COP26 और G20 सम्मेलन में हिस्सा लेंगे प्रधानमंत्री मोदी, एजेंडे में अफगानिस्तान और जलवायु परिवर्तन

प्रधानमंत्री मोदी 30 अक्टूबर से इटली में शुरू हो रहे G20 सम्मेलन में अफगानिस्तान के ताजा हालात, जलवायु परिवर्तन और कोरोना महामारी से निपटने के लिए संयुक्त वैश्विक दृष्टिकोण पर जोर देंगे। विदेश मंत्रालय ने रविवार को बयान जारी कर बताया कि प्रधानमंत्री 29 अक्टूबर से 2 नवंबर तक रोम और ग्लासगो की यात्रा पर रहेंगे। रोम में G20 सम्मेलन का आयोजन हो रहा है तो ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन पर COP26 शिखर सम्मेलन होना है।
इटली के प्रधानमंत्री के न्यौते पर नरेंद्र मोदी 30 और 31 अक्टूबर को G20 सम्मेलन में शिरकत करेंगे। पिछले साल दिसंबर से इटली G20 की अध्यक्षता कर रहा है। G-20 में भारत, अर्जेंटीना, चीन, जापान, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, इंडोनेशिया, इटली, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका और यूरोपीय संघ शामिल हैं। इन देशों में दुनिया की दो तिहाई आबादी रहती है और ये दुनिया की GDP का 80 फीसदी हिस्सा बनाते हैं।
इस साल G20 शिखर सम्मेलन में वैश्विक नेता कोरोना महामारी के असर से निपटने, जलवायु परिवर्तन, गरीबी और असमानता से निपटने समेत कई अहम मुद्दों पर विचार करेंगे। सूत्रों के अनुसार, अफगानिस्तान के मुद्दे पर इस सम्मेलन में प्रमुखता से बात होगी। सम्मेलन के इतर प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका और फ्रांस के राष्ट्रपतियों समेत कई दूसरे राष्ट्राध्यक्षों के साथ द्विपक्षीय बैठक भी करेंगे। जानकारी के लिए बता दें कि 2023 में G20 सम्मेलन की मेजबानी भारत करेगा।
रोम से प्रधानमंत्री मोदी ग्लासगो जाएंगे, जहां वो जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की तरफ से आयोजित 26वें सम्मेलन (COP-26) की बैठक में भाग लेंगे। COP26 का आयोजन 31 अक्टूबर से 12 नवंबर तक होगा और ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के आमंत्रण पर नरेंद्र मोदी इस सम्मेलन में शामिल हो रहे हैं। विदेश मंत्रालय ने बताया कि वैश्विक नेताओं का सम्मेलन 1 से 2 नवंबर तक होगा और इसमें 120 से अधिक देशों और सरकारों के प्रमुख हिस्सा लेंगे।
COP-26 बैठक से पहले भारत ने अमीर देशों से पर्यावरण को पहुंचाए नुकसान के बदले मुआवजे की मांग की है। पर्यावरण मंत्रालय के सचिव रामेश्वर प्रसाद गुप्ता ने कहा, "हमारा कहना है कि नुकसान के लिए मुआवजा होना चाहिए और विकसित देशों को इसकी भरपाई करनी चाहिए। भारत इस मुद्दे पर गरीब और विकासशील देशों के साथ खड़ा है।" भारत ने अमेरिका के जलवायु दूत जॉन केरी के आगे भी जलवायु आपदाओं के मुआवजे के मसले को उठाया था।
बता दें कि वैज्ञानिक पिछले काफी सालों से चेतावनी दे रहे हैं कि मानव गतिविधियां ग्लोबल वॉर्मिंग का कारण बन रही हैं और इससे जलवायु परिवर्तन उस स्तर पर पहुंच सकता है जिसके बाद इसे रोकना असंभव हो जाएगा और मानवता खतरे में पड़ जाएगी। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन पहले ही खतरे के निशान से ऊपर जा चुका है। ग्लासगो की बैठक में इस खतरे से निपटने के तरीकों पर चर्चा होगी।