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    COP26 से पहले भारत ने अमीर देशों से मांगा पर्यावरण को पहुंचाए नुकसान का मुआवजा

    COP26 से पहले भारत ने अमीर देशों से मांगा पर्यावरण को पहुंचाए नुकसान का मुआवजा
    लेखन प्रमोद कुमार
    Oct 23, 2021, 04:26 pm 1 मिनट में पढ़ें
    COP26 से पहले भारत ने अमीर देशों से मांगा पर्यावरण को पहुंचाए नुकसान का मुआवजा
    भारत ने अमीर देशों से मांगा पर्यावरण को पहुंचाए नुकसान का मुआवजा

    जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर होने वाली अहम बैठक से पहले भारत ने अमीर देशों से पर्यावरण को पहुंचाए नुकसान के बदले मुआवजे की मांग की है। 31 अक्टूबर से 12 नवंबर तक चलने वाले संयुक्त राष्ट्र के COP26 सम्मेलन से पहले पर्यावरण मंत्रालय ने अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि भारत जलवायु आपदाओं से हुए नुकसान की भरपाई की मांग करता है। जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर इस सम्मेलन को बेहद अहम माना जा रहा है।

    ग्लासगो में होगा सम्मेलन

    इस साल स्कॉटलैंड के ग्लासगो में COP26 सम्मेलन हो रहा है, जिसमें दुनियाभर के बड़े नेता, पर्यावरण कार्यकर्ता और दूसरे अधिकारी शामिल होंगे। भारत की तरफ से प्रधानमंत्री मोदी इसमें शिरकत करेंगे। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को लेकर 'अभी नहीं तो कभी नहीं' वाली स्थिति के बीच इस सम्मेलन से कोई ठोस कार्ययोजना सामने आने की उम्मीद की जा रही है। इसका आयोजन पिछले साल होना था, लेकिन महामारी के कारण यह एक साल देरी से हो रहा है।

    भारत का क्या स्टैंड है?

    पर्यावरण मंत्रालय के सचिव रामेश्वर प्रसाद गुप्ता ने कहा, "हमारा कहना है कि नुकसान के लिए मुआवजा होना चाहिए और विकसित देशों को इसकी भरपाई करनी चाहिए। भारत इस मुद्दे पर गरीब और विकासशील देशों के साथ खड़ा है।" भारत ने अमेरिका के जलवायु दूत जॉन केरी के आगे भी जलवायु आपदाओं के मुआवजे के मसले को उठाया था। गौरतलब है कि विकसित देशों ने ही ग्रीनहाउस गैसों को सबसे ज्यादा उत्सर्जन किया है।

    भारत कितना उत्सर्जन करता है?

    भारत आज दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है। वहीं ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो यह हमेशा 10 बड़े उत्सर्जकों में शामिल रहा है। इसका मतलब है कि अगर बड़े उत्सर्जकों से मुआवजा लिया जाता है तो भारत को भी अपना हिस्सा देना होगा। हालांकि, गुप्ता ने कहा, "अगर ऐसा होता है तो भारत को जितना मुआवजा देना होगा, उससे अधिक उसे मिल जाएगा। अगर वो भारत को शामिल करना चाहते हैं तो हम तैयार हैं।"

    इसके पीछे क्या विचार है?

    इस विचार पर 2013 में काम शुरू हुआ था, लेकिन अभी तक इसके तकनीकी पक्षों पर सहमति नहीं बन पाई है। पेरिस समझौते में भी इसका जिक्र किया गया है। विचार यह था कि ग्रीनहाउस गैसों के सबसे बड़े उत्सर्जक देशों को उनके द्वारा फैलाए गए प्रदूषण के बदले मुआवजा देना होगा। इस पैसे से जलवायु परिवर्तन के कारण सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले देश अपने नुकसान की भरपाई कर सकते हैं।

    भारत ने उत्सर्जन जीरो करने का लक्ष्य नहीं रखा

    10 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से केवल भारत ऐसा देश है, जिसने अपने उत्सर्जन को जीरो करने का लक्ष्य नहीं रखा है। चीन ने 2060, अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोपीय संघ ने 2050 तक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बिल्कुल बंद करने का लक्ष्य रखा है। इस साल भारत ने भी ऐसा लक्ष्य रखने का फैसला किया था, लेकिन बाद में कदम वापस खींच लिए। पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि ग्लॉसगो सम्मेलन से पहले ऐसा लक्ष्य रखना जरूरी नहीं है।

    मानवता के अस्तित्व के लिए खतरा बन सकता है जलवायु परिवर्तन

    बता दें कि वैज्ञानिक पिछले काफी सालों से चेतावनी दे रहे हैं कि मानव गतिविधियां ग्लोबल वॉर्मिंग का कारण बन रही हैं और इससे जलवायु परिवर्तन उस स्तर पर पहुंच सकता है जिसके बाद इसे रोकना असंभव हो जाएगा और मानवता खतरे में पड़ जाएगी। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन पहले ही खतरे के निशान से ऊपर जा चुका है। ग्लासगो की बैठक में इस खतरे से निपटने के तरीकों पर चर्चा होगी।

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