
#NewsBytesExplainer: 2024 के लोकसभा चुनावों पर कौन-से मुद्दे प्रभाव डाल सकते हैं?
क्या है खबर?
साल 2023 राजनीतिक दृष्टि से काफी महवपूर्ण रहा है। इस दौरान भारतीय राजनीति में कई उतार-चढ़ाव और दूरगामी बदलाव देखे गये।
भारत द्वारा पहली बार G-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी और संसद में महिला आरक्षण विधेयक के पारित होने को ऐतिहासिक बताया गया, वहीं भाजपा के खिलाफ विपक्ष की एकजुटत भी खूब चर्चा में रही।
एक नजर डालते हैं उन मुद्दों और घटनाक्रमों पर जो नए साल और आने वाले वर्षों में काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
प्रतिस्पर्धा
मुफ्त सुविधाओं की प्रतिस्पर्धा
लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे पास आएंगे, राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और तीखी होती जाएगी। ध्रुवीकरण की राजनीति से लेकर सांस्कृतिक और अन्य किस्मों का राष्ट्रवाद केंद्र में हो सकता है।
मुफ्त सुविधाओं को लेकर प्रतिस्पर्धा भी देखने को मिल सकती है। इसमें कैश ट्रांसफर, गारंटी और वादे राजनीतिक और चुनावी नरैटिव पर हावी हो सकते हैं।
कर्नाटक में कांग्रेस ने 5 गारंटी की घोषणा कर जीत दर्ज की, लेकिन साल के अंत में कांग्रेस की योजना पर भाजपा ने ग्रहण लगा दिया।
मुद्दा
2024 में किन मुद्दों को भुना सकता है विपक्ष?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अगले साल आम चुनावों में कांग्रेस कल्याणकारी वादों के भारी डोज के साथ वापसी करने की योजना तैयार कर रही है।
विपक्ष बेरोजगारी और मूल्य वृद्धि जैसे आजीविका के मुद्दों को अभियान का प्रमुख हिस्सा बनाने की कोशिश करेगा।
ऐसे में संकेत हैं कि सरकार कुछ मौजूदा योजनाओं को बढ़ा सकती है। प्रधानमंत्री पहले ही मुफ्त खाद्यान्न योजना को अगले 5 वर्षों के लिए बढ़ाने की घोषणा कर चुके हैं।
जम्मू-कश्मीर
जम्मू-कश्मीर में चुनावी लोकतंत्र का मुद्दा
न्यायिक फैसले के बाद ही सही, अगले साल जम्मू-कश्मीर में चुनावी लोकतंत्र लौट आएगा।
नवंबर 2018 में विधानसभा भंग कर दी गई और 9 महीने बाद राज्य को 2 केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 30 सितंबर तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कराने का निर्देश दिया था।
चुनावों के मद्देनजर केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में मजबूत, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की दिशा में कदम उठा सकती है।
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का मुद्दा
रिपोर्ट के अनुसार, अनुच्छेद 370 को रद्द करना संघ की प्रमुख वैचारिक परियोजनाओं में से एक थी। दूसरा, अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन है जोकि 22 जनवरी को किया जाना है जिसके लिए भव्य समारोह का आयोजन किया जाएगा।
यह लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के हिंदुत्व अभियान को एक बढ़ावा दे सकता है।
भाजपा की सांस्कृतिक राष्ट्रवाद परियोजना में आगे की योजना समान नागरिक संहिता और काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद मामले हो सकते हैं।
एक राष्ट्र
एक राष्ट्र, एक चुनाव
केंद्र सरकार लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने के लिए लगातार काम कर रही है।
अगले साल किसी समय सरकार इस तरह की सिफारिश लेकर आ सकती है जिसका विपक्ष विरोध कर सकता है। चूंकि विधि आयोग इसके समर्थन में है, इसलिए 2024 और 2029 में एक साथ चुनावों के लिए अस्थायी समयसीमा तय करने की संभावना है।
चुनाव आयोग ने कोविंद पैनल से आवश्यक तैयारी के लिए अतिरिक्त समय भी मांगा है।
पिछड़ी जाति
पिछड़ी जाति की राजनीति
नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मराठा समुदाय की ओर से आरक्षण की मांग को लेकर महाराष्ट्र में राजनीति गरमा गई। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के जाति सर्वेक्षण के निष्कर्षों को प्रकाशित नहीं कर पाई है।
बिहार ने जाति सर्वेक्षण के निष्कर्षों को प्रकाशित कर विधेयक भी पास कर दिया।
कांग्रेस को लगता है कि जाति जनगणना बड़ा मुद्दा बन सकता है। इसके इतर प्रधानमंत्री ने गरीबों, युवाओं, महिलाओं और किसानों को 'सबसे बड़ी जाति' बता दिया।
जानकारी
क्या देश बन पाएगा तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था?
प्रधानमंत्री मोदी ने बार-बार कहा है कि उनके तीसरे कार्यकाल में भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। हालांकि, यह तभी संभव है जब केंद्र की मोदी सरकार उच्च आर्थिक विकास की तलाश में इन सुधारों को आगे बढ़ाने का प्रयास जारी रख पाएगी।
महिला
संसद में महिला आरक्षण लागू होने का मुद्दा
बता दें कि इस साल संसद में महिला आरक्षण विधेयक पारित करते समय सरकार ने कहा था कि महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत कोटा अगली जनगणना और उसके बाद होने वाले परिसीमन अभ्यास के बाद लागू होगा।
इससे राज्य विधानसभाओं, केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली की विधानसभा और लोकसभा में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा।
सरकार इसे महिलाओं के हित में लिए गए फैसले के तौर पर दिखाकर महिला मतदाताओं के बीच जा सकती है।