुताबिक, हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने करीब 3 लाख करोड़, मिशिगन विश्वविद्यालय ने करीब एक लाख करोड़ और कोलंबिया विश्वविद्यालय ने करीब 91,000 करोड़ रुपये निवेश कर रखे हैं। हालांकि, ये पता नहीं है कि इनमें से कितना इजरायल से जुड़ी कंपनियों में है।

    इसके अलावा इजरायली कंपनियां और मंत्रालय इन विश्वविद्यालयों में रिसर्च के लिए भी भारी रकम देते हैं। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) में इजरायली रक्षा मंत्रालय ने शोधकर्ताओं को करोड़ों की फंडिंग दे रखी है।

    चुनौतियां

    विश्वविद्यालयों के लिए विनिवेश करना कितना चुनौतीपूर्ण?

    विश्वविद्यालयों के लिए विनिवेश करना इतना आसान नहीं है। इसके वित्तीय चुनौती के साथ ही राजनीतिक मायने भी हैं।

    विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह के विनिवेश को इजरायल को अवैध घोषित करने और फिलिस्तीन अधिकारों को अप्रत्यक्ष मान्यता देने के तौर पर भी देखा जा सकता है। दूसरा पहलू है कि विनिवेश से कंपनियों को ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन विश्वविद्यालयों की आय पर बुरा असर पड़ सकता है।

    रणनीति

    क्या पहले कभी सफल हुई है विनिवेश की रणनीति?

    वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार, 1980 के दशक में रंगभेद के मामले पर भी छात्रों ने विनिवेश की मांग की थी। तब अमेरिका के 155 विश्वविद्यालयों ने दक्षिण अफ्रीका में व्यापार करने वाली कंपनियों के साथ वित्तीय संबंधों में कटौती की थी।

    हाल ही में जीवाश्म ईंधन के मामले पर भी इस तरह के कदम विश्वविद्यालयों द्वारा उठाए गए हैं। हालांकि, हालिया सालों में इस रणनीति के व्यापक असर नजर नहीं आए हैं।

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