#NewsBytesExplainer: क्या होता है कोटा के अंदर कोटा, आरक्षण पर 'सुप्रीम' फैसले का क्या होगा असर?
सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर बड़ा फैसला सुनाते हुए अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) में कोटे के अंदर कोटे को मंजूरी दे दी है। कोर्ट ने कहा कि कोटे में कोटा असमानता के खिलाफ नहीं है और राज्य सरकार अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में उप श्रेणियां बना सकती हैं। इसी के साथ कोर्ट ने 2004 के अपने पुराने फैसले को पलट दिया है। आइए जानते हैं इस फैसले का क्या असर होगा।
सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट का फैसला जानिए
दरअसल, 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि SC की उप-श्रेणी नहीं बनाई जा सकती। कोर्ट ने ये भी कहा था कि राज्यों के पास ये करने का अधिकार नहीं है और केवल राष्ट्रपति ही ये अधिसूचित कर सकते हैं। अब कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया है। अब कोर्ट ने राज्यों को ये अधिकार दिया है कि वे SC और ST के उत्थान के लिए उप-श्रेणियां बनाकर कोटे के अंदर कोटा बना सकती है।
क्या होता है कोटा के अंदर कोटा?
कोटा के भीतर कोटा का मतलब है कि आरक्षण के पहले से आवंटित प्रतिशत के भीतर एक अलग आरक्षण व्यवस्था लागू करना। इसका मुख्य उद्देश्य आरक्षण का लाभ समाज के सबसे पिछड़े और जरूरतमंद समूहों तक पहुंचाना होता है। उदाहरण के लिए SC और ST के भीतर अलग-अलग समूहों को आरक्षण दिया जा सकता है, ताकि सामाजिक या आर्थिक रूप से वंचित समूहों को ज्यादा प्रतिनिधित्व और लाभ मिल सके।
किन राज्यों में आरक्षण में उप-श्रेणियां बांटी गई हैं?
तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों ने SC, ST और OBC श्रेणियों के भीतर ही अलग-अलग उप-श्रेणियों को आरक्षण देने की व्यवस्था की है। तमिलनाडु में पिछड़ा वर्ग (BC), अत्यंत पिछड़ा वर्ग (MBC) और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) जैसी उप-श्रेणियों को OBC के अंतर्गत ही आरक्षण मिलता है। कर्नाटक में SC के भीतर ही 2 उप-श्रेणियां बनाई गई हैं। SC आरक्षण कोटे से ही कोडवा और माडिगा को अलग-अलग आरक्षण मिलता है।
फैसले का क्या होगा असर?
फैसले का महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब से लेकर दक्षिण भारतीय राज्यों तक असर दिखाई पड़ेगा। उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में दलित आरक्षण पर अब राज्य सरकारें फैसला ले पाएंगी। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय को मिलने वाले आरक्षण का भी बंटवारा हो सकता है। राजस्थान, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में OBC आरक्षण में कोटा के भीतर कोटा बनाने की मांग पर अब कुछ अमल हो सकता है।
मामले पर विशेषज्ञों का क्या कहना है?
टीवी-9 से बात करते हुए JNU के एसोसिएट प्रोफेसर हरीश वानखेड़े ने कहा, "हर एक राज्य में दलित समुदाय के बीच एक डोमिनेटिंग कास्ट होती है। बिहार में पासवान तो उत्तर प्रदेश में जाटव और महाराष्ट्र में महार ऐसी जातियां हैं, जिनके खिलाफ दलितों की दूसरी जातियों को गोलबंद कर राजनीतिक इस्तेमाल किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसला से दलित आरक्षण को बांटने का इन तमाम राज्यों में रास्ता साफ हो गया है।"
राज्यों के आयोगों ने भी की थी मांग
आंध्र प्रदेश ने 1997 में जस्टिस पी रामचंद्र राजू आयोग का गठन किया था। आयोग ने कहा था कि आरक्षण का लाभ SC वर्ग के एक खास समुदाय को मिला है। उत्तर प्रदेश में 2001 में हुकुम सिंह समिति का गठन हुआ था। समिति ने पाया था कि आरक्षण का लाभ सबसे पिछड़े वर्गों तक नहीं पहुंच पाया है। महाराष्ट्र में 2003 में लाहुजी साल्वे आयोग ने कहा था कि मांग समुदाय को आरक्षण का पर्याप्त लाभ नहीं मिला है।
फैसले का क्यों हो रहा है विरोध?
BBC से बात करते हुए जादवपुर यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर सुभाजीत नस्कर ने कहा, "उप-वर्गीकरण मतलब SC/ST वोट बंट जाएं। इससे एक समुदाय के अंदर राजनीतिक बंटवारा पैदा होगा। राज्य स्तर की पार्टियां भी अपने फायदे के मुताबिक उप-वर्गीकरण लाएंगी।" वंचित बहुजन आघाड़ी के अध्यक्ष प्रकाश आंबेडकर ने लिखा, 'यह फैसला समानता के मौलिक अधिकार के खिलाफ है। अनुसूचित जातियों के भीतर विभिन्न जातियों के पिछड़ेपन को मापने के मापदंडों का निर्णय किस आधार पर किया जाएगा।'