रूस के हमले से जेपोरजिया परमाणु संयंत्र में लगी आग ने दिलाई चेर्नोबिल हादसे की याद
रूस और यूक्रेन के बीच पिछले नौ दिनों से जारी युद्ध में शुक्रवार का दिन बड़ा ही चिंताजनक रहा। रूसी सेना के हमले के कारण जेपोरजिया परमाणु ऊर्जा संयंत्र में आग लग गई। इस घटना ने पूरी दुनिया को चिंतित कर दिया। गनीमत रही कि समय रहते आग पर काबू पा लिया गया, नहीं तो 36 साल पहले घटित हुए चेर्नोबिल परमाणु हादसे से 10 गुना अधिक तबाही मच सकती थी। आइए जानते हैं क्या था चेर्नेबिल परमाणु हादसा।
संयंत्र के एक हिस्से में आग लगने से बढ़ गई थी बड़े हादसे की आशंका
रूसी सेना ने संयंत्र को चारों ओर से घेर पर हमला करना शुरू कर दिया था।इसके कारण संयंत्र के एक हिस्से में आग लग गई थी और इसने बड़ा परमाणु हादसा होने की आशंकाओं को जन्म दे दिया था। हमले में एक ट्रेनिंग बिल्डिंग और लैबोरेट्री प्रभावित हुई थी। हालांकि, बाद में आग पर काबू पा लिया गया और किसी भी तरह के रिसाव की संभावना को खत्म कर दिया। यह यूरोप का सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा संयंत्र है।
IAEA ने दी गंभीर खतरे की चेतावनी
हमले के बाद यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा और इंटरनेशन एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) ने रूस से हमला रोकने की अपील करते हुए चेतावनी दी कि यदि रिएक्टर पर हमला होता है तो चेर्नोबिल हादसे से 10 गुना अधिक खतरा होगा।
36 साल पहले हुआ था चेर्नोबिल परमाणु हादसा
बता दें कि 36 साल पहले 26 अप्रैल, 1986 को तत्कालीन सोवियत संघ के चेर्नोबिल के परमाणु ऊर्जा संयंत्र में भयानक विस्फोट हुआ था। इसमें एक झटके में 32 कर्मचारियों की मौत हो गई थी और रेडिएशन से सैकड़ों कर्मचारी झुलस गए थे। सोवियत संघ ने हादसे को छिपाने का प्रयास किया था, लेकिन स्वीडन सरकार की एक रिपोर्ट के बाद उसने इस हादसे को मान लिया था। सोवियत संघ के बंटवारे के बाद चेर्नोबिल यूक्रेन में आ गया था।
अंतरराष्ट्रीय स्तर कमजोर पाए गए चेर्नोबिल संयंत्र के रिएक्टर
चेर्नोबिल ऊर्जा संयंत्र में 1970 से 1980 के बीच तैयार किए गए सोवियत डिजाइन के चार RBMK-1000 परमाणु रिएक्टर लगे थे। जांच में इन्हें अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब के कमजोर और खतरे वाला पाया गया था। RBMK रिएक्टर्स प्रेशर ट्यूब डिजाइन के थे, जिनमें यूरेनियम-235 डाईऑक्साइड को पानी गर्म करने के लिए ईंधन की तरह उपयोग किया जाता था। जिससे भाप निकलती थी। इससे रिएक्टर के टर्बाइन चलते थे और बिजली पैदा होती थी।
प्रीप्यत शहर से तीन किलोमीटर दूरी पर स्थित है चेर्नोबिल संयंत्र
चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र राजधानी कीव से 130 किलोमीटर और प्रीप्यत शहर से तीन किमी की दूरी पर स्थित है। चेर्नोबिल शहर इस संयंत्र से 15 किलोमीटर दूर स्थित है। उस समय वहां 12,000 लोग ही रहते थे। इस संयंत्र में चार रिएक्टर थे।
कैसे हुआ था चेर्नोबिल संयंत्र में हादसा?
परमाणु विकिरण के प्रभावों पर संयुक्त राष्ट्र की वैज्ञानिक समिति के अनुसार, 26 अप्रैल, 1986 को चेर्नोबिल संयंत्र में जांच चल रही थी। उसी दौरान अचानक धमाका हो गया। संयंत्र के संचालक किसी इलेक्ट्रिकल सिस्टम की जांच करना चाहते थे। उन्होंने जरूरी कंट्रोल सिस्टम्स को बंद कर दिया था, जो सुरक्षा के नियमों के खिलाफ है। इससे रिएक्टर खतरनाक स्तर पर असंतुलित हो गए और उसके बाद रिएक्टर चार में अचानक भयानक विस्फोट हो गया।
कुछ ही देर में हो गई 15 कर्मचारियों की मौत
इस हादसें के बाद रेडिएशन का शिकार होने के कारण कुछ ही घंटों में 15 कर्मचारियों की मौत हो गई थी। शुरुआती आग को तो करीब पांच घंटे में बुझा लिया गया था, लेकिन ग्रेफाइट की आग 10 दिनों तक जलती रही। इसे बुझाने में करीब 250 फायरफाइटर लगे रहे। फटे हुए रिएक्टर से आयोडीन-131, सेसियम-134 और सेसियम-137 का रेडिएशन निकल रहा था। आयोडीन-131 का रेडिएशन तो आठ दिन में खत्म हो गया था, लेकिन सेसियम का रेडिएशन बना रहा।
तेजी से फैलने लगा था सोडियम का रेडिएशन
सोडियम के रेडिएशन को फैलते देखकर 27 अप्रैल तक प्रीप्यत शहर को खाली कराया लिया गया। हादसे के 36 घंटे बाद तक लोगों में रेडिएशन का असर दिखने लग गया। ऐसे में इस हादसे में कुल 32 कर्मचारियों की मौत हुई थी। बाद में 1,16,000 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया और अगले कुछ सालों में 2.20 लाख लोगों को कम रेडिएशन इलाकों में भेज दिया गया। हालांकि, इसका प्रभाव लंबे समय तक नजर आया।
रेडिएशन के कारण बढ़े थॉयराइड कैंसर के मामले
इस हादसे में फैले रेडिएशन के कारण थॉयराइड कैंसर के मामलों में इजाफा हो गया था। 1991 से 2015 के बीच इस बीमारी के करीब 20,000 से अधिक मामले सामने आए थे। इनमें से ज्यादातर मरीजों की उम्र 18 साल से भी कम रही थी।
पर्यावरण पर भी नजर आया था हादसे का प्रभाव
टेक्सास टेक यूनिवर्सिटी के नेशनल साइंस रिसर्च लेबोरेटरी के अनुसार चेर्नोबिल हादसे का पर्यावरण पर भी बुरा असर देखने को मिला था। रेडिएशन के कारण आसपास के जंगलों के पेड़ सूख गए थे। इसके अलावा सभी पेड़ों का रंग लाल हो गया। इसके चलते बाद में इस क्षेत्र को रेड फॉरेस्ट नाम दे दिया गया। बाद में पेड़ों को गिरा दिया और उनके तनों को जमीन में दफन कर दिया गया। इसी तरह रिएक्टर को सील बंद कर दिया था।