क्या दिल्ली में महाराष्ट्र के साथ हो सकते हैं विधानसभा चुनाव? जानिए क्या कहते हैं नियम
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने पद से इस्तीफा देने का ऐलान कर सियासत में खलबली मचा दी है। उन्होंने कहा कि जब तक दिल्लीवासी उन्हें ईमानदारी का प्रमाणपत्र नहीं दे देते, तब तक वह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठेंगे। इसके साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार से जल्द चुनाव कराने की मांग भी की है। ऐसे में आइए जानते हैं क्या दिल्ली में निर्धारित समय से पहले चुनाव कराए जा सकते हैं और इसके लिए क्या नियम हैं।
दिल्ली की राजनीति में अभी क्या चल रहा है?
दरअसल, 13 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को दिल्ली शराब नीति में कथित घोटाले के मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा की गई गिरफ्तारी में सशर्त जमानत दे दी थी। उनके जेल से बाहर आते ही दिल्ली की सियासत में गर्मी आ गई। केजरीवाल ने रविवार को दिल्ली स्थित आम आदमी पार्टी (AAP) कार्यालय में कार्यकर्ताओं को सम्बोधित किया। इस दौरान उन्होंने 2 दिन बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का ऐलान कर सबको चौंका दिया।
जल्द चुनाव कराने को लेकर क्या बोले केजरीवाल?
मुख्यमंत्री केजरीवाल ने पद से इस्तीफा देने की घोषणा के साथ ही दिल्ली में समय से पहले चुनाव कराने की मांग की। उन्होंने कहा, 'हम केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से दिल्ली में नवंबर में ही चुनाव कराने की मांग करेंगे।' इसी तरह दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी और सौरभ भारद्वाज ने भी चुनाव आयोग से दिल्ली में महाराष्ट्र और झारखंड के साथ ही विधानसभा चुनाव कराने की मांग की है। उन्होंने कहा दिल्ली के लोग भी यही चाहते हैं।
क्या दिल्ली में तय समय से पहले हो सकते हैं चुनाव?
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा-15 के तहत किसी विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने के 6 महीने पहले तक चुनाव आयोग उस विधानसभा के जल्द चुनाव कराने का निर्णय ले सकता है। महाराष्ट्र में विधानसभा के पिछले चुनाव अक्टूबर 2019 और दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए थे। इसलिए संवैधानिक तौर पर दोनों राज्यों में विधानसभा के चुनाव एकसाथ कराए जा सकते हैं। हालांकि, इसके लिए चुनाव आयोग को केंद्र सरकार से भी चुनाव की आवश्यकता पर परामर्श करता होता है।
पहले चुनाव कराने के लिए होना चाहिए ठोस कारण
चुनावी विशेषज्ञों के अनुसार, कानूनी तौर पर चुनाव आयोग के पास महाराष्ट्र के साथ-साथ दिल्ली में विधानसभा चुनाव कराने की शक्ति है, लेकिन पिछले मौकों पर दिल्ली में चुनाव अलग से हुए थे। चुनाव आयोग के पास महाराष्ट्र और दिल्ली चुनावों को एक साथ कराने का ठोस कारण होना जरूरी है। इसके लिए दिल्ली सरकार को आयोग को पत्र लिखकर जल्दी चुनाव कराने के पीछे आवश्यक कारण बताना होगा। हालांकि, इसके बाद भी अंतिम निर्णय आयोग का ही होगा।
जल्द चुनाव कराने की क्या है प्रक्रिया?
जनप्रतिनिधि अधिनियम के तहत, किसी विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने से पहले चुनाव कराने के लिए चुनी हुई राज्य सरकार के मंत्रिमंडल को चालू विधानसभा को भंग करने की सिफारिश करनी होती है। उसके बाद राज्यपाल या उपराज्यपाल विधानसभा को भंग करने और नई विधानसभा के गठन के लिए चुनाव की प्रक्रिया की सिफारिश कर सकते हैं। उन सिफारिशों के आधार पर ही चुनाव आयोग विधानसभा चुनावों को जल्द कराने पर अपनी मुहर लगा सकता है।
क्या बिना विधानसभा भंग हुए कराए जा सकते हैं चुनाव?
दिल्ली में मुख्यमंत्री केजरीवाल ने इस्तीफा देने की घोषणा तो कर दी, लेकिन विधानसभा को भंग करने की सिफारिश नहीं की है। ऐसे में क्या बिना विधानसभा भंग हुए जल्द चुनाव कराए जा सकते हैं? इसका जवाब है कि अगर विधानसभा का कार्यकाल 6 महीने से कम है तो केंद्र सरकार और चुनाव आयोग कभी भी चुनाव करा सकते हैं। हालांकि, दिल्ली के लिए उपराज्यपाल की अनुशंसा और केंद्र की मंजूरी के साथ चुनाव आयोग की सहमति भी जरूरी है।
दिल्ली में जल्द चुनाव कराने में बड़ी परेशानी क्या है?
चुनाव कराने से पहले आयोग संबंधित राज्य में नए मतदाताओं को शामिल करने के साथ मतदाता सूची को अपडेट करने, EVM की उपलब्धता, अधिकारियों, पुलिस, अर्ध सैनिक बलों की उपलब्धता और जल्द चुनाव कराने से जुड़े आर्थिक पहलुओं का आंकलन करता है। दिल्ली में मतदाता सूची 1 जनवरी, 2025 को अपडेट की जाएगी जो उसकी आखिरी तारीख है। इसके अपडेट होने पर नए मतदाता वोट डाल सकते हैं। ऐसे में आयोग दिल्ली में जल्दी चुनाव कराने से कतरा सकता है।
दिल्ली में पिछले महीने ही शुरू हुई है प्रक्रिया
महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में मतदाता सूची अपडेट करने का काम कई महीनों से चल रहा है, जबकि दिल्ली में यह प्रक्रिया अगस्त से शुरू हुई है। ऐसे में आयोग चुनावों की पूरी तैयारी के बाद ही जल्द चुनाव कराने पर निर्णय ले सकता है।
दिल्ली में अब आगे क्या?
दिल्ली में मंगलवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उपराज्यपाल से मिलकर अपना इस्तीफा सौंपेंगे। इसके बाद जब उनका इस्तीफा मंजूर हो जाएगा तब AAP विधायक दल की बैठक होगी और उसमें नए नेता का चुनाव किया जाएगा। इसके बाद विधायक दल का नेता उपराज्यपाल के जरिए राष्ट्रपति को अपना दावा सौपेंगे और इसके बाद वह मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। AAP नेताओं के अनुसार, इस पूरी प्रक्रिया में एक सप्ताह का समय लग सकता है।