कोरोना वैक्सीन: अमेरिका ने किया भारत और दक्षिण अफ्रीका के पेटेंट हटाने के प्रस्ताव का समर्थन
अमेरिका ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) में कोरोना वैक्सीन पर पेटेंट सुरक्षा को अस्थायी तौर पर हटाने के प्रस्ताव का समर्थन किया है। भारत और दक्षिण अफ्रीका ने WTO में यह प्रस्ताव रखा और दलील दी कि ऐसा करने से दुनियाभर में वैक्सीन उत्पादन में तेजी आएगी। हालांकि, वैक्सीन निर्माता कंपनियों का कहना है ऐसा करने से इच्छित परिणाम हासिल नहीं होंगे। अमेरिका के इस प्रस्ताव के समर्थन में आने को एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
WTO के 100 सदस्य प्रस्ताव के समर्थन में
WTO में अमेरिकी प्रतिनिधि कैथरीन टाई ने कहा कि असाधारण समय में असाधारण कदम उठाने की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि यह काफी पेचीदा मसला है और इस मामले में सहमति बनने में लंबा समय लग सकता है। BBC के अनुसार, WTO के 164 में से 100 सदस्य इस प्रस्ताव के समर्थन में बताए जा रहे हैं और इंटलेक्चुअल प्रोपर्टी पर बना पैनल अगले महीने इस प्रस्ताव पर विचार कर सकता है।
इंटलेक्चुअल प्रोपर्टी का क्या मतलब?
इंटलेक्चुअल प्रोपर्टी का मतलब ऐसे अविष्कारों और रचनाओं आदि से होता है, जिन्हें पेटेंट, कॉपीराइट और ट्रेडमार्क के जरिये सुरक्षा प्रदान होती है। अगर कोई दूसरा व्यक्ति या कंपनी इनका इस्तेमाल करना चाहे तो इसके बदले उन्हें भुगतान करना होता है।
बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद बदला अमेरिका का रूख
भारत और दक्षिण अफ्रीका समेत लगभग 60 देश पिछले छह महीनों से मांग कर रहे हैं कि वैक्सीन पर पेटेंट को अस्थायी तौर पर हटा दिया जाना चाहिए, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहते हुए अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोपीय संघ की तरफ से इस प्रस्ताव का विरोध किया गया था। हालांकि, ट्रंप के जाने के बाद अमेरिका के रूख में बदलाव आया है। नए राष्ट्रपति जो बाइडन ने वैक्सीन के पेटेंट को हटाने के प्रस्ताव का समर्थन किया है।
पेटेंट हटने पर क्या होगा?
अगर इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलती है तो कई देशों में वैक्सीन का उत्पादन शुरू हो सकेगा और महामारी के खिलाफ लड़ाई में तेजी आएगी। कई विकासशील देशों का कहना है कि पेटेंट जैसे नियम वैक्सीन और महामारी के खिलाफ लड़ाई में जरूरी दूसरे उपकरणों के उत्पदान में बाधा बनते हैं। दरअसल, अभी वही कंपनियां वैक्सीन बना सकती हैं, जिनके पास उसका पेटेंट होता है। अगर यह हटता है तो दूसरी कंपनिया भी वैक्सीन का उत्पादन कर सकेंगी।
इस प्रस्ताव का विरोध कौन कर रहा है?
वैक्सीन से पेटेंट हटाने के लिए WTO में इस प्रस्ताव का सर्वसम्मति से पास होना जरूरी है। यूरोपीय संघ के अलावा कनाडा, इंग्लैंड और जापान आदि देश इसका विरोध कर रहे हैं। इसके अलावा फार्मा कंपनियां भी इस प्रस्ताव के विरोध में हैं।
फार्मा कंपनियों का क्या कहना है?
फार्मा रिसर्च एंड मैन्युफैक्चर्स ऑफ अमेरिका के प्रमुख स्टीफन जे उब्ल ने कहा कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है। यह महामारी के खिलाफ वैश्विक प्रयासों को कमजोर करेगा। उन्होंने कहा कि यह फैसला सरकारी और निजी पक्षों के बीच उलझन पैदा करेगा। यह पहले से ही धीमे वैक्सीन सप्लाई चैन को कमजोर करेगा और नकली वैक्सीनों को मान्यता प्रदान करेगा। यह अमेरिकी अविष्कारों को दूसरे देशों को सौंपने के बराबर है।
दूसरा तरीका क्या है?
कई विशेषज्ञों का कहना है कि पेटेंट सुरक्षा हटने के बाद कंपनियों को दूसरे देशों के साथ अपनी तकनीक और तरीकों को भी साझा करना होगा। ऐसा नहीं होने से इस फैसले से खास फायदा नहीं होगा। उनके मुताबिक, वैक्सीन उत्पादन बढाने के लिए लाइसेंस समझौता एक तरीका हो सकता है। इसी समझौते के तहत पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित की गई वैक्सीन (भारत में कोविशील्ड) का उत्पादन कर रही है।