#NewsBytesExplainer: संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवाद' शब्द हटाने से जुड़ा विवाद क्या है?
क्या है खबर?
नई संसद में कार्यवाही शुरू होने से पहले केंद्र सरकार द्वारा सांसदों को दी गई संविधान की प्रति से एक नया विवाद खड़ा हो गया है।
विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवाद' शब्दों को हटा दिया है। सरकार ने आरोपों का जवाब देते हुए इन्हें खारिज किया है।
आइए जानते हैं कि ये पूरा विवाद क्या है और सरकार ने अपनी सफाई में क्या कहा है।
आरोप
विपक्ष ने क्या आरोप लगाए हैं?
कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा, "संविधान की प्रस्तावना की जो प्रति हम नई संसद में ले गए, उसमें 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द शामिल नहीं हैं। उन्हें चतुराई से हटा दिया गया है। ये एक गंभीर मामला है और हम इस मुद्दे को उठाएंगे।"
इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस (TMC) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के नेताओं ने भी इस विषय पर आपत्ति जताते हुए इन शब्दों को कथित तौर पर हटाए जाने को अपराध करार दिया।
केंद्र
केंद्र सरकार ने आरोपों पर क्या कहा?
केंद्र सरकार ने कहा कि सांसदों को संविधान सभा द्वारा स्वीकार किए गए मूल संविधान की प्रति दी गई थी।
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघावल ने कहा, "इन प्रतियों में संविधान की प्रस्तावना का मूल संस्करण है। जब संविधान अपनाया गया था, तब इसकी प्रस्तावना ऐसी ही थी। उसके बाद 1976 में 42वां संशोधन कर इन शब्दों (धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद) को जोड़ा गया।"
रिपोर्ट्स के अनुसार, संविधान की हिंदी प्रति में ये दोनों शब्द थे, लेकिन अंग्रेजी में नहीं थे।
संविधान संशोधन
संविधान में कब जुड़े 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द?
साल 1976 में आपातकाल के समय इंदिरा गांधी की सरकार ने संविधान में 42वां संशोधन किया था। इस दौरान संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को जोड़ा गया था।
तब ये तर्क दिया गया था कि देश को धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक तौर पर विकसित करने के लिए ये संशोधन आवश्यक है।
ये बदलाव स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश के आधार पर किया गया था। समिति को संविधान का अध्ययन करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
कारण
क्यों जोड़े गए थे शब्द?
संविधान में 'समाजवाद' शब्द को जोड़ने के पीछे का कारण देश के नागरिकों के कल्याण, भेदभाव की समाप्ति, उत्पादन के साधनों का राष्ट्रीयकरण, धन के समान वितरण और सभी के लिए न्याय सुनिश्चित करने की भावना को दर्शाना था।
'धर्मनिरपेक्ष' शब्द जोड़ने के पीछे ये तर्क दिया गया कि देश का कोई अपना धर्म नहीं है और ये देश सभी धर्म का समान करता है। इसी भावना को दर्शाने के लिए ये शब्द जोड़े गए थे।
सुप्रीम कोर्ट
मामले में सुप्रीम कोर्ट का क्या रहा है मत?
1973 तक सुप्रीम कोर्ट का मत था कि संविधान की प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है, इसलिये इसमें संशोधन भी नहीं किया जा सकता है।
हालांकि, 1973 में केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रस्तावना संविधान का एक हिस्सा है और इसे संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित किया जा सकता है।
कोर्ट ने ये भी कहा कि ऐसे संशोधन से संविधान का मूलभूत ढांचा बदला नहीं जा सकता है।
समाजवाद
और कब-कब विवादों में आए ये 2 शब्द?
2015 में गणतंत्र दिवस के लिए अखबारों में प्रकाशित एक सरकारी विज्ञापन में संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द गायब थे। तब काफी विवाद हुआ था।
2020 में 2 वकीलों और एक सामाजिक कार्यकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर प्रस्तावना से इन शब्दों को हटाने की मांग की थी।
भाजपा के नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी 2022 में सुप्रीम कोर्ट में संविधान की प्रस्तावना से इन शब्दों को हटाने को लेकर याचिका दायर की थी।