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    यूक्रेन युद्ध: रूस के युद्ध पर भारत क्यों अपनाता आया है तटस्थता की नीति?
    रूस के युद्ध पर भारत क्यों अपनाता आया है तटस्थता की नीति?

    यूक्रेन युद्ध: रूस के युद्ध पर भारत क्यों अपनाता आया है तटस्थता की नीति?

    लेखन भारत शर्मा
    Mar 03, 2022
    06:23 pm

    क्या है खबर?

    रूस के यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ने के बाद भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में तटस्थता की नीति अपनाते हुए तमाम विशेषज्ञों को चकित कर दिया।

    ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब भारत ने रूस के युद्ध पर तटस्थता की नीति अपनाई है। साल 2014 में रूस के क्रीमिया पर हमला करने दौरान भी तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने यही कदम उठाया था।

    आइए जानते हैं भारत ऐसा क्यों करता आया है।

    अलग

    भारत ने UNSC में खुद को मतदान से दूर रखा

    अमेरिका सहित पश्चिमी और यूरोपीय देशों की चेतावनी देने के बाद भी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 24 फरवरी को सैन्य अभियान के नाम से यूक्रेन पर हमले का ऐलान किया था।

    उसके बाद विरोधी देशों ने UNSC में इस मुद्दे को उठाते हुए रूस पर कड़े प्रतिबंधों की मांग की थी।

    उस दौरान अमेरिका सहित अन्य सदस्यों ने रूस के खिलाफ मतदान किया था, लेकिन भारत ने खुद को इससे दूर रखते हुए तटस्थता की नीति अपनाई थी।

    बयान

    भारत ने युद्ध को लेकर जताई थी चिंता

    संयुक्त राष्ट्र (UN) में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने UNSC में कहा था कि यूक्रेन के घटनाक्रम से भारत बेहद चिंतित है और वह दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील करता है।

    इसी तरह उन्होंने UNGA में कहा था कि भारत दृढ़ता से मानता है कि कूटनीति के रास्ते पर लौटने के अलावा इस संकट को रोकने का और कोई विकल्प नहीं है। भारत की विवादों का शांतिपूर्ण तरीके से समाधान करने की सोच रही है।

    पुनरावृत्ति

    साल 2014 में भी भारत ने खुद को मतदान से रखा था दूर

    बता दें कि 2014 में रूस के यूक्रेन पर हमला कर क्रीमिया पर कब्जा करने के दौरान भी भारत की तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने खुद को मतदान से दूर रखा था।

    उस दौरान सरकार में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) शिव शंकर मेनन ने कहा था कि यूक्रेन के भीतर जो भी आंतरिक मुद्दे हैं उन्हें शांति से सुलझाया जाएगा। इसमें शामिल विभिन्न हितों के समाधान के व्यापक मुद्दे हैं और इसमें रूस के वैध और अन्य हित शामिल हैं।

    कारण

    भारतीय नागरिकों की सुरक्षित वापसी था पहला कारण

    मोदी सरकार के तटस्थता की नीति अपनाने के पीछे पहला और सबसे बड़ा कारण वहां फंसे भारतीयों की सुरक्षित वापसी कराना था।

    यदि भारत मामले में किसी का भी पक्ष लेता तो सरकार के नागरिकों की वापसी के लिए किए जा रहे प्रयासों को बड़ा झटका लग सकता था।

    भारत ने इस नीति के तहत यूक्रेन से सटी सीमाओं पर चार केंद्रीय मंत्रियों को विशेष दूत के रूप में तैनात किया और अब नागरिकों की वापसी कराई जा रही है।

    बयान

    भारतीय नागरिकों की सुरक्षित वापसी है सरकार की प्राथमिकता- तिरुमूर्ति

    तिरुमूर्ति ने UNSC में कहा, "भारतीय नागरिकों की सुरक्षा सरकार की पहली प्राथमिता है। मंत्रियों को विशेष दूत के रूप में तैनात किया जा रहा है। हम नागरिकों की वापसी के लिए सीमा खोलने पर यूक्रेन और अन्य पड़ोसी देशों का आभार जताते हैं।"

    रणनीति

    तटस्थता की नीति के पीछे क्या है भारत की रणनीति?

    भारत की तटस्थता नीति के पीछे कई रणनीतिक कारण भी है। UN में भारत का अनुभव ज्यादा अच्छा नहीं रहा है। कश्मीर के मुद्दे पर उसे हमेशा से ही पश्चिमी देशों के स्वार्थ का शिकार होना पड़ा है।

    UNSC के सदस्यों ने पाकिस्तान के आक्रमण के बारे में भारत की शिकायत का कोई जवाब नहीं दिया।

    इसके बजाय ब्रिटेन और अमेरिका ने कश्मीर मुद्दे पर भारत से परामर्श किए बिना पाकिस्तान की जवाबी शिकायत सुनने की अनुमति दे दी थी।

    समर्थन

    कश्मीर मुद्दे पर पश्चिमी देशों ने कभी नहीं किया भारत का समर्थन

    कश्मीर के मद्दे पर पश्चिमी देशों ने कभी भी भारत का समर्थन नहीं किया है। यही कारण रहा है कि पाकिस्तान और चीन दोनों ने तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य (अब केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख) के कुछ हिस्सों पर अवैध कब्जा बनाए रखा है।

    इसी तरह पश्चिम देशों ने यूक्रेन में रूस की तरह भारत के क्षेत्र पर अवैध कब्जा के लिए कभी चीन की निंदा नहीं की है। लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश विवाद में भी ऐसा रुख रहा था।

    मित्रता

    भारत की रूस से मित्रता भी है तटस्थता का कारण

    भारत के तटस्थ रहने का एक अन्य कारण उसकी रूस के साथ पुरानी मित्रता होना भी है। यही कारण है कि भारतीय सेना के पास सोवियत काल से खरीदे गए लगभग 70 प्रतिशत महत्वपूर्ण हथियार हैं।

    इसी तरह रूस ने UN में कश्मीर और अन्य मामलों पर भारत की स्थिति का समर्थन किया है।

    भारत ने भी 1956 में हंगरी में सोवियत के सैन्य अभियान पर 1968 में चेकोस्लोवाकिया में सैन्य अभियान पर भी रूस का विरोध नहीं किया था।

    जानकारी

    भारत ने 1979 में भी किया रूस के सैन्य अभियान का बचाव

    1979-80 में रूस के अफगानिस्तान पर हमला करने के दौरान भी तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने उसके सैन्य अभियान का बचाव किया था। भारत ने UNGA को अफगानिस्तान की कम्युनिस्ट हाफिजुल्ला अमीन सरकार के अनुरोध पर रूस के काबुल में प्रवेश की जानकारी दी थी।

    खतरा

    तटस्थता की नीति से क्या है भारत को खतरा?

    भारत की तटस्थता की नीति के कई गंभीर परिणाम भी सामने आ सकते हैं। रूस की निंदा न करने को पाकिस्तान और चीन के अवैध कब्जे को पुतिन की तरह सही माना जा सकता है।

    इसी तरह रूस-यूक्रेन युद्ध लंबा खिंचता है तो अमेरिका रूस पर कठोर आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है। ऐसे में यदि भारत रूस से सुखाई-400 विमान खरीदता है तो अमेरिका उसे भी अपने 2017 के प्रतिबंध अधिनियम के तहत कार्रवाई की धमकी दे सकता है।

    अन्य

    रूस की खिलाफत से भी भारत को हो सकता है बड़ा नुकसान

    यदि भारत अमेरिका सहित अन्य पश्चिमी देशों के संबंध मजबूत रखने के लिए रूस के यूक्रेन पर चलाए जा रहे सैन्य अभियान की निंदा करता है तो उसके रूस के साथ बनें लंबे संबंधों में खटास आ सकती है।

    इसके अलावा उसकी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए रूसी हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में उसकी निवेश की योजना भी पटरी से उतर सकती है।

    ऐसे में कहा जा सकता है कि भारत की तटस्थता की नीति के भी कई खतरे हैं।

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