कनाडा-चीन अमेरिका की टैरिफ बढ़ोतरी को WTO में देंगे चुनौती, क्या वह हस्तक्षेप कर पाएगा?
क्या है खबर?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से कनाडा, मेक्सिको और चीन पर लगाए गए टैरिफ ने बड़ा विवाद छेड़ दिया है।
अब कनाडा और चीन ने राष्ट्रपति ट्रंप के इस आदेश को विश्व व्यापार संगठन (WTO) में चुनौती देने की घोषणा की है।
इसके अलावा विश्व WTO और क्षेत्रीय व्यापार समझौतों के माध्यम से मामले के समाधान की मांग की है।
ऐसे में आइए जानते हैं WTO क्या है और वह इस मामले में क्या हस्तक्षेप कर सकता है।
पृष्ठभूमि
अमेरिका ने क्या की थी घोषणा?
गत शनिवार को राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन से होने वाले सभी आयातों पर 10 प्रतिशत, मैक्सिको और कनाडा से होने वाले आयातों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने के लिए एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए थे।
हालांकि, कनाडा से आयातित तेल, प्राकृतिक गैस और बिजली पर 10 प्रतिशत ही शुल्क लगाया जाएगा।
आदेश में यह भी कहा गया है कि अगर देश अमेरिका के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करते हैं तो शुल्क और बढ़ाया जा सकता है।
कदम
कनाडा, मेक्सिको और चीन ने उठाया जवाबी कदम
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि मंगलवार से अमेरिकी शराब, फल, सौंदर्य प्रसाधन और कागज सहित 1,256 उत्पादों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा। आने वाले सप्ताह में यह टैरिफ 125 अरब कनाडाई डॉलर (करीब 7.37 लाख करोड़ रुपये) तक पहुंच सकता है।
मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शिनबाम ने भी अपने वित्त मंत्रालय को इसी तरह का कदम उठाने का आदेश दिया है।
इसी तरह, चीन ने भी ऐसा कदम उठाने की अपनी मंशा का खुलासा किया है।
बयान
कनाडा ने बढ़े हुए टैरिफ को बताया व्यापार प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन
कनाडा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर AFP को बताया कि ये शुल्क व्यापार प्रतिबद्धताओं का स्पष्ट उल्लंघन है और वह WTO के साथ अमेरिका-मेक्सिको-कनाडा समझौते (CUSMA) दोनों के जरिए कानूनी कार्रवाई करने की तैयारी कर रहे हैं।
चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने भी इसकी आलोचना करते हुए कहा कि वह अपने व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए प्रतिकारात्मक उपाय लागू करते हुए WTO में कानूनी शिकायत दर्ज कराएगा।
संगठन
WTO क्या है और यह कैसे काम करता है?
WTO 164 सदस्य देशों वाला एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है। इसकी स्थापना 1 जनवरी, 1995 को हुई थी।
यह संगठन अंतरराष्ट्रीय व्यापार से जुड़े नियम बनाता है और इसके जरिए ही सदस्य देश आपस में व्यापार करते हैं।
WTO ही वस्तुओं, सेवाओं और बौद्धिक संपदा के व्यापार से जुड़े नियम बनाता है और सदस्य देशों के बीच उपजे विवादों का समाधान करता है।
यह शिकायतों पर निर्णय ले सकता है और प्रतिशोधात्मक शुल्क लगाने की अनुमति दे सकता है।
हालात
राष्ट्रपति ट्रंप ने WTO को किया कमजोर
राष्ट्रपति ट्रंप ने पहले कार्यकाल के बाद से अमेरिका ने WTO के अपीलीय निकाय में न्यायाधीशों की नियुक्ति रोक दी है, जिससे यह प्रभावी निर्णयों को लागू करने में असमर्थ हो गया है।
भले ही WTO अभी भी मामलों की समीक्षा के लिए पैनल गठित कर सकता है, लेकिन बाध्यकारी निर्णय जारी करने में असमर्थता ने व्यापार विवादों में मध्यस्थता करने की इसकी क्षमता को काफी कमजोर कर दिया है।
ऐसे में इससे पुख्ता समाधान की उम्मीद कम है।
फैसले
WTO ट्रंप प्रशासन के खिलाफ दे चुका है कई फैसले
WTO ने पहले भी कई मौकों पर ट्रंप प्रशासन के खिलाफ फैसला सुनाया है।
चीन 2018 में अमेरिका द्वारा सोलर पैनल पर लगाए टैरिफ और अन्य उत्पादों पर अतिरिक्त टैरिफ को लेकर शिकायत कराई थी, जिसमें तर्क दिया गया था कि इससे वैश्विक व्यापार नियमों का उल्लंघन हुआ है।
इसमें साल 2020 में WTO ने चीनी वस्तुओं पर अमेरिकी टैरिफ को वैश्विक व्यापार नियमों के तहत अवैध बताया था और कहा था कि यह सहमत टैरिफ दरों से अधिक है।
खारिज
ट्रंप प्रशासन ने WTO के फैसले को किया खारिज
WTO के फैसले के बाद भी अमेरिका ने इसे नहीं माना क्योंकि न्यायिक नियुक्तियों को रोकने से WTO का अपीलीय निकाय काम नहीं कर रहा था।
पूर्व अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइटहाइजर ने कहा था कि WTO चीन की अनुचित व्यापार प्रथाओं को रोकने में असमर्थ रहा है।
साल 2022 में भी WTO ने स्टील और एल्युमीनियम पर लगाए गए टैरिफ को अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों का उल्लंघन बताया था, लेकिन जो बाइडन प्रशासन ने उसे खारिज कर दिया था।