बिहार सरकार पर NGT ने लगाया 4,000 करोड़ रुपये का जुर्माना, जानिए क्या है वजह
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने शुक्रवार को ठोस और तरल कचरे का वैज्ञानिक रूप प्रबंधन करने में नाकाम रहने के लिए बिहार पर 4,000 करोड़ रुपये का पर्यावरणीय जुर्माना लगाया है। NGT अध्यक्ष न्यायमूर्ति एके गोयल की बेंच ने आदेश दिया है कि यह जुर्माने की राशि 2 महीने के भीतर 'रिंग-फेंस खाते' में जमा कराई जाए और मुख्य सचिव के निर्देशों के अनुसार इसका इस्तेमाल राज्य में सिर्फ अपशिष्ट प्रबंधन के लिए ही किया जाए।
NGT की बेंच ने बिहार सरकार पर लगाया 4,000 करोड़ रुपये का जुर्माना
NGT की बेंच ने अपने आदेश में कहा, "हम सुप्रीम कोर्ट के आदेश और अधिकरण के नियमों के उल्लंघन को लेकर तरल और ठोस कचरे के वैज्ञानिक प्रबंधन में नाकाम रहने के कारण प्रदूषक भुगतान सिद्धांत के तहत बिहार सरकार पर 4,000 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाते हैं, जिसे 2 महीने के भीतर रिंग-फेंस खाते में जमा किया जाए।" बता दें कि रिंग-फेंस खाते में जमा राशि के एक हिस्से को विशिष्ट उद्देश्य के लिए आरक्षित रखा जाता है।
NGT ने अपने आदेश में क्या कहा?
NGT की बेंच ने कहा कि इस जुर्माने की राशि का इस्तेमाल ठोस अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं की स्थापना, पुराने कचरे के निस्तारण और जलमल प्रबंधन संयंत्रों के निर्माण के लिए किया जाएगा ताकि राज्य में बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके। इस मामले की सुनवाई करने वाली बेंच में न्यायमूर्ति एके गोयल, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी के साथ विशेषज्ञ सदस्य अफरोज अहमद तथा ए सेंथिल वेल भी शामिल थे।
बिहार में दिनोंदिन बढ़ रहा है कचरे का बोझ- NGT
NGT की बेंच ने बताया कि बिहार पर 11.74 लाख मीट्रिक टन से अधिक पुराने कचरे के साथ प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले 4,072 मीट्रिक टन अशोधित शहरी कचरे के प्रबंधन का बोझ है। उसने कहा कि राज्य में तरल अपशिष्ट उत्पादन और ट्रीटमेंट में 2,193 मिलियन लीटर प्रति दिन का अंतर है। बेंच ने सुझाव दिया है कि उपयुक्त जगहों पर खाद बनाने में गीले कचरे का इस्तेमाल करने के लिए बेहतर विकल्पों का पता लगाया जाना चाहिए।
न्यूजबाइट्स प्लस
NGT की स्थापना 18 अक्टूबर, 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम 2010 के अंतर्गत की गई थी। इस अधिनियम में भारतीय नागरिकों को स्वस्थ पर्यावरण प्रदान करने के अधिकार के विषय में विस्तारपूर्वक बताया गया है। इसके गठन का उद्देश्य भारत में पर्यावरण से सम्बंधित मामलों को तेजी के साथ निर्णय प्रदान करना है, जिससे भारत की न्यायपालिका पर मुकदमों का बोझ कम हो सके इसका मुख्यालय दिल्ली में है।