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    रूस और यूक्रेन के बीच तनाव क्यों है और इसकी शुरुआत कहां से हुई?
    रूस और यूक्रेन के बीच तनाव क्यों हैं और इसकी शुरुआत कहां से हुई?

    रूस और यूक्रेन के बीच तनाव क्यों है और इसकी शुरुआत कहां से हुई?

    लेखन प्रमोद कुमार
    Dec 19, 2021
    02:34 pm

    क्या है खबर?

    इन दिनों रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे तनाव की खबरें सुर्खियां बन रही हैं। रूस ने यूक्रेन और क्रीमिया की सीमाओं पर करीब एक लाख सैनिक तैनात किए हुए हैं।

    इससे यह अंदेशा जताया जाने लगा है कि रूस यूक्रेन के साथ युद्ध कर सकता है। दूसरी तरफ अमेरिका और यूरोपीय देशों ने चेतावनी जारी की है कि अगर रूस ऐसा करता है तो वो यूक्रेन का साथ देंगे।

    आइये, जानते हैं कि यह पूरा विवाद क्या है।

    इतिहास

    सबसे पहले इतिहास पर डालते हैं नजर

    करीब 90 साल पहले यूक्रेन में बड़ा अकाल पड़ा था, जिसमें लाखों लोगों की मौत हुई थी। उसके बाद सोवियत रूस के बड़े नेता स्टालिन की कुछ नीतियों के कारण वहां हालात बदतर हो गए। इससे लोगों मे रूस के प्रति गुस्सा पनपना शुरू हो गया।

    1954 में रूसी साम्राज्य में शामिल होने की 300वीं वर्षगांठ पर रूस ने क्रीमिया को भेंट के तौर पर यूक्रेन को दे दिया। इसका मकसद वहां उठ रही रूस विरोधी आवाज को दबाना था।

    इतिहास

    यूक्रेन ने किया क्रीमिया के साथ आजादी का ऐलान

    1991 में जब सोवियत संघ टूटा तो यूक्रेन से क्रीमिया के साथ आजादी का ऐलान कर दिया और रूस के दबाव से बाहर निकलने लगा।

    उत्तर और पूर्व में रूस से घिरा यूक्रेन धीरे-धीरे पश्चिमी देशों के करीब जाने लगा और उसने NATO (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) समूह में शामिल होने की इच्छा दिखाई।

    दूसरी तरफ रूस को अपनी सीमा के पास NATO ठिकानों की चिंता होने लगी और उसने यूक्रेन का विरोध किया।

    कब्जा

    रूस ने किया क्रीमिया पर कब्जा

    वर्ष 2010 में विक्टर यानूकोविच यूक्रेन के राष्ट्रपति बने और उन्होंने रूस के साथ संबंध मजबूत करने शुरू कर दिए। यानूकोविच के यूरोपीय संघ में शामिल न होने के फैसले के विरोध में यूक्रेन में भारी विरोध प्रदर्शन होने लगे।

    इसका असर यह हुआ कि रूस समर्थित राष्ट्रपति विक्टर यानूकोविच को इस्तीफा देना पड़ा।

    उनके इस्तीफे के बाद बने शून्य का फायदा उठाते हुए रूस ने अलगाववादियों का समर्थन किया और क्रीमिया प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया।

    ताजा तनाव

    अभी तनाव की वजह क्या है?

    क्रीमिया पर कब्जे के बाद 2015 में फ्रांस और जर्मनी ने मध्यस्थता कर एक शांति समझौता करवाया था। इससे संघर्ष पर विराम लगा, लेकिन राजनीतिक समाधान नहीं निकल सका।

    रूस ने आरोप लगाया कि यूक्रेन ने इस समझौते का पालन नहीं किया और इस साल की शुरुआत में उसने यूक्रेन की सीमा के पास युद्धाभ्यास शुरू किया।

    इस वक्त करीब एक लाख सैनिक यूक्रेन के सीमा के पास मौजूद है और अगले महीने इसमें बढ़ोतरी की संभावना है।

    आर्थिक पक्ष

    तनाव का एक पक्ष आर्थिक भी है

    इस तनाव का एक पक्ष आर्थिक भी है। दरअसल, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन चाहते हैं कि यूक्रेन सन 2000 में बनाए गए यूरेशियन इकॉनोमिक कम्युनिटी (EAEC) का सदस्य बन जाए।

    सोवियत संघ में शामिल रहे कई देश रूस के प्रभाव वाले इस संगठन में शामिल हैं। करीब 4.3 करोड़ की आबादी और बेहतर कृषि और औद्योगिक उपज वाले यूक्रेन को इसके महत्वपूर्ण हिस्से के तौर पर देखा जा रहा था, लेकिन यूक्रेन में इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया।

    कारण

    पुतिन अभी आक्रामक रूख क्यों अपना रहे हैं?

    कोरोना वायरस महामारी से निपटने के तरीके को लेकर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की अप्रूवल रेटिंग लगातार कम हो रही है।

    जब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा किया था, तब पुतिन की रेटिंग बढ़कर 90 प्रतिशत से पार चली गई थी। ऐसे में यूक्रेन के साथ तनाव बढ़ाकर एक बार फिर पुतिन लोगों का ध्यान घरेलू समस्याओं से हटाकर यूक्रेन की तरफ ले जाना चाहते हैं।

    साथ ही इसके सहारे वो पश्चिम से बातचीत बहाल करना चाहते हैं।

    बातचीत

    पुतिन ने की बाइडन से बातचीत

    यूक्रेन के साथ बढ़े तनाव के बीच उन्हें अमेरिका से बातचीत का मौका मिला भी है। जून में वो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से व्यक्तिगत रूप से मिले थे, वहीं हाल ही में दोनों नेताओं के बीच वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये बातचीत हुई थी।

    इसमें बाइडन ने चेताया था कि अगर रूस यूक्रेन पर आक्रमण करता है तो उसे गंभीर आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है और यूरोप में NATO सेनाओं के ठिकाने बदले जा सकते हैं।

    चिंता

    पुतिन की चिंता क्या है?

    बाइडन के साथ बातचीत में पुतिन ने अमेरिका से 'कानूनी गारंटी' मांगी थी कि यूक्रेन को NATO में शामिल नहीं कराया जाएगा। दरअसल, पुतिन की प्रमुख चिंता यही है।

    यूक्रेन पश्चिमी यूरोप के करीब जा रहा है और NATO में शामिल होना चाहता है और उसकी यही इच्छा रूस की बौखलाहट बढ़ा रही है।

    रूस की चिंता है कि अगर यूक्रेन NATO में शामिल होता है तो NATO सेनाओं के ठिकाने बिल्कुल उसकी सीमा के पास आ जाएंगे।

    मांग

    रूस अब क्या चाहता है?

    यूक्रेन में सैन्य आक्रमण के खतरे के बीच रूस ने NATO और संयुक्त राष्ट्र के कुछ मांगे रखी हैं। रूस चाहता है कि यूक्रेन समेत पूर्वी यूरोप में NATO की सैन्य गतिविधियों पर रोक लगे और यूक्रेन को इस संगठन में शामिल न किया जाए।

    साथ ही उसने कहा है कि सभी पक्षों के बीच यह समझौता होना चाहिए कि वो एक-दूसरे को दुश्मन नहीं समझेंगे और विवादित मुद्दों का शांतिपूर्ण तरीके से हल निकाला जाएगा।

    जानकारी

    NATO क्या है?

    अमेरिका ने शीतयुद्ध के दौरान रूस के खिलाफ लड़ाई के लिए NATO का गठन किया था। इसमें शामिल देश जरूरत पड़ने पर सदस्य देशों को सैन्य मदद देते हैं।

    ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, फ्रांस आदि इसके प्रमुख सदस्य हैं।

    यूक्रेन अगर इसमें शामिल होता है तो अमेरिका का दबदबा रूस के बिल्कुल बगल तक पहुंच जाएगा। अमेरिका ने यह भी कहा है कि अगर रूस सैन्य आक्रमण करता है तो वह यूक्रेन को हथियार समेत दूसरी रक्षा सामग्री मुहैया कराएगा।

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