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    बिना किसी हाथापाई के रेप करना अकेले युवक के लिए संभव नहीं- बॉम्बे हाई कोर्ट

    बिना किसी हाथापाई के रेप करना अकेले युवक के लिए संभव नहीं- बॉम्बे हाई कोर्ट

    लेखन भारत शर्मा
    Jan 29, 2021
    06:31 pm

    क्या है खबर?

    बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बैंच इन दिनों अपने अजीबोगरीब फैसलों के चलते चर्चा है।

    गत दिनों उसने जबरन छूने को यौन हमला मानने और नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ना और उसकी पैंट की जिप खोलने को POCSO कानून में यौन उत्पीड़न मानने से इनकार कर दिया था।

    अब हाई कोर्ट एक और चौंकाने वाला फैसला सुनाते हुए रेप के आरोपी को बरी कर दिया। कोर्ट का मानना है कि अकेले व्यक्ति द्वारा बिना हाथापाई रेप संभव नहीं है।

    प्रकरण

    सत्र न्यायालय ने रेप के आरोपी को सुनाई थी 10 साल की सजा

    इंडिया टुडे के अनुसार 26 जुलाई, 2013 को एक 15 वर्षीय किशोरी की मां ने अपने पड़ोसी सूरज कासरकर (26) के खिलाफ अपनी बेटी से दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया था।

    इस पर लंबी सुनवाई के 14 मार्च, 2019 को सत्र न्यायालय ने दोषी ठहराते हुए 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।

    उस पर POCSO अधिनियम की धारा-4 के साथ IPC की धारा 376 (1) और 451 के तहत आरोप लगाए गए थे।

    याचिका

    आरोपी ने फैसले को दी थी बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती

    सत्र न्यायालय से सजा होने के बाद आरोपी ने हाई कोर्ट में फैसले को चुनौती दे दी। आरोपी ने अपनी याचिका में कहा था कि लड़की के साथ दुष्कर्म नहीं किया गया। दोनों ने सहमति से संबंध बनाए। वह अपने घर से भागकर आई थी।

    इस पर उसकी मां ने उसके खिलाफ मामला दर्ज करा दिया। उसने यह भी कहा कि युवती कई बार संबंध बना चुकी है। इसके अलावा उसने लड़की के गलत बयान देने की भी आशंका जताई।

    बचाव

    अभियोजन पक्ष ने दी जबरन रेप की दलील

    मामले में बचाव पक्ष ने आरोपी द्वारा जबरन रेप करने तथा मारपीट करने की दलील दी।

    बचाव पक्ष ने कहा कि वारदात के दिन रात करीब 09:30 बजे पीड़िता अपने घर में सो रही थी और उसकी मां बाहर किसी से फोन पर बात कर रही थी। उसी समय आरोपी घर दाखिल हुआ और पीड़िता को चांटा मारा। चिल्लाने पर उसका मुंह बंद कर दिया और उसके कपड़े उतारकर रेप किया। रेप के बाद आरोपी उसके कपड़े लेकर भाग गया।

    सबूत

    बचाव पक्ष पीड़िता के नाबालिग होने का भी नहीं पाया सबूत- हाई कोर्ट

    मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने कहा कि पीड़िता और उसकी मां की गवाही यह साबित नहीं कर सकी कि घटना के समय लड़की की उम्र 18 साल से कम थी।

    इसी तरह पीड़िता ने स्वीकार किया कि उसने मां की जिद पर FIR में उसकी उम्र 15 वर्ष घोषित की।

    यहां तक कि अदालत में प्रस्तुत जन्म प्रमाण पत्र और मेडिकल रिपोर्ट भी उसके नाबालिग होने को सिद्ध नहीं कर सकी है।

    टिप्पणी

    बिना हाथापाई के रेप संभव नहीं- कोर्ट

    हाई कोर्ट ने कहा कि यदि जबरन रेप होता तो दोनों के बीच हाथापाई होती। मेडिकल रिपोर्ट में पीड़िता के किसी भी प्रकार की चोट सामने नहीं आई है।

    कोर्ट ने कहा कि जबरन रेप में बिना हाथापाई के युवती के कपड़े उतारना और रेप किया जाना संभवन नहीं है।

    इसी तरह युवती ने भी मां के दबाव में रिपोर्ट दर्ज कराने की बात कही है। ऐसे में आरोपी को इस मामले में संदेह का लाभ दिया जा सकता है।

    बयान

    बिना हाथापाई के रेप करना अकेले युवक के लिए संभव नहीं- कोर्ट

    हाई कोर्ट ने कहा है कि 15 साल की लड़की के साथ बिना हाथापाई के रेप नहीं किया जा सकता। पीड़िता का मुंह दबाना, उसके और अपने कपड़े उतारना और जबरन बिना किसी हाथापाई के रेप करना एक अकेले युवक के लिए संभव नहीं है।

    पृष्ठभूमि

    हाई कोर्ट ने जबरन छूने को नहीं माना था यौन हमला

    बता दें कि हाई कोर्ट की नागुपर पीठ ने गत दिनों एक मामले में कहा था कि "त्वचा से त्वचा के संपर्क" के बिना युवती के वक्षस्थल को छूना यौन हमले की श्रेणी में नहीं लिया जा सकता है।

    हालांकि, गत बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगाते हुए आरोपी और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस भेजकर जवाब मांगा था।

    सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आरोपी की सजा कम करने के आदेश पर भी रोक लगाई थी।

    जानकारी

    "नाबालिग का हाथ पकड़ना और जिप खोलना पॉक्सो के तहत यौन हमला"

    पहले विवादित फैसले के बाद 15 जनवरी को नागपुर पीठ ने एक अन्य मामले में कहा था कि नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ना और उसकी पैंट की जिप खोलना POCSO कानून में यौन उत्पीड़न के तहत नहीं आता। इसकी भी काफी चर्चा हो रही है।

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