#NewsBytesExplainer: कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भारत से लेकर अपने देश तक क्यों घिरे हुए?
कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो मंगलवार को भारत से रवाना हो गए। उन्हें G-20 शिखर सम्मेलन के बाद रविवार को दुनिया के बाकी नेताओं की तरह वापस जाना था, लेकिन विमान में आई तकनीकी खराबी की वजह से वह दिल्ली में ही फंसे हुए थे। ट्रूडो को भारत यात्रा के दौरान कोई खास तवज्जो नहीं मिली तो दूसरी तरफ कनाडा में भी उन्हें घेरा जा रहा है। आइए जानते हैं कि ट्रूडो कैसे इस पूरे मामले में घिरे हुए हैं।
क्यों कहा जा रहा ट्रूडो को नहीं मिली तवज्जो?
दिल्ली में आयोजित G-20 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करीब 15 नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठकें कीं। इनमें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और अन्य देशों के शीर्ष नेता शामिल रहे। दूसरी तरफ कनाडाई प्रधानमंत्री ट्रूडो के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने कोई औपचारिक बैठक नहीं की। इसके अलावा सम्मेलन के पहले दिन आयोजन स्थल 'भारत मंडपम' में मोदी और ट्रूडो की मुलाकात काफी संक्षिप्त और असहज दिखाई दी।
मोदी और ट्रूडो के बीच क्या संक्षिप्त बातचीत हुई?
शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री ट्रूडो के बीच एक संक्षिप्त बातचीत हुई, जिसमें मोदी ने कनाडा में खालिस्तानी तत्वों द्वारा लगातार भारत विरोधी गतिविधियों के बारे में गंभीर चिंता जताई। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ऐसे खतरों से निपटने के लिए दोनों देशों का सहयोग करना जरूरी है। दरअसल, कनाडा में सिख समुदाय की एक बड़ी आबादी रहती है। यहां खालिस्तान के समर्थन में भारत विरोधी प्रदर्शन होते रहते हैं।
खालिस्तानी तत्वों पर भारत का क्या आरोप?
रविवार को जब ट्रूडो और मोदी G-20 नेताओं के शिखर सम्मेलन के लिए भारत में थे, तब खालिस्तानी अलगाववादियों ने ब्रिटिश कोलंबिया के सरे में एक तथाकथित 'जनमत संग्रह' आयोजित किया था। भारत सरकार का आरोप है कि कनाडा की ट्रूडो सरकार खालिस्तानी चरमपंथियों के खिलाफ नरम रुख अपनाती आई है। इससे पहले ट्रूडो किसान आंदोलन के दौरान खुलकर आंदोलन का समर्थन कर चुके हैं और उन्होंने खालिस्तान की मांग को भी 'अभिव्यक्ति की आजादी' बताया था।
भारत सरकार के आरोपों में कितनी सच्चाई?
कनाडा में भारतीय मूल के 24 लाख लोग हैं। इनमें से 7 लाख सिख हैं, जिन्हें ट्रूडो की पार्टी एक बड़े अल्पसंख्यक वोटबैंक के तौर पर देखती है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 2016 में कनाडा की कुल आबादी में अल्पसंख्यक 22.3 प्रतिशत थे और 2036 तक कनाडा की कुल आबादी में अल्पसंख्यक 33 प्रतिशत हो जाएंगे। यह भी एक बड़ा कारण है कि खालिस्तान समर्थकों पर कार्रवाई करके ट्रूडो सिख और अल्पसंख्यक वोटबैंक को नहीं गंवाना चाहते।
क्या कनाडा-भारत के बीच खराब हो रहे हैं राजनयिक रिश्ते?
कनाडा की स्थानीय मीडिया ने भारत के साथ बढ़ रही कनाडा की राजनयिक दूरियों पर चिंता जाहिर की है। द टोरंटो सन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि कनाडा ने भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिए नई रणनीति घोषित की है, लेकिन वह इस क्षेत्र की 2 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं भारत और चीन से पूरी तरह अलग-थलग है। इससे पहले कनाडा ने 1 सितंबर को भारत से साथ प्रस्तावित व्यापार समझौते पर बिना किसी स्पष्टीकरण के रोक लगा दी थी।
कनाडा में क्यों घिरे हुए हैं ट्रूडो?
प्रधानमंत्री ट्रूडो भारत के साथ व्यापार समझौता न करने को लेकर अपने देश में घिरे हुए हैं। कनाडा के सासकाचेवान के प्रीमियर स्कॉट मोए ने ट्रूडो पर भारत के साथ संबंध खराब करने के आरोप लगाए हैं। उन्होंने एक पत्र जारी करते हुए कहा कि ट्रूडो ने प्रांतों को भारत के साथ समझौते को लेकर अंधेरे में रखा और वह घरेलू राजनीतिक कारणों की वजह से भारत से तनाव बढ़ा रहे हैं। इससे अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा है।
ट्रूडो क्यों बनाकर रख रहे मोदी से दूरी?
विशेषज्ञों के अनुसार, ट्रूडो वैचारिक तौर पर मोदी के विरोधी हैं और उन्हें डर है कि मोदी की नीतियों का असर उनके राजनीतिक भविष्य पर भी पड़ेगा, इसलिए वह मोदी से दूरी बनाए रखना चाहते हैं। हालांकि, इसका कनाडा को नुकसान हो सकता है क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था कनाडा से दोगुनी से अधिक है और अगर देखा जाए तो कनाडा को भारत की अधिक जरूरत है।
न्यूजबाइट्स प्लस
कनाडा में हालिया समय में खालिस्तानी गतिविधियां बढ़ी हैं। 4 जून को कनाडा के ब्रैम्पटन में खालिस्तान समर्थकों ने एक झांकी निकाली थी, जिसमें पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के दृश्य को दिखाया गया था। मार्च में भी अमृतपाल सिंह पर हुई कार्रवाई के बाद कनाडा में भारतीय दूतावास के सामने खालिस्तानियों ने प्रदर्शन किया था। 19 जून को आतंकी निज्जर की हत्या के बाद से यहां भारत विरोधी गतिविधियां फिर बढ़ गई हैं।