#NewsBytesExplainer: समुद्री लुटेरों के चंगुल से जहाज को छुड़ाने वाले MARCOS कमांडो इतने खास क्यों हैं?
क्या है खबर?
सोमालिया के पास समुद्री लुटेरों द्वारा कब्जे में लिए गए जहाज MV लीला नॉरफॉक को भारतीय नौसेना ने छुड़ा लिया है। इसके साथ ही चालक दल के सभी 21 सदस्यों को भी सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है, जिनमें 15 भारतीय भी शामिल हैं।
इस सफल ऑपरेशन के बाद नौसेना के MARCOS कमांडो की खूब चर्चा हो रही है। आइए जानते हैं कि ये MARCOS कमांडो कौन हैं और किन ऑपरेशन को अंजाम दे चुके हैं।
कमांडो
कौन होते हैं MARCOS कमांडो?
भारतीय नौसेना की विशेष मरीन कमांडो इकाई को MARCOS नाम से जाना जाता है। ये शब्द मरीन और कमांडो से मिलकर बना है। आधिकारिक तौर पर इसे मरीन कमांडो फोर्स (MCF) कहा जाता है।
इस फोर्स को अमेरिकी नौसेना के सील कमांडो की तर्ज पर तैयार किया गया है। यानी ये जमीन, हवा और पानी तीनों जगहों पर ऑपरेशन को अंजाम दे सकते हैं। 26 फरवरी, 1987 को MARCOS का गठन हुआ था।
जरूरत
भारतीय सेना को क्यों पड़ी MARCOS की जरूरत?
80 के दशक के आसपास समुद्री लुटेरों का आतंक बढ़ता जा रहा था। 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद भी एक विशेष फोर्स की जरूरत सेना को महसूस हुई।
दरअसल, 1955 में भारतीय सेना ने ब्रिटिश स्पेशल बोट (BSB) की मदद से एक डाइविंग स्कूल की स्थापना की, जिसमें लड़ाकू गोताखोरों को प्रशिक्षण दिया जाता था, लेकिन युद्ध में इनके नतीजे उम्मीद से कम रहे। इसके बाद एक विशेष फोर्स के गठन पर काम शुरू हुआ।
गठन
कैसे हुआ MARCOS का गठन?
अप्रैल, 1986 में नौसेना ने एक विशेष फोर्स के निर्माण की योजना शुरू की। इसका उद्देश्य ऐसे जवान तैयार करना था, जो समुद्र में अभियान चलाने, छापे मारने और आतंकवाद-रोधी अभियानों को अंजाम देने में सक्षम हो।
इसके लिए डाइविंग यूनिट से 3 अधिकारियों का चयन किया गया। इन्हें अमेरिकी सील्स और ब्रिटेन की BSC के साथ प्रशिक्षण के लिए भेजा गया। 1991 से पहले MARCOS को भारतीय समुद्री विशेष बल (IMSF) नाम से जाना जाता था।
ट्रेनिंग
कैसे होती है MARCOS की ट्रेनिंग?
MARCOS जवानों को बेहद सख्त ट्रेनिंग से गुजरना होता है। आमतौर पर 20 साल की उम्र के युवाओं को ही इसमें लिया जाता है।
ये पूरा प्रशिक्षण करीब 3 साल का होता है। इसमें एयरबोर्न ऑपरेशन, कॉम्बैट डाइविंग कोर्स, काउंटर-टेररिज्म, एंटी-हाइजैकिंग, एंटी-पायरेसी ऑपरेशन, घुसपैठ, रणनीति और अपरंपरागत युद्ध जैसी कई विधाएं शामिल हैं।
इन्हें विदेशों के साथ कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश, राजस्थान, कश्मीर और मिजोरम में स्थित सैन्य प्रशिक्षण स्कूलों में ट्रेनिंग दी जाती है।
कठिन
कितनी कठिन होती है MARCOS की ट्रेनिंग?
MARCOS कमांडो की ट्रेनिंग इतनी कठिन होती है कि आमतौर पर 85 प्रतिशत आवेदक पहले ही दौर में बाहर हो जाते हैं।
पहले आवेदकों को 3 दिन के फिटनेस और एप्टीट्यूड टेस्ट से गुजरना होता है। इसमें चयनित हुए अभ्यर्थियों को अगले दौर में 'हेल्स वीक' में शामिल होना होता है। इसमें अभ्यर्थियों को बेहद कठिन शारीरिक व्यायम करवाया जाता है और बहुत कम सोने दिया जाता है।
इसके बाद अलग-अलग जगहों पर प्रशिक्षण होता है।
ऑपरेशन
किन-किन ऑपरेशन में शामिल रहे हैं MARCOS?
अपने गठन के बाद से अब तक MARCOS कई बड़े ऑपरेशन में अहम भूमिका निभा चुके हैं।
1987 में हुए ऑपरेशन पवन, 1988 में ऑपरेशन कैक्टस, 1991 में ऑपरेशन ताशा और कारगिल युद्ध समेत कई ऑपरेशन में MARCOS शामिल रहे हैं।
मुंबई में हुए आतंकी हमलों के दौरान MARCOS की खूब चर्चा हुई थी। ये आपदाओं के दौरान भी सेना के साथ मिलकर काम करते हैं। जम्मू-कश्मीर बाढ़ और केदारनाथ आपदा के समय भी इनकी तैनाती की गई थी।