कनाडा में खालिस्तान समर्थक प्रदर्शनों को क्यों अनदेखा कर रही है ट्रू़डो सरकार?
क्या है खबर?
कनाडा में खालिस्तान समर्थकों ने विरोध-प्रदर्शन और भारतीय राजनयिकों को धमकी दी है। इसके बाद से भारत और कनाडा के राजनयिक रिश्तों में तल्खी देखने को मिली है।
भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर का आरोप है कि ट्रूडो सरकार वोटबैंक की राजनीति के चलते खलिस्तानियों पर कार्रवाई करने से कतरा रही है।
आइए जानते हैं कि यह मामला क्या है और भारत की आपत्तियों को कनाडा सरकार क्यों अनसुना कर रही है।
मामला
क्या है मामला?
पिछले महीने कनाडा में आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की वैंकूवर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उसे भारत सरकार ने आतंकवादी घोषित किया था।
इसके बाद प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिख फॉर जस्टिस (SFJ) ने निज्जर की हत्या के लिए भारत सरकार को दोषी करार ठहराते हुए 8 जुलाई को कनाडा समेत कई देशों में प्रदर्शन का ऐलान किया है।
SFJ ने सोशल मीडिया में पोस्टर जारी करते हुए भारतीय राजनयिकों को धमकी भी दी है।
भारत
भारत सरकार ने क्या कहा?
8 जुलाई को खालिस्तान समर्थकों के संभावित प्रदर्शन से पहले भारत सरकार ने कहा है कि कनाडा में खालिस्तान समर्थकों द्वारा आतंकवाद को सही ठहराने के लिए अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग हो रहा है।
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भारतीय राजनयिकों को खालिस्तान समर्थकों की ओर से दी जा रही धमकी पर नाराजगी जताते हुए कनाडा सरकार से प्रदर्शन को रोकने की अपील की है।
जानकारी
कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने क्या कहा था?
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तान समर्थकों के प्रदर्शनों को अभिव्यक्ति की आजादी बताया था। उन्होंने कहा, "सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि हिंसा और आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई हो। सरकार ने हमेशा से हिंसा और धमकियों को बेहद गंभीरता से लिया है।"
भारत
क्या हैं ट्रूडो सरकार पर आरोप?
गुरुवार को भारतीय विदेश मंत्री ने कहा था कि कनाडा में खालिस्तानियों की हरकतें इसलिए बढ़ रही हैं, क्योंकि वो वोटबैंक की बड़ी राजनीति का हिस्सा हैं।
उनका आरोप है कि कनाडा सरकार राजनीतिक फायदे को देखते हुए खालिस्तान समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही है और इससे कारण कनाडा में भारत विरोधी गतिविधियां तेजी से बढ़ी हैं।
उन्होंने कहा कि ट्रूडो सरकार हमेशा खालिस्तान समर्थकों के भारत विरोधी प्रदर्शन और हिंसा पर केवल बयानबाजी करती रही है।
आरोपों
भारत सरकार के आरोपों में कितनी सच्चाई?
कनाडा में भारतीय मूल के 24 लाख लोग हैं। इनमें से 7 लाख सिख हैं, जिन्हें कनाडा सरकार एक बड़े अल्पसंख्यक वोटबैंक के तौर पर देखती है।
BBC की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में कनाडा की कुल आबादी में अल्पसंख्यक 22.3 प्रतिशत थे और 2036 तक कनाडा की कुल आबादी में अल्पसंख्यक 33 प्रतिशत हो जाएंगे।
यह भी एक बड़ा कारण है कि खालिस्तान समर्थकों पर कार्रवाई करके ट्रूडो सरकार अल्पसंख्यक वोटबैंक को नहीं गंवाना चाहती है।
कनाडा
पहली बार कनाडा कब पहुंचे सिख?
बताया जाता है कि 1897 में महारानी विक्टोरिया ने ब्रिटिश भारतीय सैनिकों के एक दल को लंदन आमंत्रित किया था। इस दल में मेजर केसर सिंह भी शामिल थे, जो कनाडा में बसने वाले पहले सिख थे।
उनके ब्रिटिश कोलंबिया में बसने बाद भारत से कई सिखों के कनाडा में बसने का फैसला किया था और कुछ सालों में 5,000 भारतीय ब्रिटिश कोलंबिया पहुंच गए, जिनमें से 90 फीसदी सिख थे।
तब भारतीय के कनाडा बसने का विरोध भी हुआ।
राजनीति
कनाडा सरकार में सिख समुदाय का कितना प्रतिनिधित्व?
कनाडा में सिखों की आबादी लगातार बढ़ रही है। सरकार में भी सिख समुदाय के प्रतिनिधियों का दबदबा है। कनाडा की संसद के दोनों सदनों में कई सिख सांसद हैं।
इसी वजह से न सिर्फ प्रधानमंत्री ट्रूडो बल्कि कनाडा के कंजर्वेटिव विपक्षी पार्टी के नेताओं ने भी भारतीय राजनयिकों को खालिस्तान समर्थकों द्वारा निशान बनाए जाने की खुली धमकी पर कुछ नहीं बोला है।
ऐसे में कनाडा में खालिस्तान समर्थकों के विरोध प्रदर्शनों से भारत की चिंता बढ़ी है।
हाल
हाल में कनाडा में बढ़ी खालिस्तानी गतिविधियां
कनाडा में हाल ही में खालिस्तानी गतिविधियां बढ़ी हैं। 4 जून को कनाडा के ब्रैम्पटन में खालिस्तान समर्थकों ने एक झांकी निकाली थी, जिसमें पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के दृश्य को दिखाया गया था।
मार्च में भी अमृतपाल सिंह पर हुई कार्रवाई के बाद कनाडा में भारतीय दूतावास के सामने खालिस्तानियों ने प्रदर्शन किया था।
19 जून को यहां आतंकी निज्जर की हत्या के बाद गतिविधियां फिर बढ़ गई हैं।