#NewsBytesExplainer: क्या है स्मर्फेट प्रिंसिपल? फिल्मों में पुरुष और महिला कलाकारों की संख्या से है कनेक्शन
क्या है खबर?
सिनेमा पिछले कई दशकों से हमारा मनोरंजन कर रहा है और उसमें बहुत-से बदलाव देखने को मिले हैं, लेकिन अभी भी कई चीजें ऐसी हैं, जो काफी हद तक वैसे ही चलती आ रही हैं।
इनमें से एक फिल्मी दुनिया में होने वाली लैंगिक राजनीति है। क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि फिल्मों में पुरुष कलाकारों की संख्या महिलाओं से ज्यादा होती है?
इसी को स्मर्फेट प्रिंसिपल के रूप में जाना जाता है।
परिभाषा
क्या कहती है परिभाषा?
परिभाषा कहती है, "स्मर्फेट प्रिंसिपल वह है, जिसमें फिल्म की कास्ट में पुरुषों बहुत सारे हों और महिला केवल एक।"
सीधे शब्दों में कहें तो किसी भी फिल्म में बहुत सारे पुरुष कलाकारों के साथ एक महिला कलाकार का होना स्मर्फेट प्रिंसिपल कहलाता है।
मतलब यह है कि महिला किरदार को कहानी में मुख्य रूप से इस्तेमाल ना कर सामान सरीखा किया जाता है। वह पटकथा के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं होती और पुरुषों की छाया में काम करती हैं।
उत्पत्ति
कैसे पड़ा नाम?
काथा पोलिट नामक अमेरिकी आलोचक ने 1991 में द न्यूयॉर्क टाइम्स में 'स्मर्फेट प्रिंसिपल' शब्द का पहली बार इस्तेमाल किया था।
अब बताते हैं कि आखिर इसका नाम स्मर्फेट कैसे पड़ा? दरअसल, इस प्रिंसिपल का जुड़ाव मशहूर कॉमिक बुक 'स्मर्फ्स' के महिला किरदार स्मर्फेट से भी है। वह कथित तौर इस कॉमिक बुक में एकमात्र महिला है। इस बुक में बाकी सभी लड़के या पुरुष हैं।
ऐसे में इस प्रिंसिपल का नाम उसी किरदार पर रखा गया है।
इस्तेमाल
बॉलीवुड की कई फिल्मों में हुआ इस्तेमाल
इस प्रिंसिपल का इस्तेमाल पिछले कई दशकों से बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक मुख्य रूप से किया जा रहा है।
हालांकि, बॉलीवुड ने लंबा सफर तय करते हुए कई चीजों में बदलाव किया है, लेकिन कई फिल्में हैं, जो इस प्रिंसिपल पर सटीक बैठती हैं।
उदाहरण के रूप में '3 इडियट्स' में करीना कपूर खान, 'मुन्ना भाई MBBS' में ग्रेसी सिंह, 'PK' में अनुष्का शर्मा, 'ड्रीम गर्ल 2' में अनन्या पांडे और 'हे बेबी' में विद्या बालन।
जानकारी
हॉलीवुड में भी होता है इस्तेमाल
हॉलीवुड भी ऐसी फिल्मों के लिए कुख्यात है, जिनका नेतृत्व पुरुष अभिनेता करते हैं और महिलाओं को सिर्फ सामान की तरह इस्तेमाल किया जाता है। अगर इसके उदाहरण पर नजर डालें तो मार्वल्स और DC की ज्यादातर फिल्मों में इस प्रिंसिपल का इस्तेमाल किया गया।
बदलाव
महिलाओं की छाया में काम करने पर मजबूर हुए पुरुष
जैसे-जैसे समय बदल रहा है, वैसे-वैसे सिनेमा में लैंगिक समानता पर बहस बढ़ गई है। अब सभी महिला कलाकार मुख्य किरदार निभाना चाहती हैं।
यही वजह है कि अब फिल्म निर्माता महिला कलाकारों पर सख्ती से ध्यान देते हैं। महिलाएं जहां फिल्मों का नेतृत्व करती हैं, वहीं पुरुष अभिनेता उनकी छाया में काम करते हैं।
उदाहरण के लिए तापसी पन्नू की 'धक धक' और भूमि पेडनेकर की 'थैंक यू फॉर कमिंग' जैसी हिंदी फिल्मों को ले सकते हैं।
बराबरी
धीरे-धीरे बढ़ रही महिलाओं की हिस्सेदारी
अगर फिल्म निर्माताओं और कलाकारों की मानें तो हिंदी फिल्मों में पिछले दशकों की तुलना में अब किसी भी फिल्म के सेट पर महिलाओं की मौजूदगी ज्यादा रहती है।
अब फिल्मों से जुड़े सभी विभागों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ी है, लेकिन अब भी यह पुरुषों की बराबरी से कम है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, तापसी पन्नू ने बताया था कि 'रश्मि रॉकेट' के सेट पर महिलाओं की तादाद 50% के लगभग थी, जिसे देखकर उन्हें काफी खुशी हुई थी।
सिटकॉम्स
टीवी पर देखने मिलती है बराबरी
फिल्मों के मुकाबले टीवी पर प्रसारित होने वाले सिटकॉम्स में महिलाओं को अपनी प्रतिभा दिखाने का ज्यादा मौका मिलता है। हमारे सामने हिंदी और इंग्लिश सिनेमा में प्रसारित होने वाले ऐसे कई सिटकॉम हैं।
'द ऑफिस', 'शिट्स क्रीक', 'फ्रेंड्स' जैसे हॉलीवुड के कुछ सिटकॉम अच्छे उदाहरण हैं, जहां महिला और पुरुष कलाकारों की संख्या में संतुलन देखा गया है।
ऐसा ही कुछ भारतीय सिटकॉम 'कॉमेडी नाइट्स विद कपिल', 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' में भी देखा गया है।