#NewsBytesExplainer: G-20 शिखर सम्मेलन से भारत को क्या हासिल होगा और क्या है मुख्य चुनौती?
क्या है खबर?
दिल्ली में 2-दिवसीय G-20 शिखर सम्मेलन की शुरुआत हो गई है। इसमें 27 देशों के राष्ट्राध्यक्ष और प्रतिनिधि शामिल हो रहे हैं। अमेरिका, जापान और ब्रिटेन से लेकर खाड़ी देशों के नेता भी दिल्ली में जुटे हैं।
इस आयोजन पर करीब 4,200 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। इतनी बड़ी राशि और आयोजन के पैमाने को देखते हुए सवाल उठ रहे हैं कि आखिर भारत को इससे क्या हासिल होगा।
आइए आज इसी मुद्दे को समझने की कोशिश करते हैं।
अहमियत
सबसे पहले जानिए G-20 क्यों है अहम
G-20 समूह वैश्विक अर्थव्यवस्था का 80 प्रतिशत, वैश्विक निर्यात का 75 प्रतिशत और आबादी के 80 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है।
इसमें दुनिया की शीर्ष 19 अर्थव्यवस्था वाले देश और यूरोपीय संघ (EU) भी शामिल है। आज ही 55 देशों वाला अफ्रीकी संघ (AU) भी इसका हिस्सा बन गया है। कई देश बतौर अतिथि भी इसमें आमंत्रित किए जाते रहे हैं। परमाणु शक्ति से संपन्न देश भी इसका हिस्सा हैं।
ये सभी बातें G-20 की अहमियत को दर्शाती हैं।
छवि
क्या G-20 सम्मेलन से मजबूत होगी भारत की छवि?
भारत ने G-20 के लिए सतत विकास लक्ष्य के मुद्दे को आगे बढ़ाया है। G-20 अध्यक्ष के रूप में भारत खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा, स्वास्थ्य, समावेशी विकास, डिजिटल नवाचार, जलवायु परिवर्तन और आसान स्वास्थ्य पहुंच जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
अगर इनमें से किसी भी मुद्दे पर बड़ा फैसला हुआ तो बतौर अध्यक्ष भारत को इसका श्रेय मिलेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के पास वैश्विक मुद्दों पर अपनी सोच को आगे बढ़ाने का मौका है।
समझौते
भारत के पक्ष में अहम समझौते
G-20 शिखर सम्मेलन के इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई राष्ट्राध्यक्षों के साथ द्विपक्षीय बैठकें भी कीं। अमेरिका से छोटे मॉड्यूलर परमाणु रिएक्टर और जेट इंजन डील पर बात आगे बढ़ी।
अमेरिका, सऊदी अरब, भारत, UAE और यूरोपीय देशों के बीच एक संयुक्त रेल और बंदरगाह नेटवर्क योजना को लेकर भी सहमति बनी है, जिससे भारत सीधा यूरोप से जुड़ जाएगा।
इसे चीन के 'वन बेल्ट, वन रोड' का जवाब माना जा रहा है।
चीन
चीन पर मिलेगी रणनीतिक बढ़त?
भारत-चीन के बीच संबंध सामान्य नहीं है। दोनों के बीच सीमा विवाद चल रहा है और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग सम्मेलन में शामिल भी नहीं हो रहे हैं।
जिस रेल और बंदरगाह नेटवर्क प्रोजेक्ट का जिक्र हो रहा है, वह चीन के वन बेल्ट वन रोड (OBOR) के रणनीतिक लाभ को खत्म करेगा।
अफ्रीकी संघ को G-20 में शामिल करने को भी ग्लोबल साउथ में चीन की बढ़ती पैठ को कम करने की कोशिश माना जा रहा है।
सहमति
संयुक्त घोषणा पर आम सहमति बड़ी सफलता
G-20 शिखर सम्मेलन के अंत में एक संयुक्त घोषणा पत्र जारी किया जाता है।
हालांकि, भारत की अध्यक्षता के दौरान इस पर सहमति नहीं बन रही थी और इसमें मुख्य अड़चन यूक्रेन युद्ध था। इस पर पश्चिमी देशों का मुकाबला रूस और चीन से था।
हालांकि, भारत अंत में सभी देशों को एक साथ लाने में कामयाब रहा और यूक्रेन युद्ध समेत अन्य मुद्दों पर एक संयुक्त बयान 'दिल्ली घोषणा' आज पहले दिन ही जारी कर दिया गया।
टकराव
भारत के लिए मुख्य चुनौती क्या है?
G-20 देशों के बीच यूक्रेन युद्ध, जलवायु परिवर्तन और कोरोना वायरस महामारी जैसे कई मुद्दों पर विरोधाभास रहा है। यूक्रेन युद्ध पर रूस और चीन का विपरीत सुर रहता है।
जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों को लेकर भी शुरू से ही मतभेद रहे हैं। विकासशील देश ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन नियमों का पालन नहीं करना चाहते और औद्योगिक देशों को दोषी ठहराते हैं।
ऐसे में सम्मेलन से कुछ ठोस नहीं निकलने का डर है, जो भारत के लिए मुख्य चुनौती है।