#NewsBytesExplainer: विदेश दौरे पर कैसे होती है अमेरिकी राष्ट्रपति की सुरक्षा?
नई दिल्ली में आयोजित होने वाले G-20 शिखर सम्मेलन में दुनिया के शीर्ष नेता जुटेंगे। इस देखते हुए दिल्ली में पुख्ता सुरक्षा इंतजामात किए गए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन भी सम्मेलन में शिरकत करेंगे। उनकी सुरक्षा में अमेरिकी सीक्रेट सर्विस के एजेंट्स मौजूद रहेंगे। ये अमेरिकी राष्ट्रपति की सुरक्षा से जुड़ा एक विशेष प्रोटोकॉल है। आइए जानते हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति की सुरक्षा का क्या प्रोटोकॉल होता है और उनकी सुरक्षा कितनी मजबूत होती है।
क्या है अमेरिकी सीक्रेट सर्विस?
अमेरिकी राष्ट्रपति के सुरक्षा प्रोटोकॉल से पहले अमेरिकी सीक्रेट सर्विस एजेंसी के बारे में जानते हैं। ये एजेंसी 1865 में बनी थी, लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति की सुरक्षा का काम इसे 1901 में सौंपा गया था। सीक्रेट सर्विस में लगभग 7,000 एजेंट और अफसर काम करते हैं, जिनमें महिलाएं भी होती हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति के कड़े सुरक्षा प्रोटोकॉल के पीछे एक बड़ी वजह ये भी है कि पूर्व में 4 अमेरिकी राष्ट्रपतियों की हत्या हो चुकी है।
राष्ट्रपति की सुरक्षा में सीक्रेट सर्विस की क्या भूमिका?
अमेरिकी राष्ट्रपति को दुनिया का सबसे ताकतवर राष्ट्रपति माना जाता है। उनकी सुरक्षा के जुड़ा हर फैसला सीक्रेट सर्विस लेती है। अगर अमेरिकी राष्ट्रपति का कोई विदेश दौरा तय होता है तो इसके लगभग 3 महीने पहले उनकी सुरक्षा में तैनात सीक्रेट सर्विस सुरक्षा के इंतजाम करना शुरू कर देती है। अमेरिकी राष्ट्रपति एक तरह के सुरक्षा कवच में चलते हैं, जिसमें कई स्तर की सुरक्षा व्यवस्था होती है। राष्ट्रपति चाहकर भी इसके दायरे से बाहर नहीं जा सकते।
त्रिस्तरीय सुरक्षा घेरे में रहते हैं अमेरिकी राष्ट्रपति
अमेरिकी राष्ट्रपति का त्रिस्तरीय सुरक्षा घेरा होता है। सबसे अंदर वाले घेरे में राष्ट्रपति प्रोटेक्टिव डिविजन एजेंट, फिर बीच में सीक्रेट सर्विस एजेंट और उसके बाद अमेरिकी पुलिसकर्मी होते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति के दौरे से पहले सीक्रेट सर्विस और व्हाइट हाउस का स्टाफ लोकल सुरक्षा एजेंसियों से साथ मिलकर तय करती है कि राष्ट्रपति कहां ठहरेंगे। इसके बाद उस जगह की छानबीन होती है और सीक्रेट सर्विस की हामी के बाद ही राष्ट्रपति उस जगह पर ठहरते हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति यात्रा कैसे करते हैं?
अमेरिकी राष्ट्रपति अपने आधिकारिक 'एयरफोर्स वन' से ही विदेश यात्रा करते हैं। उनके एयरफोर्स वन के साथ एक विमान बोइंग C-17 ग्लोबमास्टर भी चलता है। इसमें एक हेलीकॉप्टर, उनकी बुलेटप्रूफ कारों का काफिला, अन्य एजेंट और स्टाफ होता है। सीक्रेट सर्विस और लोकल एजेंसी राष्ट्रपति के काफिले का रूट तय करती है। वह ये भी सुनिश्चित करती हैं कि कैसे आपात स्थिति में राष्ट्रपति को सुरक्षित रखा जा सकता है और आसपास सुरक्षित जगह कौन-सी है।
अमेरिकी राष्ट्रपति अपनी बुलेटप्रूफ कार से जाते हैं एक से दूसरी जगह
अमेरिकी राष्ट्रपति के विदेश दौरे की तारीख नजदीक आते ही सीक्रेट सर्विस एजेंट उनकी कारों के काफिले के रूट में पड़ने वाले हर एक स्टॉप की जांच करते हैं। राष्ट्रपति अपनी बुलेटप्रूफ कार 'द बीस्ट' से आयोजन स्थल तक पहुंचते हैं। उनकी कार किसी भी तरह का हमले झेल सकती है। इस कार में एक पैनिक बटन, अलग से ऑक्सीजन सप्लाई, राष्ट्रपति के मैचिंग ब्लड के अलावा एक सैटेलाइट फोन रहता है, जो हर वक्त पेंटागन से कनेक्ट रहता है।
और क्या सुरक्षा इंतजाम होते हैं?
अमेरिकी राष्ट्रपति जिस होटल के रुकते हैं, उनके लिए होटल का न सिर्फ पूरा फ्लोर खाली होता है, बल्कि ऊपर और नीचे के फ्लोर भी खाली रखे जाते हैं। राष्ट्रपति के होटल रूम से फोन और टीवी हटा दिये जाते हैं और उस रूम की पूरी जांच पड़ताल के बाद खिड़कियों पर भी बुलेट प्रूफ शील्ड लगा दी जाती है। इसके अलावा राष्ट्रपति के साथ उनका कुकिंग स्टाफ भी होता है, जो उनके लिए खाना बनाता और परोसता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति के सीक्रेट ब्रीफकेस की सुरक्षा भी सीक्रेट सर्विस के जिम्मे
अमेरिकी सीक्रेट सर्विस के कंधों पर एक और बड़ी जिम्मेदारी होती है। उन्हें राष्ट्रपति के साथ हर वक्त मौजूद रहने वाले अमेरिकी सेना के व्यक्ति को भी सुरक्षित रखना होता है, जिसके पास परमाणु मिसाइलों को लॉन्च करने वाला ब्रीफकेस होता है। दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति की सुरक्षा में तैनात एक व्यक्ति के पास ये काले रंग का ब्रीफकेस होता है। इस ब्रीफकेस के जरिए कहीं से भी अमेरिका अपनी परमाणु मिसाइलें लॉन्च कर सकता है।
न्यूजबाइट्स प्लस
अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर बाइडन पहली बार भारत दौरे आ रहे हैं। वह भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने चाहते हैं। इस दौरान भारत-अमेरिका के बीच कई समझौतों पर सहमति बन सकती है। इनमें छोटे परमाणु रिएक्टर स्थापित करने और लड़ाकू विमान इंजन का निर्माण शामिल है। इसके अलावा भारत-अमेरिका के बीच शैक्षणिक कार्यक्रमों को बढ़ाने, H-1B वीजा नियमों में ढील और दोनों देशों में अपने-अपने नए दूतावास खोलने की घोषणा भी हो सकती है।