#NewsBytesExplainer: लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री मोदी बार-बार दक्षिण भारत की यात्रा क्यों कर रहे हैं?
क्या है खबर?
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार दक्षिण भारत के राज्यों के दौरे कर रहे हैं। 19 जनवरी को वे तमिलनाडु का दौरा करेंगे।
ये राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से पहले मोदी का एक महीने के भीतर दक्षिण भारत का तीसरा दौरा होगा।
इन दौरे पर वे करोड़ों की परियोजनाओं की सौगात देने के साथ-साथ मंदिरों में पूजा-अर्चना कर रहे हैं।
आइए समझते हैं कि चुनाव से पहले प्रधानमंत्री बार-बार दक्षिण भारत क्यों जा रहे हैं।
दौरे
सबसे पहले जानिए कब किस दक्षिणी राज्य गए प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री मोदी ने साल 2024 का अपना पहला दौरा तमिलनाडु से शुरू किया। 2 जनवरी को प्रधानमंत्री यहां पहुंचे और 19,850 करोड़ रुपये से अधिक की विकास परियोजनाओं की आधारशिला रखी।
3 जनवरी को प्रधानमंत्री लक्षद्वीप और केरल में थे। 16-17 जनवरी को प्रधानमंत्री आंध्र प्रदेश और केरल पहुंचे। उन्होंने त्रिशूर में गुरुवायूर मंदिर, त्रिप्रयार के रामास्वामी मंदिर और लेपाक्षी में वीरभद्र स्वामी मंदिर में पारंपरिक परिधानों में पूजा अर्चना की।
फोकस
दक्षिण भारत पर क्यों है प्रधानमंत्री का ध्यान?
भाजपा ने इस बार 400 से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। उत्तर भारत के ज्यादातर राज्यों में भाजपा अपने सबसे सुनहरे दौर में है। पार्टी को अब 400 सीटें जीतने के लिए दक्षिण का रुख करना ही होगा।
दक्षिणी राज्यों में लोकसभा की 130 सीटें हैं। इनमें से ज्यादातर राज्यों में भाजपा की हालत खराब है। पार्टी अब इन्हीं सीटों का साधने की तैयारी कर रही है।
रणनीति
दक्षिण को लेकर क्या है भाजपा की रणनीति?
भाजपा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और केंद्र सरकार के विकास के एजेंडे के साथ दक्षिण भारत को फतेह करने की तैयारी में है।
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को ध्यान में रखकर काशी-तमिल संगमम का आयोजन किया जा रहा है।
इन राज्यों में प्रधानमंत्री जहां-जहां भी जा रहे हैं, वहां हजारों-करोड़ों की विकास परियोजनाओं की घोषणा कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री हर प्रतिष्ठित मंदिर का दौरा कर दक्षिण में राम मंदिर और उसके निर्माण में पार्टी की भूमिका को जन-जन तक पहुंचा रहे हैं।
स्थिति
दक्षिण भारत में कैसी है भाजपा की स्थिति?
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को जिन 303 सीटों पर जीत मिली थी, उनमें से 275 उत्तर, पूर्वोत्तर और पूर्वी राज्यों में से थी।
दक्षिण की 130 में से भाजपा को सिर्फ 29 सीटें ही मिलीं थीं। इनमें से भी 25 कर्नाटक से और 4 तेलंगाना से थीं।
इसके अलावा दक्षिण के किसी भी राज्य में पार्टी सत्ता में नहीं है। यहां तक की आंध्र प्रदेश और केरल में पार्टी के पास एक विधायक भी नहीं है।
चुनौतियां
दक्षिण में भाजपा के सामने क्या चुनौतियां हैं?
भाजपा के लिए दक्षिण की डगर इतनी आसान नहीं है। कई राज्यों में तो पार्टी का संगठन न के बराबर है। सबसे पहली चुनौती यहां संगठन खड़ा करने की है।
उत्तर भारतीय राज्यों की तरह यहां ध्रूवीकरण से ज्यादा जातीय समीकरण हावी हैं।
भाजपा के पास कर्नाटक में येदियुरप्पा की तरह दूसरे राज्यों में कोई बड़ा चेहरा नहीं है।
इसके अलावा हिंदी पार्टी की छवि, उत्तर बनाम दक्षिण की बहस और जनाधार न होना भी भाजपा के लिए परेशानी है।
भाजपा
और किन रणनीतियों पर काम कर रही है भाजपा?
भाजपा दक्षिणी राज्यों में लोकप्रिय नेताओं को पार्टी से जोड़ रही है। भाजपा ने कर्नाटक में एचडी देवगौड़ा की जनता दल सेक्युलर और आंध्र प्रदेश में पवन कल्याण की जनसेना पार्टी से गठबंधन किया है।
पार्टी ने केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक से पीटी ऊषा, इलैयाराजा, वीरेंद्र हेगड़े और वी विजयेंद्र प्रसाद को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है।
प्रधानमंत्री के तमिलनाडु की किसी सीट से चुनाव लड़ने की संभावना भी है, जिससे भाजपा के लिए माहौल बन सकता है।