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#NewsBytesExplainer: प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल, जानिए जंगलों में कैसे होती है बाघों की गिनती
देश में बाघों की संख्या 2018 के मुकाबले 200 बढ़कर 3,167 हो गई है

#NewsBytesExplainer: प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल, जानिए जंगलों में कैसे होती है बाघों की गिनती

लेखन आबिद खान
Apr 09, 2023
06:32 pm

क्या है खबर?

बाघों को बचाने के लिए 1973 में शुरू किए गए प्रोजेक्ट टाइगर को 50 साल पूरे हो गए हैं। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज बाघ संरक्षण के लिए अमृतकाल का विजन जारी किया और इंटरनेशनल बिग कैट्स अलायंस (IBCA) लॉन्च किया। उन्होंने देश में बाघों की जनसंख्या के ताजा आंकड़े भी जारी किए, जिसके मुताबिक, देश में बाघों की संख्या 3,167 हो गई है। समझते हैं आखिर घने जंगलों में बाघों की गिनती कैसे की जाती है।

बटर पेपर

बाघों की गिनती करने बटर पेपर वाला तरीका 

1973 में जब प्रोजेक्ट टाइगर शुरू हुआ, तब कर्मचारी बाघ के पैरों के निशान को ट्रैक करने के लिए बटर पेपर का इस्तेमाल करते थे। दरअसल, हमारे फिंगरप्रिंट की तरह हर बाघ के पैरों के निशान भी अलग होते हैं। कर्मचारी बाघ के फुट प्रिंट को बटर पेपर पर उकेरकर इसका इस्तेमाल विशेष बाघ को ट्रैक करने के लिए करते थे। हालांकि, खड़े, बैठे और दौड़ते हुए बाघ के फुट प्रिंट अलग होते हैं, इसलिए ये तकनीक विश्वसनीय नहीं रही।

कैमरा

कैमरा ट्रैप मेथड

कैमरा ट्रैप मेथड में कैमरे का इस्तेमाल कर बाघों की गिनती की जाती है। दरअसल, फुट प्रिंट की तरह बाघ के शरीर पर बनी धारियां भी अलग होती है। धारियों के मिलान के लिए कैमरे से बाघ के दोनों तरफ से फोटो खींचे जाते हैं। इसके लिए जंगलों में बाघों की आवाजाही वाले इलाकों में घुटने की ऊंचाई पर कैमरे फिट किए जाते हैं। हर कैमरे को खास नंबर दिया जाता है और इनकी लोकेशन भी ट्रैक की जाती है।

DNA

DNA तकनीक का भी होता है इस्तेमाल 

बाघों की गिनती के लिए कैमरे का इस्तेमाल करने में जहां परेशानी आती है, वहां DNA तकनीक का इस्तेमाल भी किया जाता है। हालांकि, यह काफी महंगा होता है। इसमें बाघों को उनके मल से पहचाना जाता है। बाघों के मल-मूत्र को भारतीय वन्य जीव संस्थान, देहरादून भेजा जाता है। वहां, फॉरेंसिक लैब में इसकी जांच की जाती है। हालांकि, इस तकनीक का इस्तेमाल बेहद कम किया जाता है।

गणना

2018 में 3.5 करोड़ तस्वीरों से हुई थी बाघों की जनगणना

साल 2018 में बाघों की गिनती के लिए देशभर की 141 जगहों पर 26,838 कैमरे लगाए गए थे। इस दौरान 20 राज्यों में 3,81,400 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में कैमरे लगाए गए थे। इन कैमरों से कुल 3.5 करोड़ तस्वीरें ली गई, जिनमें से 76,523 तस्वीरों में बाघ नजर आए थे। इस दौरान 2,461 बाघों की व्यक्तिगत तस्वीरें खींची गई थीं। इन सभी तस्वीरों को सेंट्रल डाटाबेस में भेजकर अलग-अलग बाघ की धारियों के आधार पर पहचान की गई।

जोन

सर्वे के लिए बनाए गए हैं 5 जोन

भारत में बाघों से जुड़े सर्वे के लिए 5 अलग जोन बनाए गए हैं। इन्हें गंगा के मैदान, मध्य भारत और पूर्वी घाट, पश्चिमी घाट, उत्तर पूर्वी पहाड़ियां और ब्रह्मपुत्र के मैदान और सुंदरबन इलाकों में बांटा गया है। बाघों की गिनती से जुड़ी एक खात बात और है। जनगणना में बाघों की संख्या का औसत आंकड़ा जारी किया जाता है। 2018 की गणना में भारत में इनकी संख्या 2,602 से 3,346 मानी गई और इसका औसत 2,967 माना गया।

राज्य

2018 में क्या था बाघों की आबादी का आंकड़ा

2018 में हुई बाघों की जनगणना में देश में बाघों की संख्या 2,967 सामने आई थी। उस वक्त सबसे ज्यादा 526 बाघ मध्य प्रदेश में मिले थे। इसके बाद कर्नाटक में 524, उत्तराखंड में 442, महाराष्ट्र में 312 और तमिलनाडु में 264 बाघ मिले थे। बता दें कि देश में बाघों की जनगणना के आंकड़े हर 4 साल में जारी किए जाते हैं। भारत में आधुनिक तरीके से बाघों की गिनती का काम 2006 में शुरू हुआ था।

प्रोजेक्ट टाइगर

बाघों के संरक्षण के लिए भारत ने शुरू किया था प्रोजेक्ट टाइगर

भारत सरकार ने 1 अप्रैल 1973 को भारत में बाघों की लगातार घटती आबादी को बचाने के उद्देश्य से प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की थी। इंदिरा गांधी सरकार ने 1973 में उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क से इस परियोजना को शुरू किया था। शुरुआत में भारत में केवल 9 टाइगर रिजर्व इस परियोजना के अंडर आते थे। वर्तमान में परियोजना के तहत देश के 18 राज्यों में फैले हुए 50 टाइगर रिजर्व को शामिल किया गया है।