अमेरिका के दिवालिया होने का खतरा टला? ऋण सीमा बढ़ाने वाला विधेयक निचले सदन से पारित
अमेरिका से फिलहाल दिवालिया होने का खतरा टलता दिख रहा है। बुधवार को 31.4 ट्रिलियन डॉलर की ऋण सीमा को बढ़ाने वाला विधेयक अमेरिकी संसद के निचले सदन 'हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव' से पारित हो गया। विधेयक के समर्थन में 314 तो विरोध में 117 सांसदों ने वोट किया। राष्ट्रपति जो बाइडन के लिए ये बड़ी राहत भरी खबर है क्योंकि हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव में रिपब्लिकन पार्टी के पास बहुमत था। अब विधेयक को सीनेट में पेश किया जाएगा।
डेमोक्रेटिक पार्टी के 46 सांसदों ने किया विरोध
विधेयक के पक्ष में डेमोक्रेटिक पार्टी के 165 सांसदों ने वोट किया, लेकिन 46 ने इसके विरोध में वोटिंग की। बाइडन डेमोक्रेटिक पार्टी से ही आते हैं। रिपब्लिकन पार्टी के 149 सांसदों ने इसका समर्थन किया और 71 ने विरोध किया। इस विधेयक में ऋण सीमा को 1 जनवरी, 2025 तक बढ़ाने का प्रावधान है। वोटिंग के बाद बाइडन ने कहा, "यह विधेयक अमेरिकी लोगों और अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी खबर है।"
सीनेट में लाया जाएगा विधेयक
हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव से पारित होने के बाद अब विधेयक को सीनेट में पेश किया जाएगा। सीनेट में डेमोक्रेटिक पार्टी को बहुमत है, इस आधार पर उम्मीद लगाई जा रही है कि यहां विधेयक पारित हो जाएगा। इसके बाद विधेयक को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए भेजा जाएगा। अमेरिका को दिवालिया होने से बचने के लिए बाइडन को विधेयक को 5 जून से पहले पारित कराना होगा। सीनेट में विधेयक रुकने पर एक बड़ा संकट पैदा हो सकता है।
बाइडन और केविन मैक्कार्थी के बीच हुआ था समझौता
ऋण सीमा बढ़ाने को लेकर बाइडन और अमेरिकी कांग्रेस के स्पीकर केविन मैक्कार्थी के बीच समझौता हुआ था। कई शर्तों के साथ दोनों नेताओं ने ऋण सीमा बढ़ाने पर सहमति जताई थी। इसके मुताबिक, गैर-रक्षा मदों पर सरकारी खर्च को 2 साल तक के लिए स्थिर रखा जाएगा और फिर इसमें मात्र 1 प्रतिशत की बढ़ोतरी की जाएगी। मैक्कार्थी ने कहा था कि इस दौरान न कोई नया टैक्स लगाया जाएा और न कोई नया सरकारी कार्यक्रम शुरू किया जाएगा।
क्या होती है ऋण सीमा?
किसी भी देश की तरह अमेरिकी सरकार अपने खर्चों को पूरा करने के लिए ऋण लेती है। इस ऋण की एक सीमा होती है, जिसे अमेरिका की संसद ने कानून बनाकर तय कर रखा है। इसे ही ऋण सीमा कहा जाता है। वर्तमान में ये सीमा 31.4 ट्रिलियन डॉलर तय है। हालांकि, इस सीमा में बदलाव होता रहता है। 1960 से लेकर अब तक 78 बार इसमें बदलाव हुआ है।