सैनिकों पर मुकदमा चलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची नागालैंड सरकार, क्या कहते हैं नियम?
नागालैंड की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर केंद्र सरकार के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें उसने 30 सैनिकों पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया था। दरअसल, ये मामला दिसंबर, 2021 में हुई एक घटना का है, जिसमें 13 आम लोग मारे गए थे। नागालैंड सरकार इनकी हत्या के लिए 30 सैनिकों पर मुकदमा चलाना चाहती है। आइए जानते हैं कि सैनिकों पर मुकदमा चलाने के लिए क्या नियम हैं।
सबसे पहले जानिए क्या है मामला?
ये घटना 4 दिसंबर, 2021 को नागालैंड के मोन जिले में हुई थी। यहां के तिरु और ओटिंग गांव के 6 लोग कोयला खदान में काम करने गए थे। जवानों ने इन्हें उग्रवादी समझकर गाड़ी पर गोलीबारी की, जिसमें सभी मारे गए थे। घटना के बाद बड़ी संख्या में ग्रामीण इकट्ठा हुए और सुरक्षा बलों के वाहनों में आग लगा दी। इसके बाद सैनिकों ने दोबारा गोलीबारी की, जिसमें 7 नागरिक और एक सैनिक की मौत हो गई।
राज्य सरकार का क्या कहना है?
राज्य पुलिस ने विशेष जांच दल (SIT) को मामले की जांच का जिम्मा सौंपा था। SIT ने 30 मई, 2022 को पेश की गई चार्जशीट में 21 पैरा स्पेशल फोर्सेज के 30 जवानों को आरोपी बनाया। उनके खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास और सबूत नष्ट करने के आरोप लगाए गए। SIT ने कहा था कि सैनिकों ने नियमों का पालन नहीं किया और बिना किसी पूर्व चेतावनी के उनकी अंधाधुंध गोलीबारी में नागरिकों की जान चली गई।
मामले पर सेना का क्या कहना है?
घटना की जांच के लिए सेना ने स्वतंत्र कोर्ट ऑफ इंक्वायरी भी स्थापित की, जिसमें दोषी पाए जाने पर जवानों के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन दिया गया था। इधर, नागालैंड सरकार ने जवानों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए केंद्र सरकार से अनुमति मांगी थी। 14 अप्रैल, 2023 को रक्षा मंत्रालय ने इसकी मंजूरी देने से इनकार कर दिया था। 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने भी मुकदमा चलाने पर रोक लगा दी थी।
सैनिकों पर मुकदमा चलाने को लेकर क्या हैं नियम?
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए सैन्य वकील कर्नल मुकुल देव (सेवानिवृत्त) ने कहा, "दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 197 के तहत, केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना किसी भी केंद्रीय सरकारी कर्मचारी पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। संभवत: केंद्र ने इन सैनिकों पर मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी होगी, क्योंकि घटना के समय नागालैंड के मोन जिले में सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम (AFSPA) लागू था।"
क्या है AFSPA?
AFSPA कानून ब्रिटिश सरकार के जमाने का है। 1958 में एक अध्यादेश के जरिए AFSPA के वर्तमान स्वरूप को लाया गया। AFSPA में सैन्य बलों को अधिकार है कि वे कानून तोड़ने वाले किसी व्यक्ति पर बल प्रयोग, यहां तक कि गोली भी चला सकते हैं। सैन्य बल बिना वारंट के किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकते हैं और तलाशी ले सकते हैं। सुरक्षा बलों के खिलाफ बिना केंद्र सरकार की मंजूरी कोई भी मुकदमा दर्ज नहीं हो सकता।