SC/ST संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर, नहीं मिलेगी अग्रिम जमानत
सुप्रीम कोर्ट ने आज एक बड़ा फैसला सुनाते हुए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (SC/ ST) (अत्याचार निवारण) संशोधन कानून, 2018 को संवैधानिक रूप से वैध बताया। इस कानून में SC/ST समुदाय के किसी व्यक्ति के साथ अत्याचार के आरोपी की गिरफ्तारी से पहले अनुमति की अनिवार्यता को खत्म किया गया था। इसी के साथ आरोपी के लिए अग्रिम जमानत के प्रावधान को भी हटा दिया गया था।। कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं थीं।
क्या है SC/ST कानून?
SC/ST समुदाय के लोगों के साथ होने वाले भेदभाव और अत्याचार को रोकने के लिए 1989 में SC/ST (अत्याचार निवारण) कानून बनाया गया था। इसमें SC/ST समुदाय को समाज में सबके समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। कानून में SC/ST समुदाय के किसी व्यक्ति के साथ भेदभाव करने पर सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। ऐसे अपराधों की सुनवाई के लिए भी विशेष व्यवस्था की गई है ताकि पीड़ित खुलकर अपनी बात रख सके।
मार्च, 2018 में अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने लगाई बिना जांच FIR पर रोक
कानून विवादों के केंद्र में तब आया जब 20 मार्च, 2018 को अपने एक आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने बिना जांच के FIR और गिरफ्तारी पर रोक लगी दी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि FIR से पहले प्रारंभिक जांच करने का प्रावधान किया था। DSP स्तर का अधिकारी को सात दिन के अंदर ये जांच करनी होगी। इसी के बाद मामले में कोई FIR दर्ज की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- गिरफ्तारी से पहले अनुमति जरूरी
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले अनुमति लेने का आदेश भी दिया था। भेदभाव के आरोपी किसी सरकारी कर्मचारी पर गिरफ्तारी से पहले उसके विभाग से और किसी आम नागरिक की गिरफ्तारी से पहले SSP स्तर के पुलिस अधिकारी से अनुमति लेने का प्रावधान कोर्ट ने किया था। कोर्ट ने अपने फैसले में आरोपियों की अग्रिम जमानत का प्रावधान भी किया था। SC/ST के दुरुपयोग को देखते हुए ये फैसला सुनाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ हुए देशभर में प्रदर्शन
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद देशभर में बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए और इनमें लगभग 11 लोगों की मौत हुई थी। प्रदर्शनों को देखते हुए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में उसके फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बेअसर करने के लिए सरकार ने किया कानून में संशोधन
याचिका दायर करने के साथ-साथ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बेअसर करने के लिए SC/ST कानून में बदलाव भी किए और इसी को SC/ST संशोधन कानून के नाम से जाना जाता है। इनके अनुसार, SC/ST कानून के तहत FIR दर्ज करने से पहले जांच और गिरफ्तारी के लिए अनुमति की जरूरत नहीं होगी। इसके अलावा आरोपियों की अग्रिम जमानत के प्रावधान को भी रद्द कर दिया गया था।
तीन सदस्यीय बेंच ने बहुमत से सुनाया फैसला
कानून में इन संशोधनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं थीं और इन्हीं पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने आज अपना फैसला सुनाया। न्यायाधीश अरुण मिश्रा, विनीत शरण और रवींद्र भट्ट की संवैधानिक बेंच ने 2:1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा कि SC/ST कानून के तहत किसी भी आरोपी शख्स को अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी और कानून मार्च, 2018 के उसके पहले फैसले से पहले की स्थिति में लागू होगा।
सितंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिए थे बाकी दो प्रावधान
इससे पहले 30 सितंबर, 2019 को अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने जांच के बाद FIR और गिरफ्तारी से पहले अनुमति के अपने पुराने आदेश को निरस्त कर दिया था। केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने कहा था कि उसके 30 मार्च, 2018 के फैसले में दिए गए निर्देश गैरजरूरी थे और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के दायरे से बाहर थे। ऐसा कहते हुए कोर्ट ने इन दोनों प्रावधानों को निरस्त कर दिया था।