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#NewsBytesExplainer: कितना अहम है लोकसभा डिप्टी स्पीकर का पद और इसपर विपक्ष की क्यों हैं नजरें? 
डिप्टी स्पीकर सदन का दूसरा सर्वोच्च पदाधिकारी होता है

#NewsBytesExplainer: कितना अहम है लोकसभा डिप्टी स्पीकर का पद और इसपर विपक्ष की क्यों हैं नजरें? 

लेखन आबिद खान
Jun 26, 2024
04:01 pm

क्या है खबर?

18वीं लोकसभा के पहले सत्र में स्पीकर का चुनाव हो गया है। कोटा से भाजपा के सांसद ओम बिरला को ध्वनि मत से स्पीकर चुना गया है। वे 17वीं लोकसभा में भी स्पीकर की भूमिका निभा चुके हैं। अब सबकी नजरें डिप्टी स्पीकर पद पर हैं। विपक्ष ने परंपरा का हवाला देकर इस पद पर दावा किया है, लेकिन अभी तक कोई सहमति नहीं बन पाई है। आइए जानते हैं डिप्टी स्पीकर का पद कितना अहम होता है।

डिप्टी स्पीकर

कौन होता है डिप्टी स्पीकर? 

लोकसभा का डिप्टी स्पीकर सदन का दूसरा सर्वोच्च पदाधिकारी होता है। संविधान के अनुच्छेद 95 के अनुसार, स्पीकर की अनुपस्थिति में डिप्टी स्पीकर उनकी जिम्मेदारियों का निर्वहन करता है। अगर डिप्टी स्पीकर का पद खाली रहता है तो राष्ट्रपति लोकसभा के एक सांसद को ये काम करने के लिए चुनते हैं। अनुच्छेद 93 के मुताबिक, लोकसभा के सदस्य अपने में से 2 सदस्यों को क्रमशः स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के तौर पर चुनेंगे।

भूमिका

क्या हैं डिप्टी स्पीकर की भूमिका?

अनुच्छेद 95(1) के मुताबिक, स्पीकर के अनुपस्थिति में डिप्टी स्पीकर ही सदन की अध्यक्षता करेगा। इस दौरान डिप्टी स्पीकर के पास वो सभी शक्तियां होंगी, जो स्पीकर के पास होती हैं। डिप्‍टी स्‍पीकर लोकसभा स्‍पीकर के प्रति नहीं, बल्कि सीधे सदन के प्रति जवाबदेह होते हैं। अगर स्पीकर अपने पद से इस्तीफा देते हैं तो उन्हें डिप्टी स्पीकर और डिप्टी स्पीकर इस्तीफा देते हैं तो उन्हें स्पीकर को संबोधित करना होता है।

चयन

कैसे चुना जाता है डिप्टी स्पीकर?

आमतौर पर लोकसभा और विधानसभाओं में नए सदन के पहले सत्र में स्‍पीकर का चुनाव होता है। उसके बाद दूसरे सत्र में डिप्‍टी स्‍पीकर को चुने जाने की परंपरा रही है। हालांकि, संविधान में नियुक्ति के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है। इस वजह से डिप्टी स्पीकर की नियुक्ति में देरी या चुनाव ही टाल दिया जाता है। लोकसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमावली के नियम 8 के तहत डिप्टी स्पीकर का चुनाव होता है।

कार्यकाल

कितना होता है कार्यकाल?

स्पीकर की तरह डिप्‍टी स्‍पीकर भी आमतौर पर लोकसभा के कार्यकाल (5 वर्ष) या सदन के भंग होने तक अपने पद पर रहता है। डिप्टी स्पीकर को लोकसभा के सदस्यों द्वारा बहुमत से एक प्रस्ताव पारित करके भी पद से हटाया जा सकता है। यह प्रस्ताव 14 दिन पहले सूचना देने के बाद ही लाया जा सकता है। इसके अलावा लोकसभा की सदस्यता चली जाने या खुद इस्तीफा दे देने पर भी डिप्टी स्पीकर का कार्यकाल खत्म हो जाता है।

ताकत

कितना ताकतवर होता है डिप्टी स्पीकर का पद?

स्पीकर का पद रिक्त होने या उसकी अनुपस्थिति में डिप्‍टी स्‍पीकर को स्पीकर की तरह फैसले लेने का अधिकार होता है। ऐसी स्थिति में डिप्‍टी स्‍पीकर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की भी अध्यक्षता करता है। वोटों के बराबर होने की स्थिति में डिप्टी स्पीकर स्पीकर की तरह ही निर्णायक मत का विशेषाधिकार रखता है। इसके अवाला डिप्टी स्पीकर को जब भी किसी संसदीय समिति का सदस्य नियुक्त किया जाता है तो वह स्वतः ही उसका अध्यक्ष बन जाता है।

परंपरा

विपक्ष किस परंपरा का दे रहा है हवाला?

दरअसल, आमतौर पर डिप्टी स्पीकर का पद विपक्षी सांसद के पास ही रहा है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) के दोनों कार्यकाल में ये पद विपक्ष के पास था। 1999 से 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कांग्रेस के पीएम सईद इस पद पर थे। जब पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे, तब भाजपा के एस मल्लिकार्जुनैया डिप्टी स्पीकर थे। हालांकि, कई मौको पर ये पद सत्ता पक्ष के पास भी रहा है।

प्लस

न्यूजबाइट्स प्लस

17वीं लोकसभा यानी 2019 से डिप्टी स्पीकर का पद खाली है। सितंबर, 2020 में लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने डिप्टी स्पीकर चुनने की प्रक्रिया शुरू करने को कहा था, लेकिन इस संबंध में ज्यादा कुछ नहीं हो पाया। दूसरी विपक्षी पार्टियों इसे लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं दिखी। कहा जाता है कि भाजपा ने कथित तौर पर YSR कांग्रेस को ये पद देने की पेशकश की थी, जिसे पार्टी ने ठुकरा दिया था।