COP26 से ठीक पहले भारत ने जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखने से इनकार किया

रविवार से शुरू होने वाले जलवायु शिखर सम्मेलन से पहले भारत ने जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखने से इनकार करते हुए कहा है कि दुनिया को उत्सर्जन कम करने के रास्ते खोजने चाहिए ताकि वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी के खतरे को टाला जा सके। चीन और अमेरिका के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश है और उस पर जलवायु सम्मेलन में इसे कुछ दशकों में जीरो करने का ऐलान करने का दबाव है।
अलजजीरा के अनुसार, पर्यावरण सचिव रामेश्वर प्रसाद गुप्ता ने कहा कि जीरो कार्बन उत्सर्जन का ऐलान करना जलवायु संकट का समाधान नहीं है। जीरो उत्सर्जन के लक्ष्य तक पहुंचने से पहले आप कितना कार्बन वातावरण में पहुंचा रहे हैं, यह ज्यादा जरूरी है। वहीं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि भारत पेरिस समझौते में तय किए लक्ष्य की प्राप्ति के रास्ते पर है और इसे संशोधित भी किया जा सकता है। इसके लिए सभी विकल्प खुले हैं।
कुछ पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि अगर भारत को नई टेक्नोलॉजी और आर्थिक मदद मिलती है तो वह अपने उत्सर्जन को 40 प्रतिशत कम करने तक का विचार कर सकता है। जानकारी के लिए बता दें कि भारत ने पेरिस समझौते में उत्सर्जन को 2005 के स्तर से 2030 तक GDP के 33 से 35 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य रखा था और 2016 तक उसने 24 प्रतिशत कम कर लिया था।
स्कॉटलैंड के ग्लासगो में 31 अक्टूबर से शुरू होकर 12 नवंबर तक चलने वाले COP26 सम्मेलन में करीब 120 से अधिक देशों और सरकारों के प्रतिनिधि शामिल होंगे और जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने की रणनीति पर विचार करेंगे। भारत की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसमें शामिल होंगे। 1 से 2 नवंबर तक होने वाले वैश्विक नेताओं के सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी अपने ब्रिटिश समकक्ष बोरिस जॉनसन के आमंत्रण पर हिस्सा ले रहे हैं।
COP-26 सम्मेलन से पहले भारत ने अमीर देशों से पर्यावरण को पहुंचाए नुकसान के बदले मुआवजे की मांग की है। पर्यावरण मंत्रालय के सचिव रामेश्वर प्रसाद गुप्ता ने कहा, "हमारा कहना है कि नुकसान के लिए मुआवजा होना चाहिए और विकसित देशों को इसकी भरपाई करनी चाहिए। भारत इस मुद्दे पर गरीब और विकासशील देशों के साथ खड़ा है।" भारत ने अमेरिका के जलवायु दूत जॉन केरी के आगे भी जलवायु आपदाओं के मुआवजे के मसले को उठाया था।
अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को जीरो करने का लक्ष्य रखा है। यानी 2050 से ये देश उतनी ही ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करेंगे, जितनी जंगल, फसलें, मिट्टी और कार्बन का असर कम करने वाली टेक्नोलॉजीज सोख सकेंगी। चीन और सऊदी अरब ने इसके लिए 2060 का लक्ष्य रखा है, लेकिन आलोचकों का कहना है कि बिना ठोस कदमों के इन लक्ष्यों के कोई मायने नहीं हैं।