
#NewsBytesExplainer: उद्धव-राज के लिए साथ आने में कितनी परेशानियां, कितने फायदे? क्या हाथ मिलाना मजबूरी है?
क्या है खबर?
महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर सियासी हलचल है। अटकलें हैं कि उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे फिर साथ आ सकते हैं। दोनों नेताओं ने 19 साल बाद एक-दूसरे से हाथ मिलाने के संकेत दिए हैं।
हाल के विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों के प्रदर्शन और आने वाले महाराष्ट्र निकाय चुनावों को देखते हुए इसकी संभावनाएं और बढ़ गई है।
आइए जानते हैं अगर दोनों नेता साथ आए तो महाराष्ट्र की राजनीति कितने बदलेगी।अ
बयान
सबसे पहले जानिए उद्धव और राज ने क्या-क्या कहा?
राज ने कहा, "उद्धव और मेरे बीच विवाद मामूली हैं। महाराष्ट्र इन सबसे कहीं बड़ा है। ये मतभेद महाराष्ट्र और मराठी लोगों के अस्तित्व के लिए महंगे साबित हो रहे हैं। एक साथ आना मुश्किल नहीं है, यह इच्छाशक्ति का मामला है।"
वहीं, उद्धव ने कहा, "मैं छोटे-मोटे विवादों को अलग रखने के लिए तैयार हूं। मैं मराठी लोगों से महाराष्ट्र के हित में एकजुट होने की अपील करता हूं। समस्या ये है कि हम पक्ष बदलते नहीं रह सकते।"
उद्धव
उद्धव के लिए क्या है दुविधा?
उद्धव अपनी ही पार्टी शिवसेना में विश्वासघात का सामना कर रहे हैं। एकनाथ शिंदे ने उनसे पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न छीन लिया है।
इसके अलावा भाजपा भी लगातार उद्धव को निशाना बनाती रहती है।
हालिया विधानसभा चुनावों में उद्धव की शिवसेना ने केवल 20 सीटों पर जीत हासिल की थी।
उद्धव फिलहाल शरद पवार वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) और कांग्रेस के साथ है, जो शिवसेना की वैचारिक विरोधी रही है।
राज ठाकरे
राज के लिए क्या हैं परेशानियां?
अलग होने के बाद से राज अपना रुख बदलते रहे हैं। 2014 लोकसभा चुनावों में उन्होंने भाजपा को समर्थन दिया था, लेकिन भाजपा ने औपचारिक रूप से गठबंधन स्वीकार नहीं किया।
2019 में शुरुआत में उन्होंने भाजपा के खिलाफ प्रचार किया, लेकिन प्रवर्तन निदेशालय (ED) का समन मिलने के बाद अपना रुख बदल लिया।
2024 के आम चुनाव में उन्होंने फिर भाजपा का समर्थन किया।
विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने महायुति में जाने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए।
MNS
MNS के वजूद पर संकट
विधानसभा चुनाव में राज की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) ने 125 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन सभी सीट हार गए। राज के बेटे अमित ठाकरे MNS का गढ़ माने जाने माहिम से हार गए।
अब MNS पर मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टी और अपने चुनाव चिह्न को खोने का खतरा मंडरा रहा है।
वैसे भी अलग होने के बाद राज आक्रामक भाषणों के कारण चर्चित तो हुए, लेकिन उनकी पार्टी कभी शिवसेना जितनी बड़ी नहीं बन पाई।
बाधाएं
साथ आने में दोनों के सामने क्यां चुनौतियां हैं?
दोनों पार्टियों का वोटबैंक और प्रभावी इलाका एक ही है। ऐसे में आगे चलकर मतभेद उभर सकते हैं।
विचारधारा के स्तर पर भी दोनों में मामूली मतभेद है। राज 'मराठी मानुस' और 'हिंदुत्व' के एजेंडे पर काम करते हैं, तो कांग्रेस और NCP के साथ गठबंधन के कारण उद्धव ने हिंदुत्व मतदाताओं का एक हिस्सा खो दिया है।
दोनों नेताओं के काम करने की शैली भी अलग-अलग है।
इसके अलावा दोनों के कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय भी बड़ी चुनौती है।
फायदा
साथ आए तो क्या फायदा होगा?
शिवसेना और MNS दोनों की स्थिति फिलहाल ठीक नहीं है। अगर राज और उद्धव साथ आते हैं तो मुंबई, ठाणे और नासिक जैसे शहरी क्षेत्रों में मराठी मतदाताओं को अपने साथ जोड़ सकते हैं, जो कभी इनका मजबूत वोटबैंक थे।
आने वाले BMC चुनावों को देखते हुए ये गठबंधन काफी अहम हो सकता है।
हालांकि, दोनों के साथ आने से शिंदे समेत कई दूसरे नेताओं की परेशानियां बढ़ सकती हैं, जिनके कथित तौर पर भाजपा से मतभेद चल रहे हैं।
अलग
शिवसेना से क्यों अलग हुए थे राज ठाकरे?
राज शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के भतीजे हैं। एक वक्त में राज की शिवसेना में नंबर 2 की हैसियत थी। माना जाता था कि आगे चलकर राज ही पार्टी की कमान संभालेंगे।
हालांकि, बालासाहेब द्वारा उद्धव को उत्तराधिकारी घोषित करने के फैसले से नाराज होकर राज ने 27 नवंबर, 2005 को शिवसेना से इस्तीफा दे दिया था।
इसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी 'महाराष्ट्र नव निर्माण सेना' बनाई। हालिया समय में दोनों नेताओं ने साथ आने के संकेत दिए हैं।