उद्धव ठाकरे: जानें कैसा रहा वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर से लेकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने तक का सफर
क्या है खबर?
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।
वैसे तो ये माना जाता है कि राज्य में सत्ता की चाबी ठाकरे परिवार के पास रहती है, लेकिन ये पहली बार होगा जब परिवार को कोई सदस्य खुद किसी संवैधानिक पद पर बैठेगा।
अपने नरम स्वभाव के लिए चर्चित और वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी का शौक रखने वाले उद्धव का महाराष्ट्र की राजनीति के शिखर तक पहुंचने का ये सफर कैसा रहा, आइए आपको बताते हैं।
शुरूआत
राजनीति में नहीं थी उद्धव की दिलचस्पी
उद्धव ठाकरे बाल ठाकरे और मीनाताई के तीन बच्चों में सबसे छोटे हैं।
प्रतिष्ठित जेजे इंस्टीट्यूट ऑफ एप्लाइड आर्ट से ग्रेजुएट उद्धव की शुरूआत में राजनीति में अधिक दिलचस्पी नहीं थी और वो वाइल्फलाइफ फोटोग्राफी में करियर बनाना चाहते थे।
राजनीति से उनका पहला वास्ता 1985 में पड़ा जब शिवसेना बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) के चुनाव जीतकर सत्ता में आई। उद्धव ने इस चुनाव में शिवेसना के लिए प्रचार किया था।
राजनीति में एंट्री
1990 में की राजनीति में आधिकारिक एंट्री
उद्धव की राजनीति में आधिकारिक एंट्री 1990 में हुई जब उन्होंने मुंबई में हुए पार्टी के एक समारोह में हिस्सा लिया।
राजनीति में उनकी एंट्री ऐसे समय पर हुई जब उनके पिता बाल ठाकरे दो साल पहले 1988 में अपने भतीजे राज ठाकरे को शिवसेना की युवा इकाई का अध्यक्ष बना चुके थे।
राज ठाकरे को बाल ठाकरे का राजनीतिक उत्तराधिकारी माना जा रहा था, लेकिन उद्धव की एंट्री ने मामले को जटिल कर दिया।
टकराव
1993 में हुई उद्धव और राज ठाकरे के टकराव की शुरूआत
पत्रकार धवल कुलकर्णी ने उद्धव और राज ठाकरे पर अपनी किताब में लिखा है कि दोनों के बीच दुश्मनी का बीज 1993 में बोया गया था।
तब राज ठाकरे ने बेरोजगारी को लेकर महाराष्ट्र विधानसभा के सामने एक रैली निकाली थी।
रैली से एक दिन पहले राज को मातोश्री से फोन आया और रैली में उद्धव को भी बोलने का मौका देने को कहा गया।
इससे राज को लगा कि उद्धव रैली की सफलता के श्रेय में हिस्सा चाहते हैं।
अलगाव
2005 में शिवसेना से अलग हो राज ठाकरे ने बनाई अलग पार्टी
इस टकराव के बीच जनवरी 2003 में उद्धव शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष बने।
दिलचस्प बात ये रही कि उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने का प्रस्ताव खुद राज ठाकरे ने पेश किया था। ऐसा इसलिए किया गया था ताकि राज के समर्थक इसे लेकर हंगामा न करें।
हालांकि इसके बाद भी दोनों भाईयों में टकराव जारी रहा और अंत में 2005 में राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर अपनी अलग पार्टी बना ली।
सवाल
बाल ठाकरे की मौत के बाद उठे पार्टी संभालने की काबिलियत पर सवाल
2012 में बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद जब शिवसेना की कमान उद्धव के हाथों में आई तो इस बात की आशंका जताई गई कि नरम स्वभाव वाले उद्धव पार्टी को संभाल नहीं पाएंगे।
लेकिन उद्धव से सबको गलत साबित करते हुए दिखाया कि भले ही उनके पास अपने पिता बाल ठाकरे और भाई राज ठाकरे जैसा आकर्षण और भाषण देने की कला न हो, लेकिन एक चतुर राजनेता बनने के लिए सारे गुण मौजूद हैं।
चुनौती
2014 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के रूप में सामने आई पहली बड़ी चुनौती
शिवसेना प्रमुख के तौर पर उद्धव के सामने सबसे पहली बड़ी चुनौती 2014 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के रूप में आई।
मोदी लहर से उत्साहित शिवसेना की पुरानी सहयोगी भाजपा ने सीटों के बंटवारे को लेकर उससे गठबंधन तोड़ लिया और दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ीं।
चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन शिवसेना भी अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने में कामयाब रही और 2009 में 42 के मुकाबले 63 सीटों पर जीत दर्ज की।
समझौता
पार्टी को एकजुट रखने के लिए उद्धव ने किया भाजपा से समझौता
2014 विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा ने बिना शिवसेना के सहयोग के सरकार बना ली और ऐसे में उद्धव के सामने सवाल खड़ा हुआ कि वह सिद्धांतो पर ध्यान दें या फिर पार्टी को एकजुट रखने पर।
एकजुटता की जरूरतों को प्राथमिकता देते हुए उद्धव भाजपा के साथ सरकार में शामिल हो गए और पांच साल चली इस सरकार में उन्हें कई बार 'बड़े भाई' की भूमिका में आ चुकी भाजपा के साथ समझौता करना पड़ा।
कम सीटों पर लड़ने का फैसला
2019 लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भी उद्धव ने किया समझौता
2019 लोकसभा चुनाव के समय भी उद्धव पार्टी की जरूरतों को देखते हुए भाजपा से कम सीटों पर लड़ने को तैयार हो गए और विधानसभा चुनाव में भी यही कहानी दोहराई गई।
लेकिन चुनाव के बाद जब भाजपा की सीटों की संख्या घटी तो उद्धव ने उसे लोकसभा चुनाव से पहले 50-50 फॉर्मूले के सत्ता में आधी हिस्सेदारी और ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद देने का वादा याद दिला दिया।
टकराव
भाजपा के वादा भूलने पर नरम से गरम हुए उद्धव
नरम छवि के लिए चर्चित उद्धव ने यहां सख्त रवैया दिखाया और साफ कर दिया वह ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद से कम कुछ भी मंजूर नहीं करेंगे।
भाजपा इसके लिए तैयार नहीं हुई और दोनों पार्टियों का गठबंधन टूट गया।
इसके बाद उद्धव ने सरकार बनाने के लिए अपनी पारंपरिक विरोधियों कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के साथ बातचीत शुरू की और अब वो इस गठबंधन के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।
जानकारी
शिवसेना के लुढ़कते वोटबैंक को रोकना बड़ी चुनौती
विशेषज्ञों के अनुसार, कांग्रेस-NCP के साथ सरकार बनाने के उद्धव के फैसले के पीछे एक बड़ा कारण ये है कि राज्य में शिवसेना भाजपा के मुकाबले लगातार नीचे खिसकती जा रही है और उद्धव को पार्टी को आगे बढ़ाने का एक यही रास्ता नजर आया।