कृषि कानूनों पर बनाई गई समिति ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट, 5 अप्रैल को सुनवाई
केंद्र सरकार द्वारा लाए तीन कृषि कानूनों की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बनाई तीन सदस्यीय विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में शीर्ष अदालत को सौंप दी है। हालांकि, समिति ने रिपोर्ट में क्या कहा है, इसकी जानकारी अभी तक सामने नहीं आई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 5 अप्रैल के लिए निर्धारित की है। बता दें कि समिति में अनिल धनवत, अशोक गुलाटी और प्रमोद जोशी को शामिल किया गया था।
कृषि कानूनों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं किसान
मोदी सरकार कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए सितंबर, 2020 में तीन कानून लेकर लाई है। इनमें सरकारी मंडियों के बाहर खरीद के लिए व्यापारिक इलाके बनाने, अनुबंध खेती को मंजूरी देने और कई अनाजों और दालों की भंडारण सीमा खत्म करने समेत कई प्रावधान किए गए हैं। पंजाब और हरियाणा समेत कई राज्यों के किसान इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इनके जरिये सरकार मंडियों और MSP से छुटकारा पाना चाहती है।
किसान आंदोलन में फिलहाल क्या चल रहा है?
किसानों और सरकार के बीच गतिरोध को खत्म करने के लिए 11 दौर की औपचारिक बात हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई हल नहीं निकल सका है। सुप्रीम कोर्ट इन कानूनों के अमल पर अस्थायी रोक लगा चुका है। गणतंत्र दिवस को किसानों ने ट्रैक्टर रैली निकाली थी, जिसमें जमकर हिंसा हुई। इसके बाद किसानों ने 6 फरवरी को चक्का जाम, 17 फरवरी को रेल रोको अभियान और 26 मार्च को भारत बंद का आह्वान किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी में किया था समिति की गठन
किसान संगठनों और सरकार के बीच जारी गतिरोध को खत्म करने के मकसद से सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी महीने में कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगाने के साथ ही चार सदस्यों वाली एक समिति बनाई थी। इसमें अनिल घनवट के अलावा भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान, कृषि-अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और प्रमोद जोशी को सदस्य बनाया था, लेकिन बाद में भूपिंदर सिंह मान ने समिति से नाम वापस ले लिया था।
कृषि कानूनों पर निष्पक्ष राय जानने के लिए किया था समिति का गठन
सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानूनों पर एक निष्पक्ष राय जानने के लिए समिति का गठन किया था। कोर्ट ने समिति से इस बात पर राय मांगी थी कि तीनों कृषि कानूनों में कौन से प्रावधान किसानों के हित में है और कौन से नहीं। इसके बाद समिति ने एक विज्ञापन के जरिए कानूनों से संबंधित लोगों की राय और सुझाव भी मांगे थे। कोर्ट ने समिति को दो महीनों के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया था।
समिति ने 19 मार्च को सौंपी थी रिपोर्ट
समिति में शामिल कृषि अर्थशास्त्री अनिल धनवट ने बताया कि समिति ने गत 19 मार्च को ही सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। समिति की ओर से जल्द ही इस मामले में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की जा सकती है। उन्होंने बताया कि समिति ने लोगों के सुझावों लेने के बाद कानूनों की समीक्षा की थी। इसके बाद उनमें किए प्रावधानों के किसानों के हित में होने और नहीं होने का निर्णय किया गया है।