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    #NewsBytesExplainer: साइंस फिक्शन फिल्में बनाने में पीछे रहा बॉलीवुड, क्या 'कल्कि 2898 AD' बदलेगी तस्वीर?
    साइंस फिक्शन फिल्में और बॉलीवुड (तस्वीर: इंस्टाग्राम/@kalki2898ad)

    #NewsBytesExplainer: साइंस फिक्शन फिल्में बनाने में पीछे रहा बॉलीवुड, क्या 'कल्कि 2898 AD' बदलेगी तस्वीर?

    लेखन नेहा शर्मा
    May 20, 2024
    07:57 am

    क्या है खबर?

    इन दिनों दीपिका पादुकोण और प्रभास की फिल्म 'कल्कि 2898 AD' काफी चर्चा में है। यह एक साइंस फिक्शन फिल्म है।

    साइंस फिक्शन फिल्में बॉलीवुड में बेशक बनी हैं, लेकिन ये गिनी-चुनी हैं, जिनमें विज्ञान का चमत्कार दिखाया गया है। कयास लगाए जा रहे हैं कि 'कल्कि 2898 AD' के बाद इस जॉनर की फिल्मों को बॉलीवुड में बढ़ावा मिलेगा और यह अब तक की सबसे बड़ी हिट साबित होगी।

    साइंस फिक्शन फिल्मों के सफरनामा पर एक खास रिपोर्ट।

    अर्थ

    होती क्या हैं साइंस फिक्शन फिल्में?

    साइंस फिक्शन फिल्में वो होती हैं, जिनमें विज्ञान का कमाल देखने को मिलता है। ऐसी फिल्मों में विज्ञान के वो पहलू दिखाए जाते हैं, जिनके बारे में न आपने पहले कभी सुना हो और ना देखा हो।

    साइंस फिक्शन एक शैली है, जो वास्तविक या काल्पनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी को अपने कथानक, सेटिंग या थीम के हिस्से के रूप में रचनात्मक रूप से चित्रित करती है।

    ऐसी फिल्में दर्शकाें का मनोरंजन करने के साथ विज्ञान का भी ज्ञान देती हैं।

    शुरुआत

    'मिस्टर इंडिया' से शुरू हुआ था सफर

    1987 में रिलीज हुई साइंस फिक्शन पर आधारित सुपरहिट फिल्म 'मिस्टर इंडिया ने उस जमाने में काफी सुर्खियां बटोरी थीं।

    इसमें इंसान को गायब करने वाली घड़ी दिखाई गई है, जिसको पहनकर अनिल कपूर गायब हो जाते थे और केवल लाल रंग की रोशनी में ही नजर आते थे।

    इस तरह की फिल्म उस दौर में बिल्कुल नई थी। इसी वजह से इसको बहुत पसंद किया गया था। 'मिस्टर इंडिया' को बॉलीवुड की पहली साइंस फिक्शन फिल्म बताया जाता है।

    फिल्में

    बॉलीवुड में बन चुकी हैं ये साइंस फिक्शन फिल्में 

    शाहरुख खान की 'रा वन' भी साइंस फिक्शन फिल्म थी। इस फिल्म में कंप्यूटर गेमिंग से जीवित हुए रोबोट का खौफ दिखाया गया था।

    फिल्म 'लव स्टोरी 2050' में हरमन बावेजा टाइम मशीन से 2050 में पहुंच जाते हैं, जहां इंसान कम रोबोट ज्यादा होते हैं।

    उधर फिल्म 'मिस्टर एक्स' में भी विज्ञान के प्रयोगों के जरिए कुछ ऐसा होता है, जो इमरान हाशमी में गायब होने की शक्ति आती है।

    ये सभी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर असफल रही थीं।

    जानकारी

    इन 2 फिल्माें को मिला प्यार

    'कोई मिल गया' भारत की सबसे सफल साइंस फिक्शन फिल्मों में से एक है। इसने ऋतिक रोशन के करियर को ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया था। 'कोई मिल गया का सीक्वल फिल्म 'कृष' भी साइंस फिक्शन है, जो 2006 में रिलीज हुई और सफल रही थी।

    उम्मीदें

    'कल्कि 2898 AD' से बहेगी साइंस फिक्शन फिल्मों की बयार?

    जो सोचकर और जिस नजरिए से यह फिल्म निर्देशक नाग अश्विन ने यह बनाई है, अगर उनकी कल्पना से यह मेल खा गई तो आने वाली पीढ़ी इसका नाम 'मील के पत्थर' की तरह लेगी।

    निर्देशक खुद मानते हैं कि यह फिल्म निर्माण के तरीकों को बदलकर रख देगी और इसकी कामयाबी के बाद भारतीय सिनेमा में साइंस फिक्शन फिल्मों की बयार बहेगी।

    600 करोड़ रुपये में बनी यह फिल्म भारतीय सिनेमा की अब तक की सबसे महंगी फिल्म है।

    वजह

    साइंस फिक्शन फिल्मों में क्यों आगे नहीं हिंदी सिनेमा?

    तकनीक का मतलब यह नहीं कि आप लोगों को वो दिखाएं, जो संभव ना हो। साइंस के किसी फार्म्युले से चीजों को समझाया जाए तो शायद फिल्में बेतुकी या हास्यास्पद नहीं लगेंगी।

    हालांकि, निर्देशकों का कहना है कि वे ऐसी फिल्में इसलिए बनाते हैं, क्योंकि इनसे खासकर बच्चे जल्दी जुड़ते हैं।

    एक वजह ऐसी फिल्मों के न चलने की यह है कि इनके ग्राफिक्स जानदार नहीं होते, जबकि साइंस फिक्शन फिल्मों के लिए ग्राफिक्स 'रीढ़ की हड्डी' होते हैं।

    कारण

    बजट भी बनता है बाधा

    किसी भी साइंस फिक्शन फिल्म को बनाने में भारी-भरकम बजट की आवश्यकता होती है और बॉलीवुड का साइंस फिक्शन में पीछे होने का एक कारण ज्यादा लागत भी हो सकती है, क्योंकि अगर बजट कम है तो कहीं न कहीं फिल्म के विजुअल्स से समझौता करना पड़ेगा और ग्राफिक्स उम्दा नहीं होंगे तो फिल्म प्रभावी नहीं रह जाएगी।

    कई बार बड़ी रकम लगाने के बावजूद हाई क्वालिटी इफेक्ट्स सामने नहीं आते, जिसके बाद निर्माता दोबारा जोखिम लेने से डरते हैं।

    श्रेय

    हॉलीवुड के भरोसे बॉलीवुड

    'इंटरस्टेलर', 'द मार्शियन', 'ब्लेड रनर', 'अराइवल', 'एज ऑफ टुमॉरो', 'ग्रेविटी', 'अवतार', 'इंसेप्शन', 'द मेट्रिक्स' और 'टर्मिनेटर' जैसी कई हॉलीवुड फिल्में साइंस फिक्शन का बेहतरीन उदाहरण हैं। हॉलीवुड लंबे समय से साइंस फिक्शन पर बहुत बढ़िया काम करता आ रहा है।

    उधर भारतीय सिनेमा में जो बेहतरीन साइंस फिक्शन फिल्में बनी हैं, उनमें विदेशियों ने ही सारी तकनीकी चीजें संभाली हैं। चाहे वो 'कृष' या कोई और तकरीबन हर बेहतरीन साइंस फिक्शन में विदेशी तकनीशियनों की ही मेहनत है।

    दिशा

    क्या विज्ञान की राह पर चल पड़ा बॉलीवुड?

    अब बॉलीवुड भी विज्ञान की राह पर चल रहा है। स्पेस साइंटिस्ट नंबी नारायण पर फिल्म रॉकेट्री बनाई गई थी, जिसमें आर माधवन लीड रोल में नजर आए थे। फिल्म ने कई पुरस्कार अपने नाम किए थे। भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा की बायोपिक को लेकर भी सुर्खियां जारी हैं।

    उधर शाहिद कपूर की फिल्म 'तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया' आई थी, जिसकी कहानी आर्यन नाम के रोबॉटिक्स इंजीनियर और सिफरा नाम की रोबोट पर आधारित है।

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