#NewsBytesExplainer: पंजाब की AAP सरकार और राज्यपाल आमने-सामने क्यों हैं?
पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने आज 3 मार्च को पंजाब विधानसभा का बजट सत्र बुलाने के लिए अपनी अनुमति दे दी। आज ही सुप्रीम कोर्ट में बजट सत्र को लेकर पंजाब सरकार और राज्यपाल पुरोहित के बीच छिड़े विवाद पर सुनवाई हुई थी। आइए जानते हैं कि यह पूरा विवाद क्या है, जिसको लेकर मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
कब और कैसे हुई पूरे विवाद की शुरुआत?
पंजाब सरकार और राज्यपाल के बीच छिड़े विवाद की अप्रत्यक्ष तौर पर शुरुआत 13 फरवरी को हुई थी। इस दिन राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने मुख्यमंत्री भगवंत मान को पत्र लिखकर सिंगापुर में ट्रेनिंग के लिए भेजे गए सरकारी स्कूलों के प्रधानाचार्यों की चयन प्रक्रिया और खर्च को लेकर जानकारी मांगी थी। राज्यपाल पुरोहित ने शीर्ष स्तर पर की गईं नियुक्तियों समेत कई अन्य मुद्दों पर भी राज्य सरकार से स्पष्टीकरण मांगा था।
सरकार ने राज्यपाल को क्या जवाब दिया था?
मुख्यमंत्री मान ने 13 फरवरी को ही राज्यपाल के पत्र का जवाब ट्वीट के जरिए दिया था। उन्होंने लिखा था, 'माननीय राज्यपाल महोदय, आपका पत्र मीडिया के माध्यम से प्राप्त हुआ है। पत्र में लिखे गए सभी विषय राज्य सरकार के विषय हैं। मैं और मेरी सरकार संविधान के अनुसार 3 करोड़ पंजाबियों के प्रति जवाबदेह हैं, न कि केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किसी राज्यपाल के प्रति। आपके पत्र का मेरा यह जवाब समझिए।'
पत्र पर विवाद के बाद क्या हुआ?
पंजाब सरकार की कैबिनेट ने 22 फरवरी को राज्यपाल को पत्र लिखकर 3 मार्च से पंजाब विधानसभा का बजट सत्र बुलाने की अनुमति मांगी थी। हालांकि, राज्यपाल पुरोहित ने इस बजट सत्र को बुलाने से इनकार कर दिया। उन्होंने पत्र लिखकर कहा कि मुख्यमंत्री मान का ट्वीट काफी अपमानजनक और असंवैधानिक था, जिस पर कानूनी सलाह ली जा रही है और इसके बाद ही बजट सत्र को बुलाने को लेकर विचार किया जाएगा।
राज्यपाल के इनकार के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंची सरकार
पंजाब सरकार ने बजट सत्र के लिए अनुमति नहीं मिलने पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक याचिका दाखिल की। पंजाब सरकार की तरफ से दायर याचिका में कहा गया कि संविधान के प्रावधानों के अनुसार राज्यपाल को राज्य सरकार की सलाह और सहायता से विधानसभा के सत्र को बुलाना होता है। याचिका में राज्यपाल के प्रधान सचिव को पहले प्रतिवादी के रूप में रखा गया था।
मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
मुख्य न्ययाधीश (CJI) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने पंजाब सरकार और राज्यपाल के बीच चल रहे गतिरोध को लेकर सुनवाई की। बेंच ने कहा, "जब कैबिनेट विधानसभा सत्र बुलाने के लिए कह रही हो तो राज्यपाल को ऐसा करना चाहिए, वहीं राज्यपाल द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरण पर मुख्यमंत्री जवाब देने के लिए बाध्य हैं।" सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, "लोकतंत्र में राजनीतिक मतभेद स्वीकार्य हैं और ऐसे मामलों को परिपक्व तरीके से सुलझाया जाना चाहिए।"
संवैधानिक दायित्व को निभाना मुख्यमंत्री और राज्यपाल की सामूहिक जिम्मेदारी- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा, "एक तरफ राज्य का प्रशासन लोकतांत्रिक रूप से चुने गए मुख्यमंत्री को सौंपा जाता है तो दूसरी तरफ राज्य के संवैधानिक प्रमुख के रूप में राज्यपाल को सरकार के मार्गदर्शन और परामर्श देने का कर्तव्य सौंपा जाता है। इस संवैधानिक दायित्व को निभाने की मुख्यमंत्री और राज्यपाल की सामूहिक जिम्मेदारी है।" कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को कैबिनेट की सलाह के अनुसार कार्य करना होता है।
पहले भी अनुमति देने से इनकार कर चुके हैं राज्यपाल
बता दें कि पिछले साल सितंबर में भी राज्यपाल पुरोहित ने पंजाब विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने के लिए दी गई अपनी अनुमति को वापस ले लिया था। पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (AAP) ने इसको लेकर राज्यपाल पुरोहित का काफी विरोध किया था। पार्टी ने आरोप लगाया था कि राज्य सरकार को विधानसभा का सत्र आयोजित करने से रोकना संवैधानिक प्रथाओं और प्रक्रियाओं को तोड़ने जैसा है।
इस बात पर भी आमने-सामने आ चुके हैं राज्यपाल और सरकार
पंजाब में सरकार और राज्यपाल के बीच इससे पहले भी कई विवाद हो चुके हैं। राज्यपाल पुरोहित ने पाकिस्तान की सीमा से लगने वाले पंजाब के जिलों का दौरा किया था और कहा था कि इन जिलों में ड्रग्स की तस्करी की लगातार सूचना मिल रही है, जिस पर कार्रवाई की जानी चाहिए। राज्यपाल 17 महीनों के कार्यकाल के दौरान 5 बार सीमावर्ती जिलों का दौरा कर चुके हैं, जिस पर AAP ने आपत्ति जताई थी।