छत्तीसगढ़: मुख्यमंत्री चेहरे के बिना चुनाव लड़ेगी भाजपा, प्रधानमंत्री के नाम पर मांगेगी वोट
छत्तीसगढ़ में इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस और भाजपा ने तैयारियां शुरू कर दी है। इस बीच खबर है कि भाजपा राज्य में इस बार रमन सिंह के नाम पर चुनाव नहीं लड़ेगी। सूत्रों के हवाले से खबर है कि पार्टी इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे रखते हुए 'सामूहिक नेतृत्व' में चुनाव लड़ेगी। यानी पार्टी इस बार मुख्यमंत्री चेहरे के बिना छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़ने जा रही है।
प्रधानमंत्री की लोकप्रिय छवि को भुनाएगी भाजपा
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भाजपा छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री की लोकप्रिय छवि को भुनाने का प्रयास करेगी, इसलिए मुख्यमंत्री पद को लेकर किसी का भी नाम आगे नहीं किया जाएगा। कहा जा रहा है कि बीते शुक्रवार को प्रधानमंत्री के रायपुर दौरे के दौरान इस फैसले पर मुहर लगी है। राजनीतिक विश्लेषक इस फैसले को पार्टी के दृष्टिकोण में एक रणनीतिक बदलाव के तौर पर देख रहे हैं, क्योंकि भाजपा आमतौर पर ऐसा नहीं करती है।
क्या है फैसले के पीछे की वजह?
बताया जा रहा है कि इस फैसले के पीछे का उद्देश्य राज्य में पार्टी के भीतर गुटबाजी पर लगाम लगाना है। खबर है कि गुटबाजी की वजह से भाजपा को छत्तीसगढ़ में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। इसी संबंध में गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले हफ्ते राज्य के वरिष्ठ नेताओं के साथ मैराथन बैठक भी की थी। जिसमें ये मामला उठने के बाद मुख्यमंत्री चेहरे के बिना चुनाव लड़ने का फैसला लिया गया है।
रमन सिंह के खिलाफ हैं ये बातें
रिपोर्ट्स के मुताबिक, पार्टी को पता चला है कि सिंह जमीन पर सक्रिय नहीं हैं और ये बात उनके खिलाफ जा सकती है। हालांकि, वे सोशल मीडिया पर जरूर सक्रिय रहते हैं और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर निशाना साधते रहते हैं। सिंह के कार्यकाल की आलोचना इस आधार पर भी की जाती है कि वे केवल कुछ शक्तिशाली मंत्रियों और नौकरशाहों से ही सलाह लेते थे। इस वजह से पार्टी में गुटबाजी बढ़ी और दूसरा नेतृत्व तैयार नहीं हो सका।
क्या रहा था पिछले चुनावों का परिणाम?
छत्तीसगढ़ में 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। पार्टी को केवल 15 सीटों पर ही जीत मिली थी, जबकि कांग्रेस ने 68 सीटों पर जीत दर्ज की थी। 2013 विधानसभा चुनावों के मुकाबले भाजपा को 34 सीटों का नुकसान हुआ था और कांग्रेस को 29 सीटों का फायदा। दोनों पार्टियों के वोट शेयर में भी करीब 10 प्रतिशत का अंतर था। राज्य में 2003 से लगातार 15 साल तक भाजपा की सरकार थी।