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    देश में कितना बायोमेडिकल कचरा पैदा हो रहा है और इससे निपटने के क्या नियम हैं?

    देश में कितना बायोमेडिकल कचरा पैदा हो रहा है और इससे निपटने के क्या नियम हैं?

    लेखन मुकुल तोमर
    Aug 14, 2020
    07:42 pm

    क्या है खबर?

    कोरोना वायरस से बचाव के लिए जितना जरूरी सोशल डिस्टेंसिंग और फेस मास्क के प्रयोग जैसे सुरक्षा नियमों का पालन है, उतना ही जरूरी इसके कचरे का निपटारा है। अगर कोरोना वायरस से संबंधित कचरे को ठीक तरह से निपटाया न जाए तो ये बीमारी फैलने का एक बड़ा कारण बन सकता है।

    आइए जानते हैं कि भारत में इस कचरे के निपटारे की क्या गाइडलाइंस और व्यवस्था है और रोजाना कितना कचरा पैदा हो रहा है।

    कचरा

    सबसे पहले जानें किन चीजों को माना जाता है कोविड मेडिकल कचरा

    कोरोना वायरस के मरीजों के इलाज के दौरान इस्तेमाल होने वाली हर चीज, जैसे कि सुई, रूई, पट्टी, खाली बोतलें और शाशियां, मास्क, दस्ताने और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) आदि को कोविड कचरा माना जाता है और ये बायोमेडिकल कचरे की श्रेणी में आता है।

    भारत में कोरोना से संबंधित कचरे के निपटारे के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने गाइडलाइंस जारी की हुई हैं। CPCB ने आइसोलेश वार्ड और क्वारंटाइन केंद्र के लिए अलग-अलग गाइडलाइंस जारी की हैं।

    आइसोलेशन वार्ड

    आइसोलेशन वार्ड के लिए हैं ये गाइडलाइंस

    आइसोलेशन वार्ड के लिए CPCB की गाइडलाइंस के अनुसार, कोरोना वायरस के मरीजों का कचरा डबल लेयर के बैग में इकट्ठा करना जरूरी है ताकि कोई लीकेज न हो।

    गाइडलाइंस में कोरोना के कचरे के लिए अलग डस्टबिन इस्तेमाल करने और इस डस्टबिन पर साफ-साफ "कोविड-19" लिखने को कहा गया है। बायोमेडिकल कचरा के निवारण करने वाली संस्थाओं (CBWTF) को ये कचरा थमाने से पहले इन्हें एक अस्थाई स्टोरेज रूम में रखना होगा।

    जानकारी

    कंटेनरों, डिब्बों और ट्रोलियों को रोजाना धोना जरूरी

    गाइडलाइंस में कोरोना वायरस से संबंधित कचरे को रखने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कंटेनरों, डिब्बों और ट्रॉलियों की बाहरी और अंदरूरी सतहों को एक प्रतिशत सोडियम हाइपोक्लोराइट के घोल से रोजाना धोने की बात भी कही गई है।

    क्वारंटाइन केंद्र

    क्वारंटाइन केंद्रों में पीले रंग के बैग में रखना होगा कचरा

    क्वारंटाइन केंद्रों और होम क्वारंटाइन के लिए अपनी गाइडलाइंस में CPCB ने कोरोना वायरस से संबंधित कचरे को अलग पीले रंग के बैगों में रखने को कहा है। इस कचरे को सीधे CBWTF कर्मचारियों के हवाले करना है।

    CBWTF के संचालकों को सुनिश्चित करना है कि इस कचरे को इकट्ठा करने और निपटाने के काम में लगे कर्मचारियों को नियमित तौर पर सैनिटाइज किया जाए। कर्मचारियों को तीन लेयर का मास्क समेत उचित PPE भी प्रदान करना होगा।

    व्यवस्था

    कचरा इकट्ठा करने के लिए इस्तेमाल करना होगा अलग वाहन, कर्मचारी भी होंगे अलग

    गाइडलाइंस के मुताबिक, प्रशासन को कोरोना वायरस से संबंधित कचरा इकट्ठा करने के लिए एक अलग वाहन इस्तेमाल करना होगा और हर यात्रा के बाद इन्हें सोडियम हाइपोक्लोराइट या अन्य किसी केमिकल डिसइंफेक्टेंट से सैनिटाइज करना होगा।

    घर-घर से कचरा उठाने के लिए कर्मचारियों की एक अलग टीम बनाने को भी कहा गया है। इस टीम को सैनिटाइजेशन और बायोमेडिकल कचरा इकट्ठा करने से संबंधित सभी सावधानियों की ट्रेनिंग प्रदान करनी होगी।

    मास्क और दस्ताने

    ऐसे करना चाहिए मास्क और दस्तानों का निपटारा

    फेस मास्क और दस्तानों से संंबधित गाइडलाइंस में इन्हें काट कर एक कागज के थैले में रखने और इसके बाद ही कूड़ेदान में डालने को कहा गया है।

    CPCB के मुताबिक, यह जरूरी नहीं कि ये मास्क और दस्ताने संक्रमित व्यक्ति ने ही इस्तेमाल किए हों, आम लोग भी इस तरीके का इस्तेमाल कर सकते हैं।

    हालांकि इस कचरे को घर के आम कचरे में मिलाने से पहले 72 घंटे कागज के थैले में रखना जरूरी है।

    कितना कचरा?

    रोजाना पैदा हो रहा 101 टन कोविड कचरा

    अब बात करते हैं कि देश में कोरोना वायरस से संबंधित कितना कचरा पैदा हो रहा है।

    नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) को सौंपी गई एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में रोजाना 101 टन कोविड कचरा पैदा हो रहा है। इसके अलावा 609 टन बायोमेडिकल कचरा पहले से ही पैदा हो रहा है।

    महाराष्ट्र में कोरोना का सबसे अधिक 17.5 टन कचरा पैदा हो रहा है, वहीं गुजरात में 11.69 टन और दिल्ली में 11.11 टन कचरा पैदा हो रहा है।

    दबाव

    कई राज्यों में कचरे के निपटारे की व्यवस्था दबाव में

    इन कचरे के निपटारे के लिए देशभर में 120 केंद्र हैं जिनमें रोजाना 840 टन बायोमेडिकल कचरे का निपटारा किया जा सकता है।

    एक अनुमान के मुताबिक, देश कचरे के निपटारे की अपनी 55 प्रतिशत क्षमता का ही इस्तेमाल कर रहा है।

    हालांकि बिहार, दिल्ली, ओडिशा, राजस्थान और तमिलनाडु जैसे राज्यों में ये आंकड़ा 70 प्रतिशत तक पहुंच गया है और उन्हें अन्य केंद्रों की व्यवस्था करने को कहा है।

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