हरियाणा विधानसभा चुनाव: एग्जिट पोल में भाजपा की हार के अनुमान, क्या हैं संभावित कारण?
हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल आ चुके हैं। ज्यादातर पोल में अनुमान है कि एक दशक बाद कांग्रेस राज्य की सत्ता में वापसी कर सकती है तो वहीं भाजपा लगातार तीसरी बार सत्ता में आने से चूक सकती है। कांग्रेस को कुल 90 सीटों में से 50-58 मिलने का अनुमान है, जबकि भाजपा 20-28 सीटें जीत सकती हैं। आइए जानते हैं हरियाणा में भाजपा को नुकसान के संभावित कारण क्या हैं।
बेरोजगारी और अग्निवीर का मुद्दा
भाजपा के लिए बेरोजगारी सबसे बड़े चुनौती रहा। 2021-22 में हरियाणा की बेरोजगारी दर 9 प्रतिशत थी। ये राष्ट्रीय औसत से करीब दोगुनी है। भाजपा ने 2 लाख नौकरियां देने का वादा किया था, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। दूसरी ओर, हरियाणा से बड़ी संख्या में युवा सेना में जाते हैं, लेकिन अग्निवीर योजना की वजह से युवाओं को दूसरे विकल्प तलाशने पड़े। हरियाणा में लोकसभा चुनावों में भी अग्निवीर का मुद्दा काफी बड़ा था।
भारी पड़ी बागी नेताओं की नाराजगी
भाजपा के उम्मीदवारों की पहली सूची आते ही इस्तीफों की झड़ी लग गई। टिकट कटते ही मंत्री रणजीत सिंह चौटाला से लेकर सावित्री जिंदल समेत दर्जनों नेता बगावत पर उतर आए। पार्टी ने रामबिलास शर्मा का टिकट काटा तो वे निर्दलीय मैदान में उतर गए और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत उनके नामांकन में पहुंच गए। इसी तरह OBC मोर्चा के अध्यक्ष कर्णदेव कंबोज का टिकट कटा तो वो कांग्रेस में चले गए।
बड़े दलित नेता की कमी
हरियाणा में जाट के बाद दलित मतदाता सबसे ज्यादा हैं। राज्य की 17 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं और ये समुदाय 35 सीटों पर काफी अहम भूमिका में रहता है। 2014 में भाजपा को दलितों का पूरा समर्थन मिला था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस के पास कुमारी सैलजा जैसा दलित चेहरा है, जो मुख्यमंत्री पद की रेस में हैं। दूसरी ओर, भाजपा के पास कोई बड़ा दलित चेहरा नहीं है।
सत्ता विरोधी भावना
हरियाणा में भाजपा बीते 10 सालों से सत्ता में है। ऐसे में यहां सत्ता विरोधी लहर तो है ही। पार्टी के भीतर भी कई मुद्दों पर मतभेद हैं। इसी असंतोष को कम करने के लिए मार्च में तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि, इस कदम से भी पार्टी आंतरिक मुद्दों को सुलझाने में असफल रही। सैनी को मुख्यमंत्री बनाने से कई दावेदार नाराज बताए गए।
जमीन पर नहीं उतरी योजनाएं
भ्रष्टाचार से निपटने के लिए परिवार पहचान पत्र, संपत्ति पहचान पत्र, ई-क्षतिपूर्ति, टेंडरिंग और भावांतर भरपाई योजना सहित कई ई-पोर्टल शुरू किए। इनके क्रियान्वयन में गड़बड़ी के चलते लोगों तक फायदा नहीं पहुंच सका। चुनाव से पहले 24 फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण और अग्निवीरों को 5 लाख रुपये तक ब्याज मुक्त लोन देने का वादा भी किया गया, लेकिन चुनाव सिर पर थे, ऐसे में ये योजनाओं कागजों में ही रह गईं।